नाबालिग रेप पीड़िता के गर्भपात के संबंध में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

दिल्ली ब्यूरो।देश के सुप्रीम कोर्ट ने नाबालिक रेप पीड़िता के गर्भपात से जुड़े एक मामले में बड़ा अहम फैसला सुनाया है।सर्वोच्च न्यायालय ने पीड़िता के 29 सप्ताह के गर्भ को हटाने की इजाजत दे दी है। कोर्ट ने कहा कि अगर पीड़िता इस गर्भ को जारी रखती है तो इससे उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हमें बच्चों की सुरक्षा करनी होती है लेकिन कई मामले अपवाद के रूप में सामने आते हैं। अगर इस मामले में पीड़िता को गर्भ जारी रखने की इजाजत दी गई तो उनके लिए काफी परेशानी हो सकती है। बच्ची के लिए गुजरता हुआ हर एक घंटा भी अहम है।
हाईकोर्ट ने किया था इनकार
इससे पहले यह मामला हाईकोर्ट पहुंचा था। तब इस मामले में हाईकोर्ट ने गर्भपात को खत्म करने की इजाजत देने से इनकार कर दिया था। हाईकोर्ट का कहना था कि प्रेग्नेंसी को काफी हो गया है ऐसे में इसे हटाने की इजाजत नहीं दी जा सकती है। पीड़िता की मां की ओर से सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया। शुक्रवार को इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में की गई। तब कोर्ट ने नाबालिक दुष्कर्म पीड़िता की मेडिकल जांच का आदेश दिया था। सोमवार को सुनवाई के दौरान कोर्ट के सामने मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट पेश की गई। इसके बाद कोर्ट ने 14 साल की नाबालिग की गर्भावस्था को समाप्त करने के लिए अनुच्छेद 142 के तहत अपनी अपरिहार्य शक्ति का प्रयोग किया।सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सायन अस्पताल के मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट के बाद कहा कि गर्भावस्था के एमटीपी की अनुमति दी जानी चाहिए। हमने एमटीपी अधिनियम को विधिवत ध्यान में रखा है। कोर्ट ने आदेश में कहा कि लोकमान्य तिलक नगरपालिका सामान्य अस्पताल के डीन उस नाबालिग की गर्भावस्था की चिकित्सीय समाप्ति करने के लिए एक टीम का गठन करेंगे, जिसके संबंध में चिकित्सा रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी। इसके लिए सभी सुविधाओं और जरूरतों का ध्यान रखा जाएगा। इस प्रक्रिया में आने वाला पूरा खर्च खर्च राज्य वहन करेगा। प्रक्रिया पूरी होने का बाद भी यदि किसी चिकित्सा देखभाल की आवश्यकता हो तो इसे नाबालिग के हित में सुनिश्चित किया जाएगा।

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