रामविलास पासवान ने विस्तार से बताया सीएए, एनपीआर और एनआरसी के बारे में, भ्रम से बचने की दी सलाह
पटना। लोक जनशक्ति पार्टी के संस्थापक व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने शुक्रवार को नागरिकता संशोधन अधिनियम-2019 (सीएए), राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) और नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर (एनआरसी) को लेकर लोगों का भ्रम दूर करते हुए विस्तारपूर्वक बताया। केंद्रीय मंत्री ने यह भी कहा कि मैंने जीवनभर दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों एवं अल्पसंख्यकों के अधिकार के लिए संघर्ष किया है। सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता मेरा और मेरी पार्टी का मिशन है। कोई भी सरकार नागरिकता तो दूर रही, इनके अधिकार पर उंगली नहीं उठा सकती है।
रामविलास ने ट्वीट कर कहा कि सीएए को लेकर पूरे देश में सुनियोजित तरीके से भ्रम फैलाया जा रहा है। प्रधानमंत्री ने बार-बार कहा है कि नागरिकता संशोधन कानून नागरिकता देने के लिए है, नागरिकता छीनने के लिए नहीं बना है।’ सीएए का किसी भारतीय नागरिक की नागरिकता से कोई संबंध नहीं है। पाकिस्तान, अफगानिस्तान या बांग्लादेश के हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी या इसाई जो 31 दिसंबर, 2014 से पहले भारत में रह रहे हैं, वह भारत की नागरिकता के पात्र होंगे। देश के मुसलमानों को चिंता करने की जरूरत नहीं है। जहां तक एनआरसी की बात है, इस पर अभी कोई चर्चा नहीं हुई है और इसका किसी धर्म से कोई संबंध नहीं है। कोई भी व्यक्ति धर्म के आधार पर नागरिकता से वंचित नहीं किया जा सकता है। वहीं जहां तक एनपीआर की बातें है, यह सामान्यतया जनगणना है। देश में जनगणना वर्ष 1887 से शुरू हुई और यह हर 10 साल पर होती है। इसमें कौन देश का नागरिक है और कौन नागरिक नहीं है, इसका कोई ब्यौरा नहीं होता है। यह सिर्फ परिवार के सदस्यों की संख्या एवं अन्य विवरण का संकलन होता है। भारत की नागरिकता प्राप्त करने का प्रावधान नागरिकता अधिनियम 1955 में है, जिसके अनुसार किसी भी देश के किसी भी धर्म का व्यक्ति जो भारत के पंजीकरण नियमों या प्राकृतिक रूप से देश में रहने की शर्तों को पूरा करते हों, भारत के नागरिक बन सकते हैं। साल 2003 में नागरिकता कानून में संशोधन किया गया, जिसमें एनआरसी की अवधारणा तय हुई थी। साल 2004 में यूपीए की सरकार बनी, जो इसे निरस्त कर सकती थी। निरस्त करने के बजाय 7 मई, 2010 को लोकसभा में तत्कालीन गृहमंत्री पी चिदंबरम ने कहा था- ‘यह स्पष्ट है कि एनआरसी, एनपीआर का उपवर्ग होगा।
उन्होंने अपने ट्वीट में कहा कि यह भी भ्रम फैलाया जा रहा है कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं वंचित वर्ग के लोगों के पास जन्मतिथि या माता-पिता के जन्मस्थल या जन्मतिथि का दस्तावेज नहीं रहने पर उन्हें संदेहास्पद सूची में डाल दिया जायेगा, जो बिलकुल गलत है। नागरिक या उसके माता-पिता की जन्मतिथि या जन्मस्थली का सबूत आवश्यक नहीं है। सक्षम प्राधिकारी के पास किसी व्यक्ति द्वारा नागरिकता पंजीकरण के लिए आवेदन देने पर गवाह, अन्य सबूत या स्थानीय लोगों से पूछताछ आदि के आधार पर नागरिकता दी जायेगी। चाहे दलित हों, आदिवासी हों, पिछड़ा हो, अल्पसंख्यक हो या उच्च जाति का हो, ये देश के मूल निवासी हैं, नागरिकता उनका जन्मसिद्ध अधिकार है। उसे कोई भी सरकार छीन नहीं सकती। किसी भी भारतीय नागरिक को अनावश्यक परेशान नहीं किया जायेगा। नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के प्रावधान संविधान की 6वीं अनुसूची में शामिल असम, मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा या मिजोरम के आदिवासी क्षेत्रों पर लागू नहीं होंगे।
उन्होंने बताया कि विदेशियों को भी नागरिकता कानून-1955 के तहत भारत की नागरिकता मिलती रही है। भारतीय मूल के 4,61000 तमिलों को 1964 से 2008 के बीच भारत की नागरिकता मिली। विगत छह वर्षों में 2830 पाकिस्तानी, 912 अफगानी और 172 बांग्लादेशियों को भारत की नागरिकता दी गयी। नागरिकता (संशोधन) अधिनियम देश में आये घुसपैठियों के खिलाफ लागू होता है। यही कारण है कि संसद के दोनों सदनों ने इसे पास किया, जबकि राज्यसभा में एनडीए का बहुमत भी नहीं है।


