फुलवारी विधानसभा में महागठबंधन और एनडीए उम्मीदवार के बीच कांटे की टक्कर, पढ़ें खास स्टोरी

जदयू के अरुण मांझी की तीर और माले के गोपाल रविदास के तीन तारा के बीच होगा चुनावी अखाड़ा
अतिक्रमण के बीच हाईवे सड़क पर जाम और पुनपुन में जलजमाव है मुख्य चुनावी मुद्दा


फुलवारी शरीफ (अजीत)। बिहार विधान सभा चुनाव 2020 के चुनावी महासमर में फुलवारी (सुरक्षित) विधानसभा क्षेत्र में जातीय समीकरण का बोलबाला हावी रहा है। इस विधानसभा क्षेत्र में महागठबंधन और एनडीए उम्मीदवार के के बीच कांटे की टक्कर के आसार बन गये हैं। ऐसे में जदयू के अरुण मांझी की तीर और माले के गोपाल रविदास के तीन तारा के बीच मुख्य चुनावी मुकाबला होने जा रहा है। इस बार इस सीट से कुल 26 उम्मीदवार अपने-अपने दावे और वादे के साथ मतदाताओं को रिझाने में लगे हैं, लेकिन मतदाताओं के बीच एनडीए बनाम महागठबंधन के उम्मीदवारों में ही जीत-हार की पूरे क्षेत्र में चर्चा है। तीर और तीन तारा के अखाड़े में जन अधिकारी पार्टी के उम्मीदवार सत्येंद्र पासवान अपनी कैंची चलाकर दोनों ही प्रमुख गठबंधन के मतदताओं को अपने पाले में करने में जी-जान से कूदे हैं। वैसे इस बार यहां से फुलवारी प्रखंड के दो-दो पूर्व प्रमुख राधे रमण पासवान और कमलेश कांत चौधरी भी मैदान में हैं। पटना के अनीसाबाद से औरंगाबाद के हरिहरगंज तक जाने वाली एनएच-98 सड़क और अनीसाबाद-बाईपास सहित सिपारा से पुनपुन-मसौढ़ी-जहानाबाद और गया तक जाने वाली हाईवे किनारे अतिक्रमण के चलते रोजाना हाईवे पर लगने वाले भीषण जाम की गंभीर समस्या, पुनपुन बाजार और फुलवारी के कई इलाके में जलजमाव एवं फुलवारी-खगौल मुख्य मार्ग किनारे के मुख्य ड्रेनेज नाला का कई वर्षो बाद भी पूरा नहीं होना मुख्य मुद्दे हैं।
पटना जिले के तहत आने वाली फुलवारी विधानसभा सीट पर इस बार एनडीए के अरुण मांझी और भाकपा माले के महागठबंधन उम्मीदवार गोपाल रविदास के बीच मुकाबला दिलचस्प होने जा रहा है। करीब 30 वर्षो से भी अधिक समय से यह विधानसभा (अनुसूचित जाति-सुरक्षित) सीट है। जिसे समान्य सीट में बदलने की वर्षो मांग किसी सरकार ने अब तक पूरा नहीं किया। सामान्य जातीय वर्ग के लोगों को फुलवारी से चुनाव लड़ने की इच्छा कब पूरी होगी, इसका अंदाजा किसी को नहीं है। पहले नौबतपुर-फुलवारी और संपतचक प्रखंडों से मिलकर बना फुलवारीशरीफ सुरक्षित विधानसभा सीट नए परिसीमन में केवल पुनपुन और फुलवारी प्रखंड को जोड़कर बनाया गया। 2015 विधानसभा चुनाव में जनता दल (यू) और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के बीच गठबंधन था और यह सीट जद (यू) के खाते में गई थी। इस बार जदयू-भाजपा गठबंधन बनाम महागठबंधन है, साथ ही यहां से 2015 में चुनाव जीतने वाले और बिहार सरकार में उद्योग मंत्री रहे श्याम रजक भी जदयू छोड़ फिर से राजद का दामन थाम चुके हैं।
फुलवारी विधानसभा में 26 प्रत्याशियों की नजर यहां के कुल 3,64,209 मतदाताओं में 1,92,496 पुरुष और 1,71,701 महिला मतदाताओं पर टिकी है। वहीं पिछली बार के चुनाव के समय वर्ष 2015 में कुल मतदाता: 3,16,224 थे, जिनमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 1,71,439 और महिला मतदाताओं की संख्या 1,44,785 थी, जो इस बार बढ़कर कुल 3,64,209 मतदाता के रूप में सामने हैं। जो इन प्रत्याशियों के किस्मत का फैसला मंगलवार को करेंगे।


पटना जिले के इस सीट पर यहां दूसरे चरण में चुनाव होने वाले हैं। वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में राजद और जदयू साथ चुनाव मिलकर चुनावी मैदान में थी। जदयू की ओर से श्याम रजक को पिछले चुनाव में यहां पर 94,094 वोट मिले थे, जबकि हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के राजेश्वर मांझी को 48,381 वोट मिला था। राज्य सरकार में कई बार मंत्री रहे श्याम रजक को मतदाताओं ने 1995 से लेकर 2015 तक इस सीट से जितवाया है। इस दौरान रजक कभी राजद तो कभी जदयू से विधायक चुने जाते रहे हैं। इस बार जदयू छोड़कर राजद में आने के बावजूद यह सीट गठबंधन में भाकपा माले के खाते में चली गयी, जिससे श्याम रजक की चुनाव लड़ने की मंशा धरी की धरी रह गयी।
राबड़ी देवी की सरकार में ऊर्जा, जनसंपर्क विभाग और कानून राज्य मंत्री रहे श्याम रजक 2009 में राजद छोड़कर जदयू में गये थे। कभी इन्हें लालू प्रसाद के बेहद करीब माना जाता था। एक समय श्याम रजक और रामकृपाल यादव को राम-श्याम की जोड़ी के नाम से खूब प्रसिद्धि भी मिली थी। हालांकि बाद में दोनों की राहें राजद से जुदा-जुदा हो गई। श्याम रजक 2010 में जदयू की टिकट पर फुलवारी शरीफ सीट से विधानसभा चुनाव जीते और नीतीश सरकार में मंत्री बने। 2015 में फिर इसी सीट से जदयू के टिकट पर जीते मगर महागठबंधन की सरकार में मंत्री नहीं बन सके। 2019 में हुए मंत्रिमंडल विस्तार में एक बार फिर मुख्यमंत्री ने उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाकर उद्योग विभाग की कमान सौंपी थी। उसके बाद अगस्त 2020 में नीतीश कुमार की सरकार पर सामाजिक न्याय छीनने का आरोप लगाकर राजद में वापस लौट आए। श्याम रजक के बाद इस सीट से अरुण कुमार मांझी को नीतीश कुमार का आशीर्वाद मिला है तो वहीं भाकपा माले के गोपाल रविदास को महागठबंधन के उम्मीदवार के रूप में राजद, कांग्रेस, सीपीआई, सीपीएम के समर्थकों से जीत की आस टिकी है।


बताते चलें पटना के बाद अब वर्तमान में पाटलिपुत्र लोकसभा क्षेत्र में आने वाली फुलवारी सीट 1977 में अस्तित्व में आया था, तब जनता पार्टी के रामप्रीत पासवान ने यहां जीत का खाता खोला था, लेकिन उसके बाद लगातार तीन विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के संजीव प्रसाद टोनी ने जीत का परचम लहराया और राज्य सरकार में मंत्री भी रहे। 1995 के चुनाव में इस सीट पर श्याम रजक के चुनाव जीतने पर जनता दल का खाता खुला, बाद में श्याम रजक जदयू के विभाजन के दौरान लालू प्रसाद के साथ राजद में शामिल हो गये और वह 2000 और 2005 में राजद से विधानसभा पहुंचे। साल 2009 में यहां उप चुनाव हुए तब रजक जदयू में शामिल हो चुके थे लेकिन उप चुनाव में राजद इस सीट पर जीतने में सफल रही। श्याम रजक को राजद के उम्मीदवार उदय कुमार मांझी से हार का स्वाद चखना पड़ा था और बाद में फिर 2010 में विधानसभा का चुनाव हुआ, तब रजक जदयू से अपनी सीट पर कब्जा करने में सफल रहे। 2010 के चुनाव में राजद के उदय कुमार को 21180 वोट के अंतर से हराया, फिर 2015 के चुनाव में रजक ने 94,094 वोटों के साथ इस सीट पर जीत हासिल की।

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