सुप्रीम कोर्ट का बिहार की जातीय जनगणना पर हाईकोर्ट के फैसले पर रोक से इंकार, नीतीश सरकार को लगा बड़ा झटका

नई दिल्ली/पटना। बिहार में जातीय जनगणना पर हाईकोर्ट की रोक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गयी बिहार सरकार को करारा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से इंकार कर दिया है। बता दें कि पटना हाईकोर्ट ने बिहार की जातीय जनगणना पर गंभीर सवाल उठाते हुए इस पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा रखा है। हाईकोर्ट ने ये भी कहा है कि वह इस मामले पर जुलाई में सुनवाई कर आगे का फैसला सुनायेगी। बिहार सरकार ने हाईकोर्ट के इसी फैसले पर रोक लगाने और जातीय जनगणना का काम शुरू करने की मंजूरी के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगायी है। सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को जस्टिस एएस ओका और जस्टिस राजेश बिंदल की खंडपीठ ने कहा कि वह इस मामले में फिलहाल कोई आदेश नहीं पारित करेगी क्योंकि पटना उच्च न्यायालय इस पर 3 जुलाई को सुनवाई करने वाला है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि किसी कारण से उच्च न्यायालय बिहार सरकार की रिट याचिका पर सुनवाई नहीं करती है तो वह 14 जुलाई को इस पर विचार करेगी। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा “हम इस मामले में फिलहाल हस्तक्षेप नहीं कर सकते। उच्च न्यायालय 3 जुलाई को इस मामले की सुनवाई करने वाला है। उच्च न्यायालय ने अभी प्रथम दृष्टया निष्कर्ष निकाल कर अंतिरम रोक लगायी है। उसे अभी और सुनवाई करनी है। अभी हम यह नहीं कह रहे हैं कि हम हाईकोर्ट के फैसले की पुष्टि करेंगे या हम उसमें हस्तक्षेप करेंगे। हम केवल यह कह रहे हैं कि आज इस मामले में कोई फैसला सुनाना मुश्किल है। हम यह भी नहीं कह रहे हैं कि इस मामले पर आगे सुनवाई नहीं करेंगे। बिहार सरकार की याचिका पर बुधवार को ही सुनवाई होनी थी। ये मामला जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संजय करोल की बेंच के सामने आया तो जस्टिस करोल ने सुनवाई से खुद को अलग कर लिया।

जस्टिस करोल पिछले 6 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट का जज बनने से पहले पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश थे। उन्होंने ये कहते हुए खुद को इस मामले से अलग कर लिया उन्होंने जातीय जनगणना पर पटना हाईकोर्ट में सुनवाई की थी और वे इस मामले में पक्षकार रह चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट में आज बिहार सरकार की ओर से पेश हुए वरीय अधिवक्ता श्याम दीवान ने तर्क दिया कि ये जातीय गणना नहीं बल्कि सर्वेक्षण है और इसके लिए सारी प्रक्रिया पूरी कर ली गयी थी। पटना उच्च न्यायालय को इस पर रोक नहीं लगानी चाहिए थी। बिहार सरकार के वकील ने कहा कि राज्य सरकार विकास के लिए सही नीति बनाने के लिए सर्वे करा रही है और सही आंकड़ा होने पर ही सही नीति बन पायेगी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि हमें ये देखना होगा कि क्या बिहार सरकार सर्वेक्षण के नाम पर जातिगत जनगणना कराने की कोशिश कर रही है। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान जस्टिस राजेश बिंदल ने कहा कि बहुत सारे दस्तावेज़ ऐसे हैं जो बता रहें हैं कि ये सर्वेक्षण नहीं बल्कि जनगणना है। “हम निर्देश देते हैं कि इस याचिका को 14 जुलाई को सुनवाई के लिए लाया जाये। यदि किसी कारण से पटना हाईकोर्ट में रिट याचिका की सुनवाई 14 जुलाई से पहले शुरू नहीं होती है तो हम बिहार सरकार की ओर से दायर याचिका पर दलीलों को सुनेंगे। हालांकि सुप्रीम कोर्ट में बिहार सरकार के वकील ने पूरी कोशिश की कि जातीय जनगणना पर लगी रोक हट जाये। बिहार सरकार के वकील श्याम दीवान ने कहा कि बिहार सरकार गणना नहीं बल्कि सर्वेक्षण करा रही है।

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