December 8, 2025

जदयू सांसद को राजद की चुनौती : राजद शासनकाल का दुष्प्रचार करने के लिए झूठ का ले रहे सहारा

पटना। राजद के प्रदेश प्रवक्ता चित्तरंजन गगन ने कहा है कि जिस प्रकार गत विधानसभा चुनाव में मिले जनादेश के साथ धोखाधड़ी कर फर्जी तरीके से बिहार में फर्जी सरकार का गठन किया गया, उसी प्रकार सत्ताधारी दलों के नेताओं द्वारा फर्जी दावे और फर्जी आंकड़े द्वारा लोगों को गुमराह करने का प्रयास किया जा रहा है। राजद नेता ने कहा कि सुनियोजित तरीके से राजद शासनकाल का दुष्प्रचार का सत्ता पर काबिज होने वाले लोग आज सत्ता में बने रहने के लिए गलत तथ्य और झूठ के सहारे नई पीढ़ी को गुमराह करने की साजिश कर रहे हैं।
राजद नेता ने जदयू सांसद राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह द्वारा राजद शासनकाल में हुए नरसंहारों के बारे में दिये गये 118 की संख्या को चुनौती देते हुए कहा है कि वे मात्र दस नरसंहारों के बारे में बता दें जो राजद शासनकाल में हुआ है और मात्र ऐसे एक नरसंहार का नाम बता दें जिसमें 100 लोगों की हत्या हुई है। राजद नेता ने जदयू नेता पर झूठ बोल कर नई पीढ़ी को गुमराह करने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि हकीकत यह है कि पहले से चल रहे नरसंहारों के दौर को राजद शासनकाल में नियंत्रित किया गया और नीतीश कुमार को नरसंहार मुक्त बिहार सौंपा गया।
राजद नेता ने आगे कहा कि बिहार में नरसंहार की शुरूआत 27 मई 1977 को बेलछी से हुआ था (जो अभी बाढ़ अनुमंडल अंतर्गत आता है), जिसमें 11 दलित और अतिपिछड़ी जाति के लोगों की हत्या कर दी गई थी। फिर फरवरी 1980 में ही पिपरा (पटना जिला) और पारस विगहा (जहानाबाद) में नरसंहार हुआ। लालू यादव जब 1990 में मुख्यमंत्री बने तो उन्हें नरसंहारों वाला राज्य मिला था पर जब 2005 में नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने तो उन्हें नरसंहार मुक्त बिहार सौंपा गया।
राजद नेता ने कहा कि जदयू सांसद को बताना चाहिए कि बिहार में हुए नरसंहारों के अभियुक्तों को किसका संरक्षण मिल रहा था। राज्य में हुए नरसंहारों की जांच के लिए राजद की सरकार द्वारा अमीर दास आयोग का गठन किया गया था। जदयू सांसद को बताना चाहिए कि किसको बचाने के लिए नीतीश कुमार ने उस आयोग को भंग कर दिया। जदयू सांसद को बताना चाहिए कि किस सरकार की लापरवाही से बथानी (भोजपुर), लक्षमणपुर बाथे (अरवल), शंकर बिगहा और मियांपुर नरसंहारों के आरोपी न्यायालय से दोषमुक्त हो गये। उपरोक्त नरसंहारों में हुए न्यायालय के फैसलों के खिलाफ ऊपर के न्यायालयों में अपील क्यों नहीं की गई।

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