बेतिया में सीएम के कार्यकर्ता संवाद कार्यक्रम में हंगामा, जमकर हुई नारेबाजी, कहा- वीआईपी की एंट्री, हमें भगा दिया गया
बेतिया। बेतिया में मंगलवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कार्यकर्ता संवाद कार्यक्रम के दौरान जमकर हंगामा देखने को मिला। कार्यक्रम का उद्देश्य कार्यकर्ताओं और आम जनता से सीधे जुड़ना था, लेकिन इस दौरान कई समूहों ने मुख्यमंत्री से अपनी मांगें सामने रखने की कोशिश की। उनमें सबसे आगे पशु मैत्री और टीकाकर्मी थे, जो अपने मानदेय को लेकर लंबे समय से परेशान हैं। मुख्यमंत्री से सीधी बातचीत की उम्मीद करने वाले ये कर्मचारी जब कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे तो उन्हें प्रवेश की अनुमति नहीं मिली। इसी बात को लेकर गुस्से में नारेबाजी और हंगामा शुरू हो गया।
हंगामे की वजह
पशु मैत्री और टीकाकर्मी का आरोप था कि वे सुबह से मुख्यमंत्री से मिलने के लिए खड़े थे। जब मुख्यमंत्री कार्यक्रम में पहुंचे तो वे सीधे अंदर चले गए और वीआईपी लोगों को टिकट देकर एंट्री दी जाने लगी। कर्मचारियों का कहना था कि उन्हें अंदर जाने से रोका गया और जबरन धक्का देकर बाहर कर दिया गया। इसी बीच भीड़ में नाराजगी बढ़ गई और नारेबाजी शुरू हो गई।
कर्मचारियों का आरोप
हंगामे में शामिल महिलाओं और पुरुषों ने साफ कहा कि अगर सरकार उनकी समस्याओं को नहीं सुनती तो वे मुख्यमंत्री को वोट क्यों दें। एक महिला कर्मचारी ने नाराजगी जताते हुए कहा कि “हमने किसी का कर्ज नहीं खाया है। मुख्यमंत्री हमें पैसे नहीं देते कि हम हर बार उन्हें वोट दें।” कर्मचारियों का आरोप था कि उनकी सेवा के बावजूद उनकी उपेक्षा की जा रही है।
पशु मैत्री और टीकाकर्मियों की भूमिका
बिहार के ग्रामीण इलाकों में पशुपालन सेवाओं की रीढ़ माने जाने वाले ये कर्मचारी पशुओं का टीकाकरण, कृत्रिम गर्भाधान, टैगिंग जैसी सेवाएं देते हैं। इससे किसानों और पशुपालकों को सीधे लाभ होता है। लेकिन इन सेवाओं के बावजूद इन्हें न तो नियमित नौकरी का दर्जा मिलता है और न ही मानदेय समय पर मिलता है। इनका कहना है कि सरकार द्वारा दी जाने वाली राशि अपर्याप्त है और अक्सर समय से भुगतान नहीं होता। इससे इनके परिवार आर्थिक संकट में जीते हैं। इन्हीं समस्याओं को मुख्यमंत्री के सामने रखने वे बेतिया पहुंचे थे, लेकिन उनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया।
मुख्यमंत्री के कार्यक्रमों में लगातार विरोध
यह मामला अकेला नहीं है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जब भी हाल के दिनों में किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में पहुंचे हैं, वहां अभ्यर्थियों, कर्मचारियों या अन्य वर्गों ने अपनी मांगें रखकर आवाज बुलंद की है। 21 सितंबर को पटना स्थित तारामंडल में हुए एक उद्घाटन कार्यक्रम से लौटते समय भी बीपीएससी के असिस्टेंट इंजीनियर अभ्यर्थियों ने मुख्यमंत्री को रोकने की कोशिश की थी। ये अभ्यर्थी लंबे समय से लंबित भर्तियों और परीक्षाओं के मुद्दों पर सरकार का ध्यान खींच रहे हैं। उस दिन भी बड़ी संख्या में युवाओं ने हाथों में मांग पत्र लेकर नारेबाजी की, लेकिन सुरक्षा कारणों से मुख्यमंत्री का काफिला बिना रुके आगे बढ़ गया।
महिलाओं की बड़ी भागीदारी
बेतिया के हंगामे में खास बात यह रही कि नारेबाजी और विरोध में महिलाओं की भागीदारी बड़ी संख्या में दिखाई दी। कई महिलाएं गुस्से में मुख्यमंत्री से सीधे सवाल कर रही थीं। उनका कहना था कि परिवार चलाना मुश्किल हो रहा है, जबकि सरकार उनकी समस्याओं का समाधान करने की बजाय उन्हें दरकिनार कर रही है।
इससे पहले बख्तियारपुर में हुआ विरोध
13 सितंबर को भी कुछ इसी तरह की स्थिति बख्तियारपुर में देखने को मिली थी। वहां मुख्यमंत्री को अभ्यर्थियों ने रोक लिया और उनसे सीधे सवाल पूछा कि लाइब्रेरियन की वैकेंसी कब निकलेगी। अभ्यर्थियों ने कहा कि मुख्यमंत्री ने पहले घोषणा की थी, लेकिन आज तक नोटिफिकेशन जारी नहीं किया गया है। इस पर मौजूद अधिकारियों ने छात्रों को लिखित आवेदन देने के लिए कहा और आश्वासन दिया कि जल्द कार्रवाई होगी।
जनता और सरकार के बीच बढ़ती दूरी
लगातार हो रहे इन विरोध प्रदर्शनों से साफ है कि जनता और विभिन्न वर्गों की नाराजगी सरकार के सामने खुलकर आ रही है। खासकर राज्य में रोजगार, भर्तियां और मानदेय जैसे मुद्दे इन दिनों सबसे गर्म हैं। मुख्यमंत्री जहां जनसंवाद के जरिए जनता तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं लोगों का आरोप है कि केवल चुने हुए लोगों को ही अंदर जाने और अपनी बात रखने का मौका दिया जाता है। बेतिया में हुए हंगामे ने एक बार फिर दिखा दिया कि बिहार में कर्मचारी वर्ग, अभ्यर्थी और आम लोग सरकार से सीधा संवाद चाहते हैं। पशु मैत्री और टीकाकर्मी जैसे कर्मचारी, जिनकी भूमिका ग्रामीण अर्थव्यवस्था और पशुपालन में अहम है, अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं कि उन्हें सम्मानजनक मानदेय और सुरक्षित रोजगार मिले। मुख्यमंत्री के कार्यक्रमों में बार-बार हो रहे विरोध सरकार के लिए चुनौती बनते जा रहे हैं। सवाल यही है कि सरकार कब इन मांगों पर ठोस कदम उठाएगी और लोगों का विश्वास फिर से जीत पाएगी।


