October 29, 2025

चिंता: भारत में बांझपन के कुल दर्ज मामलों में से 30-40% पुरुष जिम्मेदार, पटना में पुरुष बांझपन लगभग 10%

पटना। भारत में पुरुषों के बांझपन पर बहुत कम चर्चा होती है और आमतौर पर इसके ऊपर बहुत कम बातचीत करके इस बात की अनदेखी की जाती है कि ये भी एक स्वास्थ्य का मुद्दा है। परंपरागत रूप से गर्भधारण न होने के लिए महिलाओं को जिम्मेदार बताया जाता है। पटना में आयोजित एक पत्रकार वार्ता में सृजन फर्टिलिटी क्लिनिक के सलाहकार डॉ. हिमांशु रॉय ने प्रजनन क्षमता के बारे में आम मिथकों पर खुलकर चर्चा की और पुरुषों में बांझपन के बढ़ते मामलों की बात करते हुए तथ्यों के साथ बताया कि किस तरह पुरुषों में बढ़ता बांझपन चिकित्सा के साथ-साथ सामाजिक रूप से गंभीर चिंता का विषय है। भारत में प्रति वर्ष लगभग 1.2 से 1.8 करोड़ दंपति बांझपन की समस्या से ग्रसित बताए जाते हैं। पुरुषों में बांझपन बढ़ रहा है और बांझपन के कुल दर्ज मामलों में से 30-40% पुरुष जिम्मेदार होते हैं।
डॉ. हिमांशु ने कहा कि पटना में पुरुष बांझपन लगभग 10% है। पुरुषों में बांझपन का पता अक्सर 29-35 वर्ष की आयु में लगता है, क्योंकि ज्यादातर इस आयुवर्ग के पुरुष परिवार नियोजन के बारे में सोचते हैं। हालांकि, सामाजिक कलंक के कारण पुरुष प्रजनन समस्याओं को द्वितीय स्तर का माना जाता है और इसके कारण न तो इसकी जांच की जाती है और न ही इसका इलाज कराया जाता है। वीर्य के नमूने की जांच से ही शुक्राणुओं की गुणवत्ता एवं उनकी संख्या में गिरावट का संकेत मिलता है। हम देख रहे हैं कि वर्तमान में कई मामलों में शुक्राणु की गुणवत्ता और गिनती कम है और यह विभिन्न पर्यावरणीय, पोषण, चिकित्सा या यहां तक कि सामाजिक-सांस्कृतिक कारकों के कारण हो सकता है। प्रदूषण, मोटापा, अनियमित नींद, अत्यधिक धूम्रपान, शराब का सेवन और अत्यधिक गर्मी से उपजी परिस्थितियां आदि शुक्राणु की गुणवत्ता और संख्या को प्रभावित करने वाले कुछ प्रमुख कारक हैं। यदि किसी को टेस्टीकुलर या प्रोस्टेट की समस्या है या उसके कैंसर का इलाज हुआ है या फिर उसके परिवार में बांझपन रहा है, तो उसे ये समस्या हो सकती है। शुक्राणु बनने में कमी, एकाग्रता का अभाव या निषेचन की प्रक्रिया के समय प्रवाह की कमी आदि के कारण पुरुषों में बांझपन की समस्या हो सकती है। यह देखा गया है कि तीन दशक पहले एक सामान्य भारतीय वयस्क पुरुष का स्पर्म काउंट 60 मिलियन/एमएल हुआ करता था, जो अब लगभग 20 मिलियन/एमएल हो गया है।
डॉ. रॉय ने आगे कहा कि अंडकोष के क्षेत्र में दर्द, तकलीफ या सूजन, स्खलन में कठिनाई, स्खलित द्रव की मात्रा बहुत कम होना, स्तंभन दोष या कम सेक्स आदि जैसे संकेतों को नजर अंदाज नहीं करना चाहिए।

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