अखंड सुहाग की कामना से सुहागिनों ने की वट सावित्री व्रत, शनि जयंती व रोहिणी नक्षत्र के सुयोग में हुई पूजा

पटना। ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या गुरुवार को रोहिणी नक्षत्र व धृति योग के साथ शनिदेव की जयंती के सुयोग में अखंड सुहाग की कामना से सुहागिन महिलाओं ने वट सावित्री की पूजा विधि-विधान से की। आज ही इस साल का पहला कंकणाकृति सूर्यग्रहण भी लगा। यह ग्रहण भारत में दिखाई नहीं दिया, इसीलिए इसका सूतक भी नहीं लगा। कोरोना की वजह से अधिकतर महिलाएं अपने घरों में ही गमले में बरगद का पौधा अथवा डाली लगाकर पूजा की। प्रात:काल स्नान आदि से निवृत होने के बाद भगवान सूर्य को जल देने से पूजा की शुरूआत की। उसके बाद घर में स्थापित देवी-देवताओं की दैनिक पूजा करने के बाद वट सावित्री की पूजा की। विधिवत तैयारी करके श्रद्धा-भाव से सुहाग की सलामती के लिए पूजा-अर्चना किया।
शुभ संयोग में मनी वट सावित्री
भारतीय ज्योतिष विज्ञान परिषद के सदस्य ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश झा ने कहा कि इस कोरोना काल में सीमित संसाधनों में ही पूजा की तैयारी कर महिलाओं ने वट वृक्ष की चंदन, पुष्प, अरिपन, अंकुरित चना, दूध-लावा आदि से पूजा के बाद हाथ पंखे से हवा देने के बाद उसका परिक्रमा करते हुए अखंड सुहाग का वर मांगी। स्कन्द पुराण में वर्णित सावित्री-सत्यवान की पौराणिक कथा का श्रवण कर ब्राह्मण, पंडित को दक्षिणा प्रदान की। गुरुवार को कई शुभ संयोग में वट सावित्री का पर्व मनाया गया। रोहिणी नक्षत्र, चन्द्रमा अपनी उच्च की राशि में विद्यमान, सूर्योदय के समय बुधादित्य योग समेत अन्य कई शुभ योग बने थे।
शनिदेव की हुई आराधना
पंडित झा ने बताया कि ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को ही सूर्यपुत्र शनि महाराज की जयंती होने पर श्रद्धालुओं ने शनि दोष से मुक्ति तथा उनकी कृपा पाने के लिए पीपल में जल, तिल, गुड़ देकर तिल तेल का दीपक जलाकर परिक्रमा किया। हनुमान चालीसा, हनुमानाष्टक का पाठ, बजरंग बाण, हनुमत रक्षा कवच का पाठ भी किया गया। मान्यता है कि हनुमान के भक्त को शनिदेव कुछ नहीं कर सकते है। इस दिन श्रद्धालुओं ने गरीब, असहाय, निर्धन को अन्न, वस्त्र, फल आदि का दान भी किया।

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