RJD का CM नीतीश पर हमला, कहा- NDA नेताओं के लिए शराब ‘हिडेन सोर्स आफ फंड कलेक्शन’ रहा

पटना। बिहार में जहरीली शराब पीने से हुई दर्जनों लोगों की मौतों के बाद राजनीतिक तेज है। विपक्ष नीतीश सरकार पर हमलावर है। इस दौरान राजद ने सीएम नीतीश कुमार की शराबबंदी पर आगामी 16 नवंबर को होने वाली समीक्षा बैठक को लेकर निशाना साधा है। राजद प्रवक्ताओं ने प्रदेश कार्यालय मे आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में संयुक्त रूप से कहा कि राजग शासनकाल के समय से ही एनडीए नेताओं के लिए हमेशा से शराब ‘हिडेन सोर्स आफ फंड कलेक्शन’ रहा है और इसी वजह से शराबबंदी के बावजूद सत्ता के संरक्षण में राज्य में शराब का अवैध कारोबार फलफूल रहा है। मुख्यमंत्री द्वारा शराब नीति पर समीक्षा करने की बात खानापूरी के अलावा और कुछ भी नही है।
लोगों को शराब पीने के लिए प्रोत्साहित किया
राजद के प्रदेश प्रवक्ता चित्तरंजन गगन, मृत्युंजय तिवारी एवं एजाज अहमद ने शनिवार को कहा कि शराब के प्रति दोहरी नीति पर चलने वाली एनडीए की सरकार शराबबंदी के नाम पर बड़ी धूर्तता के साथ लोगों को गुमराह कर रही है। राज्य में पहली बार एनडीए सरकार के गठन के साथ हीं लोगों को शराब पीने के लिए प्रोत्साहित किया गया। राजद शासनकाल में लगाये गए सख्त पाबंदियों को उदारवादी बनाकर शराब की दुकान खोलने की खुली छूट दे दी गई।
मुख्यमंत्री का दावा बिल्कुल झूठ
राजद प्रवक्ताओं ने कहा कि मुख्यमंत्री का यह दावा बिल्कुल झूठ है कि उन्होंने शराबबंदी लागू की है। 2015 में जब महागठबंधन की सरकार बनी तो राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू यादव एवं नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के दबाव पर राज्य में शराबबंदी लागू किया गया। जब तक महागठबंधन की सरकार चली शराबबंदी सफल रहा पर जब एनडीए की सरकार बन गई तो शराब का अवैध कारोबार फलने फूलने लगा।
तब आबकारी विभाग खुद थोक शराब विक्रेता बन गया
प्रवक्ताओं ने सरकारी आंकड़े के हवाले से बताया कि वर्ष 2002-03 में ग्रामीण इलाके में जहां मात्र 779 शराब की दुकानें थी, वर्ष 2006-07 में बढ़कर 2360 यानी तीन गुना हो गयी। देशी शराब की खपत 4 गुना, विदेशी शराब की खपत 5 गुना और बियर की खपत 11 गुना बढ गया। राजद शासनकाल के समय वर्ष 2002-03 में राज्य भर में विदेशी शराब की दुकानों की कुल संख्या 3095 थी, जो एनडीए शासनकाल के वर्ष 2013-14 में बढकर 5467 हो गयी। देशी शराब की दुकानों को जोड़कर वैध रूप से खोले गए शराब की दुकानों की कुल संख्या लगभग 14,000 पहुंच गई थी।
राज्य में शराब की खपत बढाने के लिए एनडीए सरकार द्वारा जुलाई 2007 में नयी आबकारी नीति लागू की गई। जिसके तहत सभी पंचायतों में कम से कम दो-दो शराब की दुकान खोलने का निर्णय लिया गया, साथ हीं राजद शासनकाल में लगाये गए उन शर्तों को हटा दिया गया। साथ हीं दुकान परिसर में भी पीने की छूट दे दी गई। शराब की खपत बढाने के उद्देश्य से हाइवे और एनएच पर बार खोलने वालों को 40 प्रतिशत अनुदान की भी घोषणा की गई। शराब के प्रति सरकार की उदार नीति के खिलाफ पटना हाईकोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा और सख्त टिप्पणी करनी पड़ी तथा 31 जनवरी 2014 तक स्कूलों के नजदीक खुले शराब की दुकानों को बंद करने का आदेश देना पड़ा। हिडेन फंड कलेक्शन के लिए एनडीए द्वरा बड़ी चालाकी से दुकान खोलने के नियम को बदल दिया गया। पहले परिसीमित क्षेत्र के लिए खुली बोली लगती थी, नये नियम के अनुसार आबकारी विभाग खुद अपने माध्यम से खुदरा दुकानदारों को आवंटित करने लगी और खुद थोक शराब बिक्रेता बन गया।
