शरद पवार का बीजेपी पर तंज, कहा- अब उनको शिंदे की जरूरत नहीं, उनको जल्द साइड किया जाएगा
मुंबई। महाराष्ट्र में महायुति गठबंधन की राजनीति एक बार फिर चर्चा में है। भाजपा, शिवसेना (शिंदे गुट) और अजित पवार के नेतृत्व वाली राकांपा के इस त्रिकोणीय गठबंधन में हालिया घटनाक्रम ने नए तनाव को जन्म दिया है। इसी पृष्ठभूमि में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार गुट) ने सत्तारूढ़ गठबंधन पर तीखा व्यंग्य किया है। पार्टी के प्रवक्ता क्लाइड क्रास्टो ने भाजपा के रवैये पर सवाल उठाते हुए कहा कि अब भाजपा को एकनाथ शिंदे की जरूरत नहीं रह गई है और जल्द ही उन्हें दरकिनार किया जा सकता है।
शिंदे मंत्रियों की गैरमौजूदगी पर उठे सवाल
इन आरोपों के केंद्र में हाल ही में हुई वह घटना है जब महाराष्ट्र की मंत्रिमंडल बैठक में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे अकेले मौजूद थे। उनके गुट के मंत्री वहां अनुपस्थित रहे, जिसे राजनीतिक विश्लेषक एक प्रतीकात्मक विरोध के रूप में देख रहे हैं। मीडिया रिपोर्टों में यह भी दावा किया गया कि शिवसेना के कई नेता और कार्यकर्ता भाजपा में शामिल किए जा रहे हैं, जिसे लेकर शिंदे गुट नाराज है। इस नाराजगी का असर मंत्रिमंडल बैठक में स्पष्ट रूप से देखा गया।
क्रास्टो के तीखे बयान
क्लाइड क्रास्टो ने एक्स पर लिखते हुए कहा कि यदि एकनाथ शिंदे में थोड़ी भी आत्मसम्मान की भावना शेष है, तो उन्हें भाजपा का साथ छोड़ देना चाहिए। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि फडणवीस न तो शिंदे को पर्याप्त सम्मान देते हैं, और न ही उनके मंत्री उपमुख्यमंत्री की उपस्थिति को महत्व देते हैं। इस संदर्भ में उन्होंने दावा किया कि भाजपा ने स्पष्ट संदेश दे दिया है कि शिंदे अब उनके लिए आवश्यक नहीं रहे। उन्होंने यह भी कहा कि यदि शिंदे सही समय पर गठबंधन से बाहर नहीं हुए, तो भाजपा उन्हें जल्द ही बाहर का रास्ता दिखा सकती है। उनका तर्क था कि भाजपा स्थानीय निकाय चुनावों से पहले अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए शिवसेना के नेताओं और कार्यकर्ताओं को अपने साथ जोड़ रही है और यह प्रक्रिया शिंदे गुट को कमजोर कर सकती है।
महाराष्ट्र में महायुति का समीकरण
महाराष्ट्र की वर्तमान सरकार महायुति के नाम से जानी जाती है, जिसमें भाजपा, शिवसेना (शिंदे गुट) और अजित पवार का एनसीपी गुट शामिल है। 2022 में सत्ता परिवर्तन के बाद से इस गठबंधन का संचालन मुश्किलों के बीच चलता रहा है। एकनाथ शिंदे ने शिवसेना में बगावत कर उद्धव ठाकरे को सत्ता से बेदखल किया था, जिसके बाद भाजपा ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाया। लेकिन अब बदलते राजनीतिक समीकरणों के बीच यह सवाल उठ रहा है कि क्या भाजपा भविष्य में भी उन्हें उसी भूमिका में बनाए रखेगी।
तनाव के बीच हुई बैठक
मंत्रिमंडल बैठक से उत्पन्न तनाव के बाद देवेंद्र फडणवीस और एकनाथ शिंदे ने अपने-अपने गुट के मंत्रियों के साथ बैठक की। इन बैठकों का उद्देश्य स्थिति को शांत करना था। इसके बाद शिंदे ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि महायुति के सहयोगी दलों ने यह निर्णय लिया है कि वे एक-दूसरे के नेताओं और कार्यकर्ताओं को अपने दल में शामिल करने से परहेज करेंगे। इस फैसले को अल्पकालिक समाधान के रूप में देखा जा रहा है, ताकि आगामी स्थानीय निकाय चुनावों में गठबंधन की एकजुटता बनी रहे।
गठबंधन में अविश्वास का संकेत
क्लाइड क्रास्टो के बयान केवल एक राजनीतिक हमला नहीं बल्कि गठबंधन के भीतर पनप रहे अविश्वास की ओर इशारा करते हैं। भाजपा द्वारा शिंदे गुट के नेताओं को अपने पक्ष में लाने की कोशिशें शिवसेना गुट के भीतर असुरक्षा की भावना बढ़ा रही हैं। शिवसेना शिंदे गुट का दावा है कि वे भाजपा के मुख्य सहयोगी हैं, लेकिन राजनीतिक घटनाओं का क्रम यह संकेत देता है कि भाजपा अपने स्वतंत्र विस्तार की रणनीति पर काम कर रही है।
शरद पवार गुट की रणनीति
शरद पवार गुट की ओर से उठाए जा रहे सवाल यह संकेत देते हैं कि वे महायुति की एकजुटता पर लगातार प्रहार करना चाहते हैं। विपक्ष की राजनीति में यह एक महत्वपूर्ण रणनीति मानी जाती है कि सत्ता पक्ष के भीतर की कमजोरियों को उजागर कर जनता के बीच अस्थिरता का संदेश दिया जाए। क्रास्टो के बयान को इसी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।
भविष्य की राजनीति पर असर
महाराष्ट्र की राजनीति अगले कुछ महीनों में बड़े बदलावों की ओर बढ़ सकती है। स्थानीय निकाय चुनाव नजदीक हैं, और ऐसे में गठबंधन के भीतर का कोई भी विवाद चुनावी समीकरणों को प्रभावित कर सकता है। यदि भाजपा और शिंदे गुट के बीच अविश्वास गहराता है, तो महायुति की एकजुटता भविष्य में खतरे में पड़ सकती है। क्लाइड क्रास्टो के बयान ने महायुति गठबंधन के भीतर की परेशानियों को एक बार फिर सुर्खियों में ला दिया है। मंत्रियों की गैरमौजूदगी से लेकर भाजपा की विस्तारवादी नीति तक, कई ऐसे मुद्दे हैं जो गठबंधन में अस्थिरता पैदा कर रहे हैं। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा और शिंदे गुट इन विवादों को किस तरह सुलझाते हैं और क्या महायुति चुनावों के पहले एक मजबूत और एकजुट चेहरा प्रस्तुत कर पाती है।


