बात मंहगाई की: भूखे मरो पर मुंह न खोलो, राजा जो बोले……

खगौल। हर शनिवार नुक्कड़ संवाद श्रृंखला की नई कड़ी में सदा लोक मंच ने उदय कुमार लिखित एवं निर्देशित नाटक “बात मंहगाई की” का प्रदर्शन किया। दानापुर रेलवे स्टेशन के पास आॅटो स्टैंड में गीत “भूखे मरो पर मुंह न खोलो, राजा जो बोले वही बोल बोलो, बेरोजगारी महंगाई बढ़ी है- उससे क्या, आटा-चावल-तेल-दाल चढ़ी है-उससे क्या, खोला जो मुंह तो लाठी पड़ेगी, गुंडों की टोली छाती चढेगी, रोते रहो पर राजा की जय बोलो” से नाटक की शुरूआत हुई। नाटक में बेतहाशा बढ़ती जा रही महंगाई से परेशान आमजन की पीड़ा को दर्शाया गया। पहले से ही महंगाई की मार ने लोगों की कमर तोड़ रखी है। ऊपर से रोजमर्रा के खाने-पीने के समान आटा-चावल-दाल-तेल-चीनी आदि आवश्यक वस्तुओं के दाम में अचानक भारी वृद्धि ने लोगों के भोजन पर भी भूचाल ला दिया है। पेट्रोल, डीजल, गैस सिलेंडर के निरंतर बढ़ते दाम कोढ़ में खाज की तरह मुसीबत बढ़ाते जा रहे हैं। महंगाई का मारा एक गरीब डॉक्टर के पास आता है और कहता है- मेरा पेट ही निकाल दीजिए, ना रहेगा पेट, ना लगेगी भूख, ना डराएगा महंगाई का भूत। यहीं से शुरू होती है महंगाई के मारे पात्रों की व्यथा। सब मिलकर अपनी पीड़ा सुनाना चाहते हैं पर सोशल मीडिया, चैनल, पक्ष-विपक्ष सब जगह हाउसफुल का बोर्ड लगा हुआ है। वहां जनता के वास्तविक मुद्दों के लिए जगह नहीं है। वहां तो राजा का बाजा बज रहा है। रजिस्टर है-मिनिस्टर है, हिन्दू है-मुसलमान है, पड़ोसी देश है, मंदिर है-मस्जिद है, बयान है-जुमले है, राजा के मन की बात है, देशभक्त है-देशद्रोही है, चमक है-दमक है, पर नहीं है तो जनता के असली मुद्दे। नाटक में पात्र ऐसे हालात में पहुंच जाते हैं जहां वह महंगाई का मुद्दा उठाते हैं, तो जबरन उनकी आवाज दबाने की कोशिश की जाती है। हद तो यह हो गई है कि उनके साथ ही अपराधी जैसा व्यवहार किया जाने लगता है। कलाकर कहते हैं- अपना बाजा बजाओ, शोर करो, पर कुछ हमारी भी सुनो। कलाकरो में शिवम कुमार, उदय कुमार, भोला सिंह, प्रमोद सोनी, अनिल कुमार, सूरज कुमार, गौतम भारती आदि शामिल थे।

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