बेलागंज आरजेडी का तीन दशक पुराना किला ढहा, मनोरमा देवी ने विश्वजीत सिंह को हराया, राजद ने मानी हार

पटना। बिहार विधानसभा उपचुनाव के परिणामों में बड़ा राजनीतिक उलटफेर देखने को मिला। बेलागंज विधानसभा सीट, जिसे राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) का तीन दशक पुराना मजबूत गढ़ माना जाता था, अब जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के खाते में चली गई है। जेडीयू की उम्मीदवार मनोरमा देवी ने आरजेडी प्रत्याशी विश्वजीत सिंह को बड़े अंतर से हराया, जिससे यह सीट आरजेडी के हाथ से निकल गई। यह हार न केवल आरजेडी के लिए बल्कि बिहार की राजनीति के लिए भी एक महत्वपूर्ण घटना मानी जा रही है।
बेलागंज: आरजेडी का ऐतिहासिक गढ़
बेलागंज विधानसभा सीट पर आरजेडी का वर्चस्व 1990 से बना हुआ था। इस सीट से आठ बार विधायक रह चुके आरजेडी नेता सुरेंद्र यादव यहां के सबसे प्रभावशाली राजनेताओं में से एक माने जाते हैं। इस बार उपचुनाव में उनके बेटे विश्वजीत सिंह को आरजेडी ने मैदान में उतारा था। हालांकि, वह इस गढ़ को बचाने में नाकाम रहे और जेडीयू प्रत्याशी मनोरमा देवी ने उन्हें करारी शिकस्त दी।
मनोरमा देवी की जीत का अंतर
चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, 11 में से 10 राउंड की गिनती पूरी हो चुकी है। दसवें राउंड के बाद मनोरमा देवी को 65,671 वोट मिले हैं, जबकि विश्वजीत सिंह को 47,144 वोट प्राप्त हुए। मनोरमा देवी ने 18,527 वोटों के अंतर से बढ़त बनाई है, जिससे उनकी जीत लगभग तय मानी जा रही है।
जनता का जनादेश और आरजेडी की हार की स्वीकार्यता
आरजेडी उम्मीदवार विश्वजीत सिंह ने हार स्वीकार करते हुए इसे जनता का जनादेश करार दिया। उन्होंने कहा कि पार्टी इस नतीजे का विश्लेषण करेगी और कार्यकर्ताओं के साथ बैठक कर हार के कारणों पर मंथन किया जाएगा। यह हार आरजेडी के लिए गहरी चोट है, क्योंकि यह सीट उनके गढ़ के रूप में जानी जाती थी।
प्रशांत किशोर की पार्टी का प्रदर्शन
बेलागंज में प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी का प्रदर्शन फिर से बेहद कमजोर रहा। उनकी पार्टी उपचुनाव में किसी भी सीट पर असर डालने में असफल रही। प्रशांत किशोर का यह लगातार दूसरा बड़ा असफल प्रयास है, जहां उनकी पार्टी को जनता का समर्थन नहीं मिला।
जेडीयू की रणनीति और मनोरमा देवी की भूमिका
जेडीयू की इस जीत को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राजनीतिक रणनीति का नतीजा माना जा रहा है। मनोरमा देवी ने अपनी छवि को स्थानीय जनता के साथ जोड़कर इस चुनाव में बड़ी जीत हासिल की। उनकी विजय यह दर्शाती है कि जेडीयू ने न केवल आरजेडी के गढ़ में सेंध लगाई है, बल्कि जनता के विश्वास को भी अपनी ओर मोड़ा है।
बिहार की राजनीति में बदलाव के संकेत
बेलागंज में जेडीयू की जीत और आरजेडी की हार को बिहार की राजनीति में एक बड़े बदलाव के संकेत के रूप में देखा जा रहा है। यह हार आरजेडी के लिए सिर्फ एक सीट का नुकसान नहीं है, बल्कि उनके तीन दशक के वर्चस्व का अंत भी है। जेडीयू और एनडीए के लिए यह नतीजा आने वाले चुनावों में आत्मविश्वास बढ़ाने का काम करेगा।
आरजेडी के लिए चुनौतियां
इस हार के बाद आरजेडी के सामने कई सवाल खड़े हो गए हैं। पार्टी को अब अपनी रणनीतियों पर पुनर्विचार करना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि वह जनता के मुद्दों से कैसे बेहतर तरीके से जुड़ सकती है। बेलागंज जैसी सीटों पर हार यह संकेत देती है कि पार्टी की पकड़ कमजोर हो रही है और नए सिरे से संगठन को मजबूत करना जरूरी है। बेलागंज सीट पर जेडीयू की मनोरमा देवी की जीत बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण घटना है। आरजेडी के गढ़ को तोड़कर जेडीयू ने न केवल अपनी ताकत बढ़ाई है, बल्कि यह भी साबित किया है कि मजबूत संगठन और रणनीति के जरिए किसी भी चुनौती को पार किया जा सकता है। यह उपचुनाव परिणाम 2025 के विधानसभा चुनावों के लिए एक संकेतक है, जिसमें एनडीए और इंडिया गठबंधन के बीच और कड़ा मुकाबला देखने को मिल सकता है।
