बिहार में 153 सीटों पर चुनाव लड़ेगी सुभासपा, कहा- एनडीए में सम्मान नहीं मिला, अब अकेले लड़ाई लड़ेंगे
पटना। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो चुकी हैं और सीटों के बंटवारे के बाद कई छोटे-बड़े दलों में नाराजगी भी साफ दिख रही है। एनडीए गठबंधन ने रविवार को सीटों के फॉर्मूले का ऐलान किया, जिसमें भाजपा और जदयू को बराबर-बराबर 101-101 सीटें दी गईं। लोजपा (रामविलास) को 29 सीटें, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा और राष्ट्रीय लोक मोर्चा को 6-6 सीटें मिलीं। इस बंटवारे में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) का नाम शामिल नहीं था, जिससे पार्टी प्रमुख ओम प्रकाश राजभर ने नाराज होकर अकेले चुनाव लड़ने का फैसला ले लिया।
सीट बंटवारे का फॉर्मूला
एनडीए के इस सीट बंटवारे में बराबरी का संतुलन बनाने की कोशिश दिखी। भाजपा और जदयू, जो गठबंधन के सबसे बड़े दल हैं, दोनों को 101-101 सीटें दी गईं। इसके अलावा लोजपा (रामविलास) को 29 सीटें देकर उसे तीसरे नंबर की ताकत का संदेश दिया गया। बाकी छोटे दलों में हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा और राष्ट्रीय लोक मोर्चा को 6-6 सीटें मिलीं। इस बंटवारे में सुभासपा को जगह नहीं दी गई, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि गठबंधन में उनकी भूमिका फिलहाल खत्म मानी जा रही है।
सुभासपा की नाराजगी
सुभासपा प्रमुख ओम प्रकाश राजभर उत्तर प्रदेश में एनडीए के घटक दल हैं और कई महीनों से बिहार में भी चुनाव लड़ने के लिए सीटों की मांग कर रहे थे। लेकिन एनडीए नेतृत्व ने उनकी मांग पर सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं दी। सीट बंटवारे के ऐलान के बाद राजभर ने कहा कि उन्हें गठबंधन में सम्मान नहीं मिला है, और यही कारण है कि पार्टी अब अकेले मैदान में उतरेगी। उन्होंने ऐलान किया कि पहले चरण में वे 153 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे, और 13 अक्टूबर को करीब 52 प्रत्याशियों का नामांकन दर्ज कराया जाएगा।
गठबंधन धर्म का संकेत
हालांकि, राजभर का रुख पूरी तरह कठोर नहीं दिखा। उन्होंने बयान में कहा कि अगर एनडीए उन्हें 4-5 सीटें भी दे दे, तो वे साथ चलने को तैयार हैं। यह बयान इस बात का संकेत है कि सुभासपा पूरी तरह दरवाजा बंद करने के मूड में नहीं है। लेकिन उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि अब समय बहुत कम है, और जल्द ही सभी उम्मीदवारों को मैदान में उतारने की प्रक्रिया शुरू करनी होगी।
चुनावी समीकरण पर असर
बिहार विधानसभा की कुल 243 सीटों पर दो चरणों में मतदान होगा। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि सुभासपा का अकेले मैदान में उतरना सीमांचल और भोजपुर क्षेत्र में एनडीए को नुकसान पहुंचा सकता है। इन इलाकों में सुभासपा का कुछ प्रभाव माना जाता है, खासकर राजभर समुदाय और पिछड़े वर्ग के वोट बैंक पर। यदि इन क्षेत्रों में एनडीए के वोट बंटते हैं, तो विपक्ष को फायदा मिल सकता है।
सुभासपा की रणनीति
राजभर ने जिस तरह पहले चरण में ही 153 सीटों पर लड़ने की घोषणा की है, उससे साफ है कि पार्टी अपने संगठनात्मक ढांचे और जनाधार को मजबूत दिखाने चाहती है। इतना बड़ा कदम यह भी दर्शाता है कि वे अब बिहार में एक स्वतंत्र राजनीतिक पहचान बनाना चाहते हैं। उत्तर प्रदेश में एनडीए का हिस्सा होने के बावजूद, बिहार में उनकी रणनीति अलग है। इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनका लक्ष्य केवल 2025 का चुनाव नहीं, बल्कि आने वाले वर्षों में बिहार की राजनीति में स्थायी स्थान बनाना भी है।
राजनीतिक संदेश और महत्व
ओम प्रकाश राजभर का यह कदम गठबंधन राजनीति के एक अहम पहलू को सामने लाता है—छोटे दलों के लिए सम्मान और राजनीतिक हिस्सेदारी का महत्व। जब किसी गठबंधन में छोटे दलों को उनकी अपेक्षा के अनुसार हिस्सेदारी नहीं मिलती, तो उनके लिए स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ना एक जरूरी रणनीति बन सकता है। यह कदम न केवल एनडीए के भीतर असंतोष को दिखाता है, बल्कि यह भी बताता है कि क्षेत्रीय दलों का वोट बैंक किस तरह चुनावी समीकरण बदल सकता है।
आगे की राह
अब देखना होगा कि सुभासपा का यह निर्णय बिहार की राजनीति को किस दिशा में मोड़ता है। क्या एनडीए अंतिम समय में उन्हें कुछ सीटें देकर वापस साथ ला पाएगा, या सुभासपा वास्तव में अकेले चुनाव लड़ेगी? यदि वे अकेले लड़े और अच्छा प्रदर्शन किया, तो आने वाले समय में बिहार में गठबंधन की तस्वीर बदल सकती है। वहीं, अगर प्रदर्शन कमजोर रहा, तो यह जोखिम उनके राजनीतिक भविष्य पर भी असर डाल सकता है। बिहार चुनावी अखाड़ा हमेशा से अप्रत्याशित रहा है, और सुभासपा के इस फैसले ने मुकाबले को और भी रोचक बना दिया है।


