राज्यसभा में बोले आरसीपी सिंह : कहीं से किसान विरोधी नहीं है तीन कृषि बिल
पटना। जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं राज्यसभा में दल के नेता आरसीपी सिंह ने बुधवार को राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव का समर्थन करते हुए किसान बिल के संबंध में कहा कि ये तीनों बिल कहीं से किसान विरोधी नहीं हैं। उन्होंने कहा, क्या इन तीनों बिल में कहीं इस बात की चर्चा है कि किसान सरकार द्वारा बताई किसी चीज की खेती करें? उन्होंने कहा कि खेड़ा आंदोलन या बारदोली आंदोलन को ही लें तो ये आंदोलन लगान को लेकर हुए थे। बता दीजिए कि इन तीनों बिल में कहीं लगान का कोई मुद्दा है?
बिहार में अन्न का उत्पादन 181 लाख टन
श्री सिंह ने मंडी को लेकर कहा कि मैं बिहार और उत्तर प्रदेश दोनों जगहों पर रहा, दोनों जगहों पर मंडी परिषद भ्रष्टाचार का अड्डा हुआ करती थी। बिहार में जब हमारी सरकार आई, हमने एपीएमसी एक्ट को खत्म किया और आज उसका परिणाम देखिए। 2005 में बिहार में अन्न का उत्पादन 81 लाख टन था, आज 181 लाख टन है। प्रोक्योरमेंट की बात करें तो वो भी बहुत कम था। आज केवल धान के लिए हमारा लक्ष्य 45 लाख टन का है। प्रोडक्टिविटी की बात करें तो मक्के का उत्पादन 135%, धान का 119% और गेहूं का 118% बढ़ा है। उन्होंने कहा कि ऐसे मुद्दे पर लोगों को हरगिज कन्फ्यूज न करें।
तीन कृषि कानून पर की चर्चा
आरसीपी सिंह ने किसान बिल के पहले कानून की चर्चा करते हुए कहा कि पहला कानून कहता है कि किसान के पास अपनी उपज बेचने की आजादी है। इसके लिए उस पर कोई रोक नहीं है, वो पूरी तरह स्वतंत्र है। इसी तरह दूसरे कानून के संदर्भ में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की बात करते हुए उन्होंने कहा कि बिहार, यूपी में तो अभी भी इन्फॉर्मल कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग हो रही है। बटाई आखिर है क्या? उन्होंने कहा कि कॉन्ट्रैक्ट इन्फोर्स नहीं होता, बल्कि इसमें आपका अपना विलिंगनेस होता है। अगर इससे किसान को सहूलियत होगी, उसकी आमदनी बढ़ेगी तो वो कॉन्ट्रैक्ट करेगा, नहीं तो नहीं करेगा। इसी तरह तीसरे कानून एसेंसियल कमोडिटी एक्ट के संबंध में उन्होंने कहा कि ये 1954-55 में आया था। वो स्कारसिटी का जमाना था। उस समय जब देश में बाहर से अनाज आता था, तब हम लोगों को खिला पाते थे। आज खाद्यान्न, फल, सब्जी के उत्पादन में हम सरप्लस में हैं।
बिल कहीं से किसान विरोधी नहीं
श्री सिंह ने आगे कहा कि तीनों बिल कहीं से किसान विरोधी नहीं है, लेकिन अगर लगता है कि उसमें और सुधार की जरूरत है तो बैठकर बात करें। आपसी संवाद करें। उन्होंने कहा कि लोहिया जी ने कलही राजनीति से ऊपर उठने की बात करते थे। हमें इसे समझने की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार सरकार वार्ता के लिए बुला रही है, लेकिन आपलोग सरकार को ही हठधर्मी बता रहे हैं। अपनी हठधर्मिता को देख ही नहीं रहे। आखिर आपलोगों को बात करने से कौन रोक रहा है? आइए बात कीजिए। कैसे किसानों की आमदनी बढ़े, कैसे हमारी खेती लाभकर हो, कैसे कृषि को लोग नहीं छोड़ें, इस पर चर्चा होनी चाहिए। इसके लिए हमेशा सब जगह लोगों को भाग लेना चाहिए। श्री सिंह ने कहा कि हमलोगों के लोकतंत्र की जड़ें मजबूत हो रही हैं और लोकतंत्र में संपर्क और संवाद सबसे महत्वपूर्ण है, इसको खत्म नहीं होने देना चाहिए। मेरा सबसे अनुरोध है कि अपने-अपने संपर्क के लोगों से संवाद स्थापित करें और समस्या का निदान ढूंढ़ें।
कोरोना काल में बिहार आने वाले 24 लाख श्रमिकों की देखभाल की
कोरोना की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि अमेरिका जैसे देश की मोरटेलिटी रेट 2% के आसपास है और भारत में 1.5% के आसपास। अमेरिका की आबादी 30 करोड़ है और हमारी 130 करोड़। फिर भी वहां 2.29 करोड़ लोग संक्रमित हुए, जबकि हमारे यहां 1.07 करोड़। उनका रिकवरी रेट 64% और हमारा 97% है। और तो और जिस बिहार को लोग कभी कोसा करते थे, आज वहां का मोरटेलिटी रेट .5% (आधा प्रतिशत) है। कोरोना काल में बाहर से बिहार आने वाले 24 लाख श्रमिकों की देखभाल बिहार सरकार ने की। इस दौरान नीतीश सरकार ने 10 हजार करोड़ रुपए केन्द्र सरकार के अतिरिक्त खर्च किए। कोरोना वैक्सीन की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि यह गौरव का विषय है कि हमारे वैज्ञानिकों ने साल भर के अंदर वैक्सीन बनाया। इस बात के लिए हमें और गर्व होना चाहिए कि हमारे यहां बनी वैक्सीन की कीमत बाहर के वैक्सीन से कई गुना कम है। हमें अपने वैज्ञानिकों को सैल्यूट करना चाहिए।