नेशनल कांफ्रेंस में बोले मंत्री संजय झा, बिहार सरकार हर खेत में पानी पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध

* बिहार में जलवायु अनुकूल सिंचाई प्रबंधन से समृद्ध होगी कृषि
* ‘वाटर टू एवरी फार्म: बिल्डिंग क्लाइमेट रेसिलिएंट एग्रीकल्चर इन बिहार’ पर नेशनल कांफ्रेंस आयोजित


पटना। सेंटर फॉर एनवायरनमेंट एंड एनर्जी डेवलपमेंट (सीड) द्वारा राजधानी के होटल मौर्या में नेशनल कांफ्रेंस ‘वाटर टू एवरी फार्म: बिल्डिंग क्लाइमेट रेसिलिएंट एग्रीकल्चर इन बिहार’ का आयोजन किया गया, जिसका मुख्य उद्देश्य राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी योजना ‘हर खेत को सिंचाई का पानी’ को मजबूत करने पर विचार-विमर्श करना था, ताकि कृषि को जलवायु संकट से सुरक्षित और सततशील बनाते हुए तीव्र विकास को सुनिश्चित किया जा सके। क्लाइमेट चेंज के परिप्रेक्ष्य में कृषि सिंचाई और जल संकट के समाधान पर केंद्रित इस सम्मेलन में विविध स्टेक होल्डर्स जैसे सरकारी विभागों, उद्योग संगठनों, रिसर्च थिंक टैंक, किसान संघों और सिविल सोसाइटी संगठनों के प्रतिनिधियों ने जलवायु अनुकूल कृषि और जल प्रबंधन पद्धतियों के ठोस क्रियान्वयन पर जोर दिया।
‘सात निश्चय-2’ में हर खेत को पानी एक महत्वाकांक्षी कार्यक्रम


सम्मेलन में मुख्य अतिथि बिहार सरकार के जल संसाधन मंत्री संजय कुमार झा ने कहा किराज्य सरकार के ‘सात निश्चय-2’ पहल के तहत हर खेत को पानी उपलब्ध कराना एक महत्वाकांक्षी कार्यक्रम है और हम सभी किसानों को सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध हैं, जिससे किसानों की आमदनी बढ़ाने, ग्रामीण क्षेत्रों में समृद्धि लाने और राज्य की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में मदद मिलेगी। हम इस तथ्य से अवगत हैं कि कृषि क्षेत्र प्रकृति के कोप के रूप में हरेक साल सुखाड़ और बाढ़ का सामना कर रहा है और हाल के वर्षों में क्लाइमेट चेंज के कारण हम इनकी विभीषिका झेल चुके हैं। ऐसे में क्लाइमेट चेंज के दुष्परिणामों से कृषि एवं किसानों की सुरक्षा से जुड़े सभी समाधानों का और हरेक खेत तक सिंचाई सुविधा से संबंधित उपायों का स्वागत है और इन्हें इस योजना में शामिल किया जायेगा ताकि जन-जन तक इसके लाभों को पहुंचाया जा सके। उन्होंने कहा कि कभी अथाह जल स्रोतों के लिए विख्यात बिहार को पिछले दशक से जल संकट का सामना करना पड़ रहा है। उत्तर और दक्षिण बिहार के 21 जिलों और गंगा से सटे इलाकों में भूजल का दोहन खतरनाक स्तर पर है, जो पारम्परिक जल स्रोतों की अनदेखी एवं दुरूपयोग से गंभीर हो गया है।
कृषि मंत्री बोले, सिंचित भूमि का दायरा बढ़ाने को प्रयासरत
कांफ्रेंस के व्यापक उद्देश्यों का समर्थन करते हुए विशिष्ट अतिथि कृषि मंत्री अमरेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि राज्य सरकार जल जीवन हरियाली मिशन को सफलतापूर्वक चला रही है, जिसके तहत हम बड़े पैमाने पर पारंपरिक जल संरचनाओं जैसे आहर, पाइन, कुंओं का निर्माण एवं जीर्णोद्धार कर रहे हैं ताकि भूजल स्तर में बढ़ोतरी करते हुए सिंचाई एवं अन्य घरेलू उपयोग के लिए जल की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके। राज्य सरकार सिंचित भूमि का दायरा बढ़ाने के लिए ठोस प्रयास कर रही है और राज्य में हरेक किसान को सिंचाई सेवाएं प्रदान करने एवं कृषि को लाभपरक एवं आकर्षक पेशा बनाने के लिए प्रतिबद्ध है।


कृषि को जलवायु संकट से निबटने में सक्षम बनाना होगा
वहीं सीड के सीईओ रमापति कुमार ने कहा कि क्लाइमेट चेंज के संदर्भ में बिहार की संवेदनशील स्थिति को देखते हुए हमें कृषि को जलवायु संकट से निबटने में सक्षम और सुरक्षित बनाना होगा। इस संदर्भ में हर खेत को पानी उपलब्ध कराना एक सराहनीय योजना है, हालांकि इसे जल, जीवन, हरियाली मिशन के उद्देश्यों के साथ जोड़ने की जरूरत है, ताकि सततशील और कुशल जल प्रबंधन के जरिए कृषि और अन्य गतिविधियों के लिए जल की उपलब्धता सुनिश्चित हो सके। चूंकि क्लाइमेट चेंज के कारण कृषि और जल संकट से आम लोगों की आजीविका और जीवन प्रभावित हो रही है, ऐसे में ह्यहर खेत को पानीह्ण योजना की सफलता केवल जल संसाधन और कृषि विभाग पर निर्भर नहीं करती बल्कि इसके लिए ग्रामीण विकास, ऊर्जा, लघु सिंचाई, वित्त आदि विभागों के बीच कन्वर्जेन्स और एकीकृत विजन के साथ तालमेल जरूरी है।
इन्होंने किया संबोधित
सम्मेलन को प्रो. (डॉ.) प्रभात पी. घोष, निदेशक, एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टिट्यूट (आद्री) ने भी संबोधित किया और तकनीकी सत्र में श्री नंदकिशोर (आईएफएस), डायरेक्टर-हॉर्टिकल्चर, बिहार सरकार, विवेक तेजस्वी, डिप्टी डायरेक्टर, आद्री, नन्द किशोर झा, चीफ इंजीनियर, प्लानिंग-मॉनिटरिंग, जल संसाधन विभाग, डॉ. अनामिका प्रियदर्शिनी, महिला किसान, गोपाल कृष्ण, पब्लिक पॉलिसी एनालिस्ट, एकलव्य प्रसाद, मेघ पाइन अभियान, धीरज कुमार, जैन इरीगेशन, राहुल सिंह, प्रदान और अभिषेक प्रताप, एनर्जी एक्सपर्ट, असर ने भागीदारी की। असर सोशल इम्पैक्ट के सहयोग से आयोजित इस कांफ्रेंस में कई महत्वपूर्ण बिंदु उभर कर आए, जैसे भूजल की प्रचुरता के कारण बिहार अब खाद्यान्न उत्पादन का अगला केंद्र माना जा रहा है, जो राज्य के समक्ष यह बड़ा दायित्व पेश करता है कि वह जल संसाधन का सततशील ढंग से प्रबंधन करे। सभी एग्रो क्लाइमेट इलाकों में एक विस्तृत अध्ययन की जरूरत है, ताकि जल संसाधन की कमी या प्रचुरता के अनुरूप जल प्रबंधन किया जा सके।
बिहार के 36 जिले जलवायु परिवर्तन के लिहाज से काफी संवेदनशील
बता दें जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों के लिहाज से बिहार देश के सबसे संवेदनशील राज्यों में से एक है, जहां कृषि के संदर्भ में देश के सबसे संवेदनशील 20 जिलों की सूची में राज्य के 16 जिले आते हैं। राज्य के 38 जिलों में से 36 जिले जलवायु परिवर्तन के लिहाज से गंभीर या काफी संवेदनशील हैं। कृषि बिहार की अर्थव्यवस्था का आधार स्तंभ है और पानी खेती का सबसे महत्वपूर्ण संसाधन, ऐसे में कृषि एवं जल के संदर्भ में क्लाइमेट चेंज का समाधान राज्य की आर्थिक सुरक्षा और खुशहाली के लिए अत्यावश्यक है।

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