महागठबंधन में सीट शेयरिंग से पहले घमासान, सहनी का 60 सीटों पर दावा, सोशल मीडिया से किया ऐलान

पटना। बिहार की राजनीति एक बार फिर गरमा गई है। आगामी 2025 विधानसभा चुनाव से पहले महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर टकराव की स्थिति बनती दिख रही है। विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के प्रमुख मुकेश सहनी ने सोशल मीडिया के माध्यम से ऐलान कर दिया है कि उनकी पार्टी राज्य की 60 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। यह घोषणा न सिर्फ चौंकाने वाली है, बल्कि महागठबंधन के अंदर मौजूद सियासी खींचतान को भी उजागर करती है।
सोशल मीडिया से दिया सीधा संदेश
सहनी ने बिना किसी बातचीत या आधिकारिक बैठक का इंतजार किए, सीधे सोशल मीडिया पर 60 सीटों पर चुनाव लड़ने का दावा ठोक दिया। उनका यह रवैया साफ संकेत देता है कि वीआईपी अब किसी बड़ी पार्टी की सहमति या रहमोकरम पर निर्भर नहीं रहना चाहती। बल्कि वह अपने जनाधार और मुद्दों के बलबूते चुनावी मैदान में उतरने को पूरी तरह तैयार है।
निषाद आरक्षण और सहनी का सियासी आधार
मुकेश सहनी काफी समय से निषाद आरक्षण के मुद्दे को लगातार उठा रहे हैं। वे इसे केवल भाषणों में नहीं, बल्कि सड़कों और जनसभाओं में भी प्रमुखता से रखते आए हैं। बिहार में निषाद, अति पिछड़ा और वंचित वर्ग उनके प्रमुख वोट बैंक माने जाते हैं। सहनी इन्हीं समुदायों की भावनाओं को राजनीतिक ताकत में बदलने की कोशिश में जुटे हैं और यह 60 सीटों का दावा उसी दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।
एनडीए पर तीखा हमला
उन्होंने कहा कि एनडीए ने उनके चार विधायक तोड़ लिए थे, अब समय आ गया है कि वे एनडीए से 40 विधायक छीन लें। यह बयान चुनावी चेतावनी के रूप में देखा जा रहा है, जो न केवल एनडीए बल्कि महागठबंधन के भीतर भी एक सशक्त दावे के रूप में उभरा है।
2020 का अनुभव और अब स्वतंत्र राह
सहनी 2020 के विधानसभा चुनाव में एनडीए के साथ थे और उन्होंने सत्ता का अनुभव भी किया था। लेकिन अब उनकी रणनीति साफ है—अपनी राजनीतिक जमीन पर मजबूती से खड़े होकर सत्ता में सीधी हिस्सेदारी की मांग करना। वीआईपी प्रमुख की नजर अब न सिर्फ सीटों पर है, बल्कि राजनीतिक मोलभाव में बढ़ती भूमिका पर भी है।
महागठबंधन में बढ़ेगी माथापच्ची
महागठबंधन के अंदर पहले से ही सीटों को लेकर असहमति की स्थिति बनी हुई है। कांग्रेस 70 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है, वहीं भाकपा-माले भी 45 सीटों पर दावा कर रही है। ऐसे में वीआईपी द्वारा 60 सीटों की मांग ने साझी रणनीति को और उलझा दिया है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि महागठबंधन इन दावों को कैसे संतुलित करता है या फिर एक बार फिर विपक्ष में अलग-अलग मोर्चों की संभावना बनती है।
क्या मानेंगे सहयोगी दल?
सहनी की घोषणा ने न सिर्फ दबाव बनाया है, बल्कि यह सवाल भी खड़ा कर दिया है कि क्या महागठबंधन के बाकी दल उनके इस दावे को स्वीकार करेंगे। या फिर बिहार की राजनीति एक बार फिर बहुकोणीय मुकाबले की ओर बढ़ेगी? यह तय है कि आने वाले समय में सीट बंटवारे को लेकर सियासी मोलभाव और भी तीखा होगा। इस प्रकार, मुकेश सहनी का 60 सीटों पर चुनाव लड़ने का दावा बिहार की राजनीति में एक नई हलचल का संकेत है। यह सिर्फ संख्या का मामला नहीं, बल्कि एक छोटे दल द्वारा अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराने की निर्णायक कोशिश भी है।
