पटना में सुहागिन महिलाओं ने किया हरतालिका तीज का व्रत, पति की लंबी उम्र का मंगा आशीर्वाद

पटना। 18 सितंबरसोमवार को सुहागिन महिलाएं तीज का व्रत करेंगी। मान्यता के मुताबिक सोमवार का दिन भगवान शिव को होता है। इस दिन तीज का व्रत पड़ने से इसकी महत्ता बढ़ गयी है। भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरतालिका तीज का व्रत किया जाता है। हरतालिका तीज का व्रत हर सुहागिन के लिए अहम होता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। इसके साथ ही मन पसंद पति पाने के लिए कुंवारी लड़कियां भी इस व्रत को करती हैं। यह व्रत निर्जला होता है, जिसमें महिलाएं पूजा के दौरान पूरे सोलह श्रृंगार करती हैं। इसके अलावा कुंवारी लड़कियां भी इस व्रत को करती हैं। हरतालिका तीज पर अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रख रही महिलाओं के लिए इस बार तीज का दिन काफी खास है। क्योंकि इस बार तीज का व्रत सोमवार के दिन पड़ा है। जिसका खास महत्त्व है। इसके महत्व को बताते हुए ज्योतिष डॉ. श्रपति त्रिपाठी ने बताया कि सोमवार के दिन इस बार तीज का त्योहार मनाया जाएगा। इस दिन भगवान शिव और पार्वती की पूजा सच्चे मन से की जाती है। इस दिन सुहागिन महिलाओं के साथ ही कुंवारी लड़कियां भी इस व्रत को करेंगी और आज के दिन उनकी सभी मनोकामना पूरी होगी। हरतालिका तीज का शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 07 मिनट से सुबह 07 बजकर 39 मिनट तक रहेगा। इसके बाद शाम को 04:51 से 06:23 तक रहेगा। हरतालिका तीज पर सूर्योदय से पूर्व स्नान के बाद व्रत का संकल्प लिया जाता है। जो लोग सुबह पूजा करते हैं वो शुभ मुहूर्त का ध्यान रखें। तीज के सूर्यास्त के बाद शुभ मुहूर्त में पूजा श्रेष्ठ होती है। पूजा से पहले सुहागिन स्त्रियां सोलह श्रृंगार कर बालू या शुद्ध काली मिट्?टी से शिव-पार्वती और गणेश जी की मूर्ति बनाती हैं। पूजा स्थल पर फुल लगाएं। इसके साथ ही केले के पत्तों से मंडप बनाए जाते हैं। गौरी-शंकर की मूर्ति पूजा की चौकी पर स्थापित कर, गंगाजल, पंचामृत से उनका अभिषेक करें। गणेश जी को दूर्वा और जनेऊ चढ़ाएं। शिव जी को चंदन, मौली, अक्षत, धतूरा, आंक के पुष्प, भस्म, गुलाल, अबीर, 16 प्रकार की पत्तियां आदि अर्पित किया जाता है। मां पार्वती को सुहाग की सामग्री चढ़ाएं। अब भगवान को फल, मिठाई आदि का भोग लगाएं। धूप, दीप लगाकर हरतालिका तीज व्रत की कथा सुनें। आरती करें। रात्रि जागरण कर हर प्रहर में इसी तरह पूजा करें। अगले दिन सुबह आखिरी प्रहर की पूजा के बाद माता पार्वती को चढ़ाया सिंदूर अपनी मांग में लगाएं। मिट्?टी के शिवलिंग का विसर्जन कर दें और सुहाग की सामग्री ब्राह्मणी को दान में दें। प्रतिमा का विसर्जन करने के बाद ही व्रत का पारण करें।

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