चुनावी हार के बाद राजद की पहली प्रतिक्रिया, जीत-हार चलती रहेगी, हम गरीबों की आवाज बुलंद करते रहेंगे
पटना। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में महागठबंधन को मिली करारी हार के बाद राजनीतिक माहौल तेज हो गया है। राष्ट्रीय जनता दल (राजद), जो महागठबंधन का सबसे बड़ा घटक दल था, को इस चुनाव में भारी नुकसान झेलना पड़ा है। एनडीए ने रिकॉर्ड प्रदर्शन करते हुए 202 सीटों पर जीत हासिल की, जबकि राजद की अगुवाई वाले महागठबंधन को महज 35 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। इन नतीजों के बाद राजद की पहली आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने आई है।
राजद का संदेश: सेवा जारी रहेगी
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर राजद ने अपनी प्रतिक्रिया साझा की और हार को स्वीकार करते हुए कहा कि पार्टी गरीबों के लिए संघर्ष जारी रखेगी। राजद ने अपने संदेश में लिखा कि “जनसेवा एक अनवरत प्रक्रिया है, एक अंतहीन यात्रा है। इसमें उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। हार में विषाद नहीं, जीत में अहंकार नहीं।” पार्टी ने स्पष्ट किया कि वह गरीबों की पार्टी है और उनके बीच रहकर उनकी आवाज उठाती रहेगी। यह संदेश स्पष्ट रूप से इस बात का संकेत देता है कि राजद चुनावी हार से निराश नहीं है और आने वाले समय में भी खुद को जनता के मुद्दों पर सक्रिय रखेगा। पार्टी ने खुद को गरीबों की आवाज कहकर यह दिखाने की कोशिश की है कि उसका संघर्ष सामाजिक-आर्थिक असमानता के खिलाफ है।
एनडीए की ऐतिहासिक जीत
इस बार के चुनाव परिणामों में एनडीए ने प्रचंड बहुमत हासिल कर इतिहास रच दिया है। भाजपा 89 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, जबकि जदयू ने 85 सीटों पर जीत दर्ज कर अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई। लोकजनशक्ति पार्टी (रामविलास) को 19, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा को 5 और रालोमो को 4 सीटें मिली हैं। एनडीए की यह जीत वर्ष 2010 के रिकॉर्ड के करीब पहुंच गई है, जब गठबंधन ने 206 सीटें जीती थीं। इस बार 202 सीटों पर जीत दर्ज करके उन्होंने उस उपलब्धि से केवल 4 सीट कम हासिल की है। 2020 के मुकाबले एनडीए को 77 सीटों का बड़ा फायदा हुआ है। उस चुनाव में एनडीए ने 125 सीटें जीती थीं। यह अंतर बताता है कि इस बार जनता ने एनडीए के नेतृत्व पर और अधिक भरोसा जताया है।
महागठबंधन की करारी हार
इसके विपरीत, महागठबंधन का प्रदर्शन उम्मीद से काफी कमजोर रहा। राजद, जो 2020 में 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी थी, इस बार 25 सीटों से भी आगे नहीं बढ़ सकी। कांग्रेस, जो 61 सीटों पर मैदान में थी, केवल 6 सीटें जीत पाई। लेफ्ट पार्टियां भी अपनी मजबूत उपस्थिति नहीं दिखा सकीं और केवल 3 सीटें हासिल कर सकीं। इस प्रकार महागठबंधन कुल 35 सीटों पर सिमट गया। चुनाव परिणामों से स्पष्ट है कि महागठबंधन अपनी रणनीति, नेतृत्व और मुद्दों को जनता तक प्रभावी ढंग से नहीं पहुंचा पाया। राजद के लिए यह परिणाम एक गंभीर राजनीतिक झटका है, लेकिन पार्टी के बयान से यह स्पष्ट है कि वह अपने जनाधार को संभालने और आने वाले चुनावों के लिए खुद को फिर से तैयार करने की दिशा में आगे बढ़ेगी।
जनता ने विकास को चुना
राजद के बयान से स्पष्ट है कि पार्टी चुनाव परिणामों को लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा मानती है। वहीं एनडीए की जीत इस बात का संकेत है कि बिहार की जनता ने सुशासन, बेहतर कानून-व्यवस्था और विकास को प्राथमिकता दी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की नीतियों पर मतदाताओं ने भरोसा जताया है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस चुनाव में जातीय समीकरणों और वादों से अधिक विकास, रोजगार और स्थिर नेतृत्व को प्राथमिकता मिली। यही कारण है कि एनडीए एक बार फिर भारी बहुमत के साथ सत्ता में लौट आया।
राजद की भविष्य की राह
राजद की ओर से आया संदेश यह दर्शाता है कि पार्टी अपनी विचारधारा पर कायम रहेगी और गरीबों, पिछड़ों तथा किसानों के मुद्दों को मुखरता से उठाती रहेगी। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राजद अब संगठनात्मक मजबूती और नई रणनीति पर ध्यान देगा। जनता के बीच अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए पार्टी को जमीनी स्तर पर मेहनत करनी होगी। चुनावी हार के बाद राजद की शांत और संयमित प्रतिक्रिया बताती है कि पार्टी लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास रखती है। एनडीए की ऐतिहासिक जीत ने बिहार की राजनीति में नया संतुलन स्थापित किया है, लेकिन राजद का कहना है कि उसका संघर्ष जारी रहेगा। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि पार्टी किस तरह से अपनी खोई जमीन वापस हासिल करने की कोशिश करती है।


