December 8, 2025

सुप्रीम कोर्ट का राज्यों को बड़ा निर्देश, कहा- सड़कों और फुटपाथों पर चलने वालों की सुनिश्चित करें सुरक्षा, जल्द बनाए नियम

नई दिल्ली। देश में बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं और पैदल यात्रियों की सुरक्षा को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक अहम फैसला सुनाया। न्यायालय ने सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया है कि वे मोटर वाहन अधिनियम की धारा 138(1ए) के तहत सड़क सुरक्षा नियम छह महीने के भीतर तैयार करें। यह फैसला एक दशक से लंबित उस याचिका पर आया है, जिसमें भारत में सड़क दुर्घटनाओं की बढ़ती संख्या पर गंभीर चिंता जताई गई थी।
अदालत का उद्देश्य और पृष्ठभूमि
यह मामला 2012 में कोयंबटूर के एक हड्डी रोग विशेषज्ञ द्वारा दायर रिट याचिका से जुड़ा है। याचिकाकर्ता ने कोर्ट से अनुरोध किया था कि देश में होने वाली सड़क दुर्घटनाओं को रोकने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को ठोस कदम उठाने के निर्देश दिए जाएं। उन्होंने यह भी कहा था कि सड़क दुर्घटनाओं में घायल लोगों को तत्काल उपचार मिल सके, इसके लिए दुर्घटना के बाद की सुविधाओं को बेहतर बनाने की जरूरत है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में वर्षों के दौरान कई बार सुनवाई की और सड़क सुरक्षा को लेकर विभिन्न दिशानिर्देश जारी किए। अब अदालत ने यह स्पष्ट आदेश दिया है कि राज्यों को पैदल चलने वालों, साइकिल चालकों और अन्य गैर-मोटर वाहनों की सुरक्षा के लिए ठोस नियम बनाना अनिवार्य है।
मोटर वाहन अधिनियम की धारा 138(1ए) का संदर्भ
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का कानूनी आधार मोटर वाहन अधिनियम की धारा 138(1ए) है। यह धारा राज्यों को यह अधिकार देती है कि वे सार्वजनिक स्थानों और सड़कों पर गैर-मोटर वाहनों और पैदल यात्रियों की आवाजाही को नियंत्रित करने के लिए नियम बना सकते हैं। इन नियमों का उद्देश्य सड़क पर अनुशासन बनाए रखना और दुर्घटनाओं को रोकना है। इसके साथ ही, कोर्ट ने कहा कि यदि कोई राज्य राष्ट्रीय राजमार्गों के संदर्भ में ऐसे नियम बनाना चाहता है, तो उसे भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) से परामर्श लेना होगा। इस प्रावधान का मकसद यह सुनिश्चित करना है कि नियम व्यावहारिक हों और राष्ट्रीय स्तर पर लागू मानकों से मेल खाते हों।
सड़क डिजाइन और रखरखाव पर भी जोर
अदालत ने मोटर वाहन अधिनियम की धारा 210डी का भी उल्लेख किया, जो राज्यों को सड़क डिजाइन, निर्माण और रखरखाव के मानकों से जुड़े नियम बनाने की अनुमति देती है। कोर्ट ने कहा कि सड़क सुरक्षा केवल यातायात नियंत्रण तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका सीधा संबंध सड़क की गुणवत्ता, संकेतों की स्पष्टता और फुटपाथों की उपलब्धता से भी है। इसलिए राज्यों को चाहिए कि वे सड़क निर्माण एजेंसियों के साथ मिलकर पैदल यात्रियों और साइकिल चालकों के लिए सुरक्षित मार्ग और फुटपाथ सुनिश्चित करें।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच और निर्णय का महत्व
यह आदेश सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की पीठ—जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन—ने पारित किया। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि सड़कें केवल वाहनों के लिए नहीं होतीं, बल्कि उनका उपयोग पैदल चलने वाले नागरिकों का भी समान अधिकार है। इसलिए सरकारों को ऐसे कदम उठाने होंगे जिससे पैदल यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। कोर्ट ने यह भी कहा कि सड़कों पर हेलमेट न पहनना, गलत लेन में गाड़ी चलाना और कारों पर अनाधिकृत हूटर का इस्तेमाल जैसे नियमों का उल्लंघन सड़क सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा है। इन पर सख्त निगरानी और दंडात्मक कार्रवाई होनी चाहिए।
संचालन समिति और इलेक्ट्रॉनिक निगरानी
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के दौरान पहले भी कई कदम उठाए हैं। उसने एक संचालन समिति के गठन का आदेश दिया था जो सड़क सुरक्षा से जुड़े मामलों की निगरानी करती है। इसके अलावा अदालत ने मोटर वाहन अधिनियम की धारा 136ए के तहत इलेक्ट्रॉनिक निगरानी प्रणाली को लागू करने पर भी बल दिया। इस प्रणाली के तहत सड़क दुर्घटनाओं और यातायात उल्लंघनों की रिकॉर्डिंग और विश्लेषण किया जा सकेगा, जिससे नियमों के बेहतर पालन की संभावना बढ़ेगी।
मुआवजा और राहत व्यवस्था पर विचार
पिछले वर्ष अगस्त में न्यायालय ने संकेत दिया था कि वह सड़क दुर्घटनाओं के पीड़ितों को समय पर मुआवजा देने के लिए राज्य और केंद्र सरकार के स्तर पर एक संयुक्त पोर्टल बनाने पर भी विचार कर रहा है। इस पोर्टल के माध्यम से पीड़ितों और उनके परिवारों को राहत राशि के लिए लंबी प्रक्रिया से नहीं गुजरना पड़ेगा और पारदर्शिता बनी रहेगी। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय सड़क सुरक्षा को लेकर भारत में एक नया अध्याय खोलता है। यह आदेश न केवल राज्यों की जवाबदेही तय करता है बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि सड़कें सभी नागरिकों के लिए सुरक्षित हों। पैदल चलने वालों, साइकिल चालकों और गैर-मोटर वाहनों के लिए नियम बनाना अब राज्यों की प्राथमिक जिम्मेदारी होगी। यदि यह दिशा-निर्देश समय पर लागू किए गए, तो इससे न केवल सड़क दुर्घटनाओं में कमी आएगी, बल्कि नागरिकों में ट्रैफिक नियमों के प्रति जागरूकता भी बढ़ेगी। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सामाजिक सुरक्षा और नागरिक जीवन की गरिमा को सशक्त करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम साबित हो सकता है।

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