महागठबंधन की हार के बाद राजद ने शुरू किया मंथन, तेजस्वी ने पटना में प्रत्याशियों की बुलाई बैठक
पटना। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में मिली करारी पराजय ने महागठबंधन और विशेष रूप से राष्ट्रीय जनता दल को गहरे संकट में डाल दिया है। इस हार ने पार्टी की न केवल रणनीति बल्कि नेतृत्व क्षमता पर भी व्यापक सवाल खड़े कर दिए हैं। चुनाव परिणामों के बाद पार्टी के भीतर मंथन की प्रक्रिया तेजी से शुरू हो गई है और इसने राज्य की राजनीति में नई चर्चाओं को जन्म दे दिया है।
तेजस्वी यादव ने बुलाई अहम बैठक
चुनाव में पराजय के बाद नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने पटना स्थित अपने सरकारी आवास 1, पोलो रोड पर एक महत्वपूर्ण बैठक बुलाकर राजनीतिक गलियारों में नई हलचल पैदा कर दी है। इस बैठक में सभी हार गए प्रत्याशियों और निर्वाचित विधायकों को बुलाया गया है। आमतौर पर इस तरह की समीक्षा बैठक राष्ट्रीय अध्यक्ष या वरिष्ठ नेतृत्व द्वारा बुलाई जाती है, लेकिन इस बार पहल तेजस्वी यादव ने की है। इसे पार्टी के भीतर नेतृत्व परिवर्तन की संभावनाओं से जोड़कर देखा जा रहा है।
लालू प्रसाद की भूमिका पर सवाल
पार्टी के भीतर यह चर्चा तेज़ है कि ऐसी महत्वपूर्ण बैठक लालू प्रसाद यादव ने स्वयं क्यों नहीं बुलाई। जानकारों का कहना है कि हाल ही में संपन्न कार्यकारिणी की बैठक में तेजस्वी को कई नीतिगत और संगठनात्मक फैसलों के लिए अधिकृत कर दिया गया था। यही कारण है कि अब वे पार्टी नेतृत्व में अधिक सक्रिय और निर्णायक भूमिका निभाते दिखाई दे रहे हैं। यह घटनाक्रम संकेत देता है कि राजद में नेतृत्व का केंद्र धीरे-धीरे तेजस्वी की ओर शिफ्ट हो रहा है।
चुनाव परिणामों में ऐतिहासिक गिरावट
इस चुनाव में आरजेडी की सीटें 75 से घटकर मात्र 24 रह गईं। यह आंकड़ा अपने आप में बताता है कि पार्टी को कितनी भारी जनसमर्थन की कमी का सामना करना पड़ा है। महागठबंधन कुल मिलाकर केवल 35 सीटों पर सिमट गया, जबकि 2020 में यह संख्या 110 थी। यह गिरावट बताती है कि महागठबंधन की रणनीति, जनसंपर्क और जमीन पर संगठन की पकड़ काफी कमजोर पड़ गई।
एनडीए की ऐतिहासिक जीत
दूसरी ओर, एनडीए ने इस बार 200 से अधिक सीटें जीतकर एक नया रिकॉर्ड कायम किया है। भाजपा और जदयू दोनों ने अपनी-अपनी सीटों में से लगभग 85 प्रतिशत पर विजय दर्ज की है, जिसने बिहार की राजनीति में नई दिशा निर्धारित कर दी है। भाजपा इस चुनाव में राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। वहीं जदयू की मजबूती ने एक बार फिर साबित कर दिया कि नीतीश कुमार का जनाधार और संगठनात्मक क्षमता अभी भी मजबूत है।
सीमांचल में एआईएमआईएम का उभार
इस चुनाव में सीमांचल क्षेत्र का परिणाम आरजेडी के लिए सबसे बड़ा झटका रहा है। असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने पांच सीटों पर जीत हासिल कर यह दिखा दिया कि मुस्लिम बहुल इलाकों में उसका प्रभाव लगातार बढ़ रहा है। यह वही क्षेत्र है जिसे आरजेडी वर्षों से अपना मजबूत वोट बैंक मानती रही है। इसके साथ ही बसपा ने भी रामगढ़ सीट पर जीत दर्ज कर यह संदेश दिया कि छोटे दल भी कुछ इलाकों में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।
राजद में उठते बड़े सवाल
चुनाव के बाद आरजेडी जिन प्रमुख चुनौतियों का सामना कर रही है, उनमें नेतृत्व की अस्पष्टता सबसे बड़ी समस्या है। पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं के बीच यह प्रश्न लगातार उठ रहा है कि आगे की दिशा कौन तय करेगा। क्या लालू प्रसाद फिर से सक्रिय रूप से कमान संभालेंगे या तेजस्वी यादव को नेतृत्व की पूरी जिम्मेदारी दी जाएगी? यह निर्णय पार्टी के भविष्य की राजनीति को निर्धारित करेगा।
पुनर्गठन और भविष्य की रणनीति
तेजस्वी द्वारा बुलाई गई बैठक का सबसे बड़ा उद्देश्य हार के कारणों की खुली समीक्षा, सीट-दर-सीट विश्लेषण और भविष्य की रणनीति तय करना है। पार्टी के सामने संगठन को पुनर्गठित करने, युवाओं और महिलाओं के वोट बैंक को वापस जोड़ने और सीमांचल क्षेत्र में अपना आधार मजबूत करने जैसी कई महत्वपूर्ण चुनौतियाँ हैं। यदि इन मुद्दों को गंभीरता से नहीं निपटाया गया, तो आने वाले वर्षों में पार्टी को और भी मुश्किल परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है।
नई दिशा तय करने का समय
चुनावी हार ने आरजेडी को बड़े बदलावों की दहलीज पर खड़ा कर दिया है। तेजस्वी यादव की यह बैठक केवल समीक्षा प्रक्रिया नहीं, बल्कि भविष्य की राजनीति की दिशा तय करने का निर्णायक कदम भी साबित हो सकती है।


