जहानाबाद में इंटर में कम नंबर आने पर छात्रा ने की आत्महत्या, बहन को मिले ज्यादा नंबर, डिप्रेशन में उठाया कदम
जहानाबाद। बिहार के जहानाबाद जिले से एक बेहद दुखद घटना सामने आई है। इंटरमीडिएट की परीक्षा में अपेक्षा से कम अंक प्राप्त होने के कारण एक छात्रा ने आत्महत्या कर ली। यह घटना टेहटा थाना क्षेत्र के मदारी चक्र गांव की है, जहां 17 वर्षीय सीता कुमारी ने डिप्रेशन में आकर अपनी जान दे दी। सीता कुमारी और उसकी जुड़वा बहन एक साथ पढ़ाई करती थीं और दोनों का आपस में बहुत प्रेम था। 25 मार्च को जब बिहार बोर्ड इंटरमीडिएट परीक्षा का परिणाम घोषित हुआ, तो सीता को अपने अंक देखकर गहरा आघात लगा। उसकी बहन को 500 में से 390 अंक मिले थे, जबकि उसे केवल 300 अंक प्राप्त हुए। इससे वह बेहद निराश हो गई। पिता अनुज कुमार ने बताया कि रिजल्ट के दिन दोनों बहनें बहुत उत्साहित थीं। पूरा परिवार एक साथ बैठकर परिणाम का इंतजार कर रहा था। लेकिन जैसे ही नतीजे घोषित हुए, सीता का चेहरा उतर गया। उसने घरवालों से कहा कि उसने बहुत मेहनत की थी, फिर भी उसके अंक अपेक्षाकृत कम आए। इस बात ने उसे मानसिक रूप से बहुत प्रभावित किया। धीरे-धीरे उसने अपनी बहन से बात करना कम कर दिया और परिवार से भी दूरी बना ली। परिवारवालों ने उसे कई बार समझाने की कोशिश की कि परीक्षा का परिणाम ही सब कुछ नहीं होता। जीवन में आगे बढ़ने के कई और मौके मिलते हैं। लेकिन सीता इन बातों को समझने को तैयार नहीं थी। वह लगातार तनाव में रहने लगी और अवसाद (डिप्रेशन) से घिर गई। मंगलवार की रात भी सब कुछ सामान्य लग रहा था। पूरा परिवार एक साथ बैठकर खाना खाया, उसके बाद सीता अपने कमरे में चली गई। लेकिन अगली सुबह जब वह देर तक नहीं उठी और दरवाजा अंदर से बंद था, तो परिवारवालों को चिंता हुई। उन्होंने दरवाजा खटखटाया, लेकिन अंदर से कोई जवाब नहीं आया। काफी देर तक प्रयास करने के बाद जब कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली, तो उन्होंने पुलिस को सूचना दी। करीब 8 बजे पुलिस मौके पर पहुंची और दरवाजा तोड़ा। जब अंदर देखा गया तो सबके होश उड़ गए—सीता का शव पंखे से लटका हुआ था। यह दृश्य बेहद हृदयविदारक था। पुलिस ने तुरंत शव को नीचे उतारा और पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया। इस घटना ने एक बार फिर परीक्षा के मानसिक दबाव और सामाजिक अपेक्षाओं को लेकर गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं। भारतीय समाज में बच्चों पर अच्छे अंक लाने का अत्यधिक दबाव डाला जाता है, जिससे कई छात्र मानसिक तनाव में आ जाते हैं। कम अंक आने पर उन्हें ऐसा महसूस होने लगता है कि उनका भविष्य अंधकारमय हो गया है। जबकि वास्तविकता इससे बिल्कुल अलग होती है। सीता की आत्महत्या यह संदेश देती है कि मानसिक स्वास्थ्य को गंभीरता से लेना चाहिए। माता-पिता, शिक्षकों और समाज को मिलकर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि परीक्षा के परिणाम ही किसी बच्चे के जीवन का अंतिम सत्य नहीं हैं। हर बच्चे की क्षमताएं अलग होती हैं और उसे प्रोत्साहित करने की आवश्यकता होती है। मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं को पहचानकर सही समय पर मदद लेना बेहद जरूरी है, ताकि ऐसी दुखद घटनाओं को रोका जा सके।


