प्रदेश के एक लाख से अधिक नई गाड़ियों का रजिस्ट्रेशन अटका, ऑनर कार्ड के लिए लोग परेशान
पटना। बिहार में नई गाड़ी खरीदना जितना आसान हो गया है, उसे रजिस्टर कराना उतना ही मुश्किल होता जा रहा है। राज्य में फिलहाल एक लाख से अधिक नए वाहनों का रजिस्ट्रेशन अटका हुआ है, जिससे वाहन मालिकों को तरह-तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। चाबी तो हाथ में मिल जाती है, लेकिन ऑनर कार्ड और रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट के लिए महीनों इंतजार करना पड़ रहा है।
पटना समेत पूरे राज्य में बुरा हाल
राजधानी पटना की स्थिति और भी चिंताजनक है। अकेले पटना में 13 हजार से ज्यादा गाड़ियों का रजिस्ट्रेशन लंबित है। पूरे राज्य में यह आंकड़ा 1 लाख 23 हजार के पार चला गया है। वाहन मालिकों को अपने दस्तावेज़ लेकर बार-बार क्षेत्रीय परिवहन कार्यालयों का चक्कर काटना पड़ता है। लेकिन उसके बावजूद रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया पूरी नहीं हो पा रही है।
कागज अपलोड में लापरवाही, पोर्टल बना बाधा
इस संकट की सबसे बड़ी वजह है पोर्टल पर जरूरी दस्तावेजों का समय पर अपलोड न होना। केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय की एक रिपोर्ट में यह स्पष्ट हुआ है कि बिहार में वाहन पोर्टल पर टैक्स रसीद, मालिकाना हक के प्रमाण पत्र और अन्य दस्तावेज सही समय पर अपलोड नहीं किए जा रहे हैं। इसका नतीजा यह है कि सत्यापन की प्रक्रिया अधूरी रह जाती है और रजिस्ट्रेशन फाइल फंसी रह जाती है।
बीमा, चालान और फाइनेंस पर असर
रजिस्ट्रेशन में देरी का असर सिर्फ दस्तावेजों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका सीधा प्रभाव वाहन बीमा, चालान भुगतान और फाइनेंस की प्रक्रिया पर भी पड़ता है। बिना रजिस्ट्रेशन पूरा किए बीमा क्लेम करना लगभग असंभव हो जाता है। वहीं फाइनेंस कंपनियां भी अधूरे कागजातों की वजह से गाड़ी मालिकों को नोटिस भेजने लगी हैं। कई वाहन मालिकों ने शिकायत की है कि उन्हें बैंक या फाइनेंसर की ओर से गाड़ी वापस लेने की धमकी तक दी जा चुकी है।
दफ्तरों में व्यवस्था लचर, समाधान नदारद
राज्य के क्षेत्रीय परिवहन कार्यालयों की हालत भी कोई बेहतर नहीं है। एक ओर जहां सिस्टम पोर्टल आधारित हो गया है, वहीं कर्मचारियों की लापरवाही से लोग परेशान हैं। पटना के राकेश कुमार, जिन्होंने दो महीने पहले नई गाड़ी खरीदी थी, बताते हैं कि अब तक उन्हें ऑनर कार्ड नहीं मिला है। पोर्टल पर हर बार कोई न कोई तकनीकी दिक्कत सामने आती है और कार्यालय जाकर भी कोई समाधान नहीं मिलता।
राज्यभर में एक जैसी स्थिति
यह समस्या केवल पटना तक सीमित नहीं है। राज्य के अन्य जिलों में भी गाड़ी मालिकों को यही परेशानी झेलनी पड़ रही है। सभी जगहों पर वाहन मालिक रजिस्ट्रेशन और ऑनर कार्ड के लिए भटक रहे हैं। लेकिन ना तो पोर्टल को ठीक किया जा रहा है और ना ही अधिकारियों की ओर से कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए जा रहे हैं।
सरकारी निष्क्रियता बनी समस्या की जड़
इस पूरी समस्या के मूल में सरकारी तंत्र की निष्क्रियता और तकनीकी लापरवाही है। वाहन पोर्टल की धीमी प्रक्रिया, कर्मचारियों की अनदेखी और जवाबदेही की कमी के कारण गाड़ियों का रजिस्ट्रेशन लटकता जा रहा है। आम जनता, जो अपना मेहनत का पैसा खर्च कर गाड़ी खरीदती है, उसे महीनों तक दस्तावेज के लिए परेशान होना पड़ रहा है। बिहार में वाहन रजिस्ट्रेशन की यह समस्या केवल प्रशासनिक कमजोरी नहीं, बल्कि आम जनता के विश्वास को ठेस पहुंचाने वाली स्थिति बन गई है। जब तक तकनीकी ढांचे में सुधार नहीं होता और अधिकारियों की जवाबदेही तय नहीं की जाती, तब तक वाहन मालिकों की यह परेशानी यूं ही बनी रहेगी।


