डेयरी दूध के पाश्चराइजेशन तकनीक को बदलने की आवश्यकता

* गाय, भैंस के दूध से एलर्जी हो तो बकरी का दूध पीना फायदेमंद
* डेयरी के क्रियाशील खाद्य पदार्थों पर एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम


फुलवारी शरीफ। बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, संजय गांधी गव्य प्रौद्योगिकी संस्था और भारतीय कृषि उच्चतर शिक्षा परियोजना के संयुक्त तत्वावधान में बिहार पशु चिकित्सा महाविद्यालय के पशुधन उत्पादन तकनीकी विभाग द्वारा डेयरी मूल के क्रियाशील खाद्य पदार्थों पर एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। प्रशिक्षण कार्यक्रम में एक्सपर्ट के तौर पर राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्था, करनाल के डेयरी प्रौद्योगिकी विभाग के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. एके. सिंह और वैज्ञानिक डॉ. हीना शर्मा मौजूद थे।
इस अवसर पर डॉ. एके सिंह ने दूध में मौजूद बैक्टीरिया पर एचपीपी का प्रभाव और एचपीपी ट्रीटमेंट के फायदे पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि ग्राहक को दूध में बेहतर क्वालिटी, सुरक्षित दूध और ऐसी दूध की अपेक्षा रहती है, जिसकी सेल्फ लाइफ अधिक हो। वर्तमान परिस्थिति में तरल दूध और दूध के अन्य उत्पादों के सेल्फ लाइफ को बढ़ाने के लिए कई प्रकार के रसायन का प्रयोग किया जाता है, जिससे दूध में मौजूद पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। उन्होंने आगे कहा कि भारत की जलवायु गरम और उष्णकटिबंधीय होती है, जो हानिकारक जीवाणुओं के लिए अनुकूल है और ये दूध व दूध के अन्य उत्पादों को बहुत जल्दी खराब कर देते हैं। वर्तमान समय में जो पाश्चराइजेशन तकनीक का उपयोग किया जा रहा है, उसे बदलने की आवश्यकता है और उसके जगह पर यूएचटी (अल्ट्रा हाई टेम्परेचर ट्रीटमेंट) पद्धति का उपयोग में लाना अनिवार्य हो गया है, जिसके माध्यम से हम दूध और उसके अन्य उत्पादों के पोषक तत्वों को बचा सकते हैैं।


वहीं डॉ. हीना शर्मा ने बकरियों के दूध और उनसे बने उत्पादों पर अपना व्याख्यान पेश करते हुए कहा कि बकरी के दूध का ज्यादा से ज्यादा उपयोग को बढ़ावा देने की जरुरत है। बकरी के दूध में बहुत अधिक मात्रा में पोषक तत्व पाए जाते हैं। उन्होंने कहा कि डेंगू जैसी बीमारी में बकरी का दूध का सेवन बहुत फायदेमंद हो सकता है।
बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के डीन डॉ. जेके प्रसाद ने कहा कि डेयरी के उत्पाद और दूध रोजमर्रा की एक अहम जरुरत है, मगर आज सबसे बड़ी चुनौती है क्वालिटी प्रोडक्ट का मिलना। बिहार पशु चिकित्सा महाविद्यालय के पशुधन उत्पादन तकनीकी विभाग की विभागाध्यक्ष-सह-कार्यक्रम की संयोजक डॉ. सुषमा कुमारी ने कहा कि कोरोना के इस दौर में सेल्फ-इम्युनिटी का महत्व सबसे अधिक हो गया है। ऐसे समय में शरीर के रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए क्रियाशील खाद्य पदार्थों की भूमिका रोग से लड़ने और हमें स्वास्थ्य रहने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
कार्यक्रम में लेक्चर सेशन के बाद विद्यार्थियों को एक्सपर्ट द्वारा हैंड्स आॅन ट्रेनिंग भी कराया गया, जिसमें मोज्जरेल्ला चीज बनाने की विधि और बनाने से पैकेजिंग तक के तमाम तकनीकी प्रक्रियाओं की जानकारी दी गयी।
इस अवसर पर डॉ. बिपिन कुमार, डॉ. पुरुषोत्तम कौशिक, डॉ. सोनिया, डॉ. संजय कुमार, डॉ. गार्गी महापात्रा, डॉ. रोहित जायसवाल, डॉ. भूमिका, डॉ. दुष्यंत, डॉ. भावना, डॉ.सूचित, डॉ. पुष्पेंद्र, डॉ. प्रमोद, डॉ. अलोक सहित महाविद्यालय के विद्यार्थी उपस्थित थे।

About Post Author

You may have missed