ईरान में युद्ध के बीच गृहयुद्ध का खतरा, खामेनेई के खिलाफ भारी विद्रोह, 705 लोग गिरफ्तार

नई दिल्ली। ईरान और इजरायल के बीच 12 दिनों तक चला संघर्ष अब थमता नजर आ रहा है, लेकिन इस युद्ध के बाद ईरान के भीतर एक नई तरह की चिंता जन्म ले चुकी है। जहां एक ओर इजरायल और अमेरिका इसे अपनी बड़ी कामयाबी मान रहे हैं, वहीं दूसरी ओर ईरान की आंतरिक स्थिति गंभीर रूप लेती जा रही है। सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई को अपने ही देश में व्यापक विरोध और गृहयुद्ध की आशंका सताने लगी है।
परमाणु कार्यक्रम पर चोट, लेकिन हौसला बरकरार
इजरायली हमलों से ईरान के परमाणु ठिकानों को कितना नुकसान हुआ है, इस पर कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई है, लेकिन पश्चिमी देशों का मानना है कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम कुछ महीनों तक पीछे चला गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और इजरायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने इसे बड़ी रणनीतिक सफलता बताया है। हालांकि, ईरान अब तक इस नुक़सान को स्वीकार नहीं कर रहा है।
भीतर ही भीतर सुलग रहा है असंतोष
युद्ध की आंच भले ही सीमाओं पर शांत होती दिख रही हो, लेकिन ईरान के भीतर एक और बड़ी लड़ाई पनप रही है—सरकार के खिलाफ जनता का गुस्सा। यह आशंका पहले से जताई जा रही थी कि जैसे ही इजरायल हमला करेगा, ईरान के भीतर सरकार विरोधी शक्तियां सक्रिय हो जाएंगी। खामेनेई शासन को इसी बात का डर है कि इस संकट के समय देश की जनता इस्लामिक शासन के खिलाफ विद्रोह कर सकती है।
सरकार ने की सख्ती, गिरफ्तारियां तेज
इसी आशंका के चलते ईरान की सरकार ने विरोध को जन्म लेने से पहले ही दबाने की रणनीति अपनाई है। पूरे देश में छापेमारी और गिरफ्तारियों का सिलसिला जारी है। अब तक करीब 705 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है, जिनमें से कई पर इजरायल के लिए जासूसी करने के आरोप लगे हैं। सुरक्षा एजेंसियों ने घर-घर तलाशी अभियान चलाया और उन इलाकों पर विशेष नजर रखी जा रही है जहां पहले भी विद्रोही गतिविधियों की आशंका रही है।
अल्पसंख्यकों पर विशेष निगरानी
ईरान के कुर्द और बलूच जैसे अल्पसंख्यक समुदाय, जो लंबे समय से फारसी शिया नेतृत्व के खिलाफ असंतुष्ट हैं, इस विद्रोह की आग को और भड़का सकते हैं। इन क्षेत्रों में सेना और रिवोल्यूशनरी गार्ड की तैनाती बढ़ा दी गई है। विशेष रूप से कुर्द क्षेत्रों में स्थिति बेहद तनावपूर्ण बताई जा रही है।
सीमाओं पर सतर्कता, एजेंटों पर कड़ी नजर
सुरक्षा अधिकारियों का कहना है कि इजरायली हमलों के बाद से पाकिस्तान, इराक और अजरबैजान की सीमाओं पर निगरानी बढ़ा दी गई है। सरकार को आशंका है कि विदेशी एजेंसियां इन सीमावर्ती क्षेत्रों से घुसपैठ करवा सकती हैं या विद्रोही संगठनों को मदद पहुंचा सकती हैं।
सरकार की मजबूती पर सवाल
यह पहली बार नहीं है जब ईरान के भीतर सत्ता के खिलाफ विद्रोह के सुर उठे हैं। लेकिन इस बार युद्ध की पृष्ठभूमि और अंतरराष्ट्रीय दबाव के बीच यह विरोध ज्यादा गंभीर रूप ले सकता है। खामेनेई सरकार के सामने अब दोहरी चुनौती है—एक तरफ देश की सुरक्षा को बाहरी हमलों से बचाना, और दूसरी ओर अंदरूनी असंतोष को नियंत्रित करना।
आने वाले दिन होंगे निर्णायक
फिलहाल ईरान में युद्धविराम जैसी स्थिति जरूर बनी है, लेकिन आंतरिक हालात किसी बड़े विस्फोट की आशंका जता रहे हैं। अगर सरकार ने विरोध को दबाने में ज़्यादा सख्ती दिखाई, तो यह असंतोष और भी गहराता जा सकता है। ऐसे में आने वाले दिन यह तय करेंगे कि क्या ईरान इस बार भी अपनी सत्ता को बचा पाएगा या देश एक नए राजनीतिक मोड़ की ओर बढ़ेगा।
