September 14, 2025

शिक्षा विभाग के मुख्य सचिव एस सिद्धार्थ ने दिया इस्तीफा, जदयू में शामिल होने की संभावना, लड़ेंगे विधानसभा चुनाव

पटना। बिहार प्रशासनिक सेवा में एक चर्चित और तेज-तर्रार अधिकारी माने जाने वाले डॉक्टर एस. सिद्धार्थ ने शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव (एसीएस) पद से इस्तीफा दे दिया है। यह खबर सामने आते ही राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गई है। बताया जा रहा है कि उन्होंने अपना इस्तीफा स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) के तहत मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भेजा है। हालांकि, अभी सरकार की ओर से इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई है।
इस्तीफे की टाइमिंग और संभावनाएं
सूत्रों के अनुसार एस. सिद्धार्थ ने 17 जुलाई को ही अपना इस्तीफा सौंप दिया था, जिसकी स्वीकृति के लिए यह फाइल मुख्यमंत्री के पास भेजी गई है। अगर मुख्यमंत्री इसपर अपनी मंजूरी दे देते हैं, तो उनका इस्तीफा औपचारिक रूप से स्वीकृत माना जाएगा। इस्तीफे की टाइमिंग भी इस कारण महत्वपूर्ण मानी जा रही है क्योंकि राज्य में साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं और एस. सिद्धार्थ के राजनीतिक मैदान में उतरने की संभावना जताई जा रही है।
राजनीतिक पारी की ओर बढ़ते कदम
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, एस. सिद्धार्थ जनता दल यूनाइटेड (जदयू) में शामिल हो सकते हैं। ऐसी अटकलें लगाई जा रही हैं कि वे नवादा जिले की किसी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ सकते हैं। हालांकि, अभी तक न तो एस. सिद्धार्थ और न ही जदयू की तरफ से इस पर कोई औपचारिक बयान आया है। लेकिन राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा जोर पकड़ रही है कि उन्होंने अपनी नई भूमिका के लिए रणनीतिक तैयारी शुरू कर दी है।
प्रशासनिक कार्यशैली और लोकप्रियता
डॉक्टर एस. सिद्धार्थ 1991 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारी हैं और नवंबर 2025 में उनकी सेवानिवृत्ति तय थी। अपने कार्यकाल में उन्होंने शिक्षा विभाग में कई महत्त्वपूर्ण सुधार किए। छात्रों की उपस्थिति बढ़ाने के लिए उन्होंने विशेष अभियान चलाया और शिक्षकों की नियमित हाजिरी की ऑनलाइन निगरानी व्यवस्था भी सख्ती से लागू की। वे अक्सर स्कूलों में वीडियो कॉल के माध्यम से निरीक्षण करते थे ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि शिक्षक और छात्र दोनों समय पर उपस्थित हों।
जनता से जुड़ाव और सरल व्यक्तित्व
एस. सिद्धार्थ सिर्फ एक कड़क अधिकारी ही नहीं, बल्कि आम लोगों से जुड़ने वाले सरल स्वभाव के अफसर भी रहे हैं। वे कई बार सड़क किनारे चाय की दुकानों पर आम जनता से संवाद करते हुए देखे गए हैं। एक बार तो वे खुद मिठाई की दुकान पर मिठाई बनाते हुए भी नजर आए, जिससे यह साबित हुआ कि वे जमीन से जुड़े अधिकारी हैं। इसी कारण आम जनता के बीच भी उनकी एक सकारात्मक छवि बनी हुई है।
पूर्व अधिकारियों के राजनीतिक प्रवेश की परंपरा
गौरतलब है कि एस. सिद्धार्थ पहले ऐसे अधिकारी नहीं हैं जिन्होंने सेवा के दौरान वीआरएस लेकर राजनीति में प्रवेश की तैयारी की हो। हाल ही में एक और वरिष्ठ आईएएस अधिकारी दिनेश कुमार राय ने भी वीआरएस लिया था, और उनके भी राजनीतिक भविष्य को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं। इससे साफ है कि बिहार की नौकरशाही में राजनीतिक महत्वाकांक्षा रखने वाले अधिकारियों की संख्या बढ़ रही है। डॉक्टर एस. सिद्धार्थ का इस्तीफा केवल एक प्रशासनिक कदम नहीं, बल्कि संभावित राजनीतिक पारी की ओर पहला बड़ा कदम माना जा रहा है। यदि वे सचमुच जदयू में शामिल होते हैं और चुनावी मैदान में उतरते हैं, तो यह देखना दिलचस्प होगा कि एक कुशल प्रशासक के रूप में उनकी छवि राजनीति में कितना प्रभाव डाल पाती है। अब सबकी निगाहें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के निर्णय और एस. सिद्धार्थ के आगामी कदम पर टिकी हुई हैं।

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