जड़ से उखाड़ कर बैर साधते हैं ललन सिंह, इतनी आसानी से कोई निपटा देगा क्या..

पटना। जदयू की राष्ट्रीय परिषद की बैठक कल नई दिल्ली में आहूत है।जिसको लेकर सीएम नीतीश कुमार समेत जदयू के कई प्रमुख नेता नई दिल्ली कूच कर चुके हैं। कल होने वाली बैठक में जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह को बदले जाने की संभावना प्रबल बताई जा रही है। इधर तीन दिनों से जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष तथा मुंगेर के सांसद ललन सिंह के इस्तीफे की खबरें भी वायरल होती रही। हालांकि उन्होंने खंडन भी किया। मगर इसके बावजूद जदयू के अंदरखाने से लेकर सत्ता की गलियारे में ललन सिंह के इस्तीफे अथवा उन्हें हटाए जाने की चर्चा मुख्य रूप से हो रही है। कल अगर ललन सिंह जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर बदले जाते हैं।तो पार्टी के अंदर उनके कद में कमी आएगी। इसके पूर्व भी सीएम नीतीश कुमार के बेहद खास होने के बावजूद भी आरसीपी सिंह को उनसे पहले जदयू का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया था। इन दिनों सीएम नीतीश कुमार के किचन कैबिनेट में शामिल करीबी सलाहकारों से राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह की पटरी नहीं बैठ पा रही थी। दरअसल ललन सिंह पहले की तरह पार्टी समेत सूबे के तमाम मामलात पर हावी रहना चाहते थे।मगर जदयू के दो मंत्रियों से उन्हें करीब टक्कर मिली। यहां तक की राजधानी पटना में आयोजित जदयू के एक बड़े सम्मेलन में पोस्टर पर उनका नाम तथा फोटो तक नहीं लगाया गया।जिस पर लेकर बहुत राजनीतिक छीटांकशीं की गई। कल जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर सीएम नीतीश कुमार के पुनः बनने के आसार ज्यादा हैं। वहीं दूसरी तरफ नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में जदयू के ही सांसद रामनाथ ठाकुर का नाम भी उछाला जा रहा है। दूसरी और भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी के भी राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने की चर्चा भी सत्ता की गलियारों में चल रही है। बिहार की राजनीति के बारे में थोड़ी भी समझ रखने वाले सभी लोग जानते हैं कि सीएम नीतीश कुमार तथा ललन सिंह बेहद लंबे अरसे से एक दूसरे के अनुपूरक रहे हैं। चाहे समता पार्टी के रूप में भाजपा के साथ सामंजस्य स्थापित करने की बात हो, अथवा 2000 में चुनाव के बाद एनडीए के नेता चुने जाने के बाद हो या फिर 2005 में लोजपा के टूटे जाने के बाद बिहार में सत्तासीन होने की बात हो। कदम-कदम पर सीएम नीतीश कुमार का साथ दिया है। नीतीश कुमार को बिहार में एनडीए के नेता के रूप में निष्कंटक रूप से स्थापित करने में ललन सिंह का योगदान नकारा नहीं जा सकता है। 2010 में ललन सिंह मुंगेर के सांसद रहते हुए सीएम नीतीश कुमार से बिहार में प्रस्तावित बटाईदार विधेयक को लेकर नाराज हो गए थे। उन्होंने पटना के गांधी मैदान में किसान महापंचायत का आयोजन प्रभुनाथ सिंह, सूरजभान सिंह दिवंगत दिग्विजय सिंह तथा डॉ अखिलेश सिंह के साथ मिलकर किया था। बटाईदार बिल को लेकर गांधी मैदान में आयोजित महापंचायत का असर यह पड़ा की सीएम नीतीश कुमार ने दोबारा उस प्रस्ताव को चर्चा के लायक भी नहीं समझा। उसके बाद सीएम नीतीश ने 2014 के लोकसभा चुनाव के पूर्व स्वयं पहल कर ललन सिंह को पुनः अपने साथ जोड़ लिया। नीतीश कुमार तथा ललन सिंह के रिश्ते को करीब से जानने वाले यह मानने को तैयार नहीं है कि आने वाले समय में इन दोनों के राजनीतिक रास्ते अलग हो जाएंगे। वैसे तत्कालीन परिस्थितियों के तहत सीएम नीतीश कुमार तथा ललन सिंह के परस्पर नाराजगी का असर जो भी हो।लेकिन आगे चलकर यह जदयू के कई नेताओं के लिए घातक साबित होगा। ललन सिंह के करीब से जाने वाले लोग भली- भांति ये बात जानते हैं कि ललन सिंह राजनीतिक बैरी को निपटाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।हालांकि वर्तमान में हालात बदले हुए हैं। जो ललन सिंह लंबे अरसे से अपने विरोधियों पर भारी पड़ते रहें। उनको लेकर प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में यक्ष प्रश्न खड़ा हो गया है कि क्या इस बार ललन सिंह स्वयं परास्त हो जाएंगे?
