सीएम नीतीश बोले, बिहार में महिलाओं को शिक्षित करने से प्रजनन दर नवंबर 2005 के मुकाबले घटा

पटना। केन्द्रीय एवं राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षदों-समितियों के अध्यक्षों एवं सदस्य-सचिवों के 64वें दो दिवसीय सम्मेलन का उद्घाटन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने किया, जिसमें देश के 23 विभिन्न प्रदेशों के कुल 76 प्रतिभागी भाग ले रहे हैं। समारोह की अध्यक्षता उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी द्वारा किया गया। सम्मेलन में मुख्यमंत्री के सलाहकार अंजनी कुमार सिंह, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार के सचिव सी.के मिश्र, केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्राण बोर्ड दिल्ली के अध्यक्ष एस.पी.सिंह परिहार, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव चंचल कुमार, सचिव मनीष कुमार वर्मा एवं विशेष कार्य पदा. गोपाल सिंह, बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद् के अध्यक्ष डॉ. ए.के. घोष व सदस्य-सचिव आलोक कुमार उपस्थित थे।

अपने उद्घाटन संबोधन में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने देश के विभिन्न प्रदेशों से इस सम्मेलन में आये प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए कहा कि विभिन्न पर्यावरर्णीक विषयों पर आप चर्चा करेंगे। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि आज सारा विश्व जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों की चिन्ता में डूबा है, बिहार में इसका सामना करने के उदेश्य से 24,500 करोड़ रूपये की जल-जीवन-हरियाली नामक योजना चलायी जा रही है। इस योजना के तहत जल स्रोंतो के जीर्णोंद्वार/सरंक्षण, उर्जा के अन्य स्रोतों का उपयोग, वर्षा जल संचयन, हरित आवरण बढ़ाने आदि के लिए तीन वर्षों का लक्ष्य रखा गया है। उन्होंने जल-जीवन- हरियाली की चर्चा करते हुए बताया कि इस योजना के प्रति जागृति लाने हेतु 19 जनवरी को राज्य में करीब 16,000 किलोमीटर लंबी मानव श्रृंखला बनायी जायेगी, जिसमें करीब 4 करोड़ लोग भाग लेंगे। उन्होंने राजगीर के घोड़ा कटोरा, जू सफारी, बुद्व वाटिका प्राकृतिक सफारी आदि की चर्चा करते हुए राज्य में इको-टूरिज्म के बढ़ते आयाम पर चर्चा की। मुख्यमंत्री द्वारा कई मुद्दों पर अपनी दृष्टि स्पष्ट करते हुए जलवायु-मौसम परिवर्तन, बढती आबादी, वायु प्रदूषण, जलीय प्रदूषण, प्लास्टिक एवं इको-टूरिज्म पर विस्तृत चर्चा की गयी।
उन्होंने बताया कि शहरों में वायु प्रदूषण के प्रभाव को कम करने हेतु 15 वर्ष से पुराने डीजल चालित वाहनों का संचालन पटना नगर निगम व आसपास के नगर परिषदों में प्रतिबंधित किया गया है। इसके अतिरिक्त विद्युत चालित वाहनों, ई-रिक्शा को प्रोत्साहित किया जा रहा है। उन्होंने स्पष्ट किया कि नियम-कानून तो बने हुए हैं परन्तु इसे प्रभावी ढंग से लागू कराने हेतु इसके प्रति लोगों को जागरूक करने का ठोस प्रयास किया जाना चाहिए। उन्होंने बढती आबादी के प्रति चिंता जाहिर करते हुए कहा कि हम कितना भी विकास करें, बढती आबादी के कारण पिछड़ जाते हैं। उन्होंने जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम में हो रहे बदलाव एवं राज्य पर इसके प्रतिकूल प्रभाव पर चर्चा करते हुए बताया कि पहले राज्य में औसत वर्षापात 1200-1500 मिलीमीटर था, गत 30 वर्षों में जिसका औसतन मात्रा 1027 मी.मी. रह गया है। गत वर्षों में तो यह औसत 901 मी.मी. हो गया है। राज्य में प्रजनन दर पर नियंत्रण हेतु किये गये प्रयासों पर कहा कि महिलाओं को शिक्षित करने से प्रजनन दर नवंबर 2005 के मुकाबले अब घट गया है। मौसम परिवर्तन के कारण राज्य में अप्रत्याशित बाढ़ व सूखे की स्थिति पर भी उन्होंने चर्चा की। उन्होंने बताया कि राज्य में फ्रलाई ऐश ईंटों को प्रोत्साहित करने हेतु सरकारी भवनों में इसका उपयोग किया जा रहा है। राज्य में स्थापित पावर प्लांटों के कारण फ्रलाई ऐश की कमी नहीं होगी। उन्होंने बताया कि राज्य के विभाजन के पश्चात हरित क्षेत्रा जो करीब 9 प्रतिशत था, को विकसित कर 15 प्रतिशत तक किया गया है।
उप मुख्यमंत्री बोले, इलेक्ट्रॉनिक कचरों के निपटान की व्यवस्था अभी कारगर नहीं
वहीं उप मुख्यमंत्री ने बताया कि इलेक्ट्रॉनिक कचरों के निपटान की व्यवस्था अभी कारगर नहीं है। इलेक्ट्रॉनिक कचरों के व्यवस्थित संग्रहण, इसके बॉय-बैक तथा सुरक्षित निष्पादन हेतु कार्ययोजना बनाकर उसका सख्ती से अनुपालन कराया जाना चाहिए। उन्होंनें सिंगल यूज प्लास्टिक के संदर्भ में कहा कि इसे परिभाषित किया जाना चाहिए। इसके प्रतिबंध पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने बताया कि जब तक इसे पूरे भारत में एक रूप में लागू नहीं कराया जायेगा, यह सफल नहीं होगा क्योंकि गैर प्रतिबंधित राज्यों से इसकी आपूर्ति संभावित है। श्री मोदी ने बताया कि राज्य में ठोस कचरों का संग्रहण तो हो रहा है परन्तु इसका निष्पादन कैसे हो, स्पष्ट नहीं है। कचरों से उर्जा उत्पन्न करने की बात की जाती है। इस सम्मेलन में इसका भी निदान खोजा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि जीव-चिकित्सा अपशिष्टों के बेहतर प्रबंधन हेतु बड़े अस्पतालों के लिए कैप्टिव अपशिष्ट प्रबंधन इकाई लगाने एवं 75 किमी की दूरी के अंतर्गत आने वाले सभी अस्पतालों के जैविक कचरों के सामूहिक जीव चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन सुविध में ही निस्तारित करने की बाध्यता समाप्त करने पर भी इस सम्मेलन में चर्चा की जानी चाहिए।