देश में रेपो रेट में कटौती करने की तैयारी में आरबीआई, कम होगी ईएमआई, लोगों को मिलेगी बड़ी राहत

नई दिल्ली। देश की अर्थव्यवस्था से जुड़ी एक बड़ी खबर सामने आ रही है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) अपनी मौद्रिक नीति बैठक में रेपो रेट पर अहम फैसला ले सकता है। उम्मीद जताई जा रही है कि आरबीआई इस बार एक ‘सरप्राइज रेट कट’ कर सकता है। अगर ऐसा होता है तो आने वाले दिनों में लोगों के लिए ईएमआई का बोझ कम होगा और कर्ज सस्ता हो जाएगा। फिलहाल रेपो रेट 5.50% पर है और अनुमान है कि आरबीआई इसे स्थिर भी रख सकता है। लेकिन कमजोर निवेश, वैश्विक व्यापार पर बढ़ता दबाव और नरम महंगाई दर को देखते हुए केंद्रीय बैंक दरों में कटौती का विकल्प चुन सकता है। आरबीआई की तीन दिवसीय मौद्रिक नीति बैठक 1 अक्टूबर को समाप्त हो रही है।
अर्थशास्त्रियों की राय बंटी
करीब तीन-चौथाई अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि आरबीआई फिलहाल दरों में कोई बदलाव नहीं करेगा। वहीं, सिटी, बार्कलेज, कैपिटल इकॉनॉमिक्स और भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) जैसी बड़ी वित्तीय संस्थाओं ने दर कटौती की संभावना जताई है। इनका मानना है कि विकास दर पर दबाव और महंगाई का नरम रुख, दोनों ही परिस्थितियां दरों में कटौती के पक्ष में हैं। इस साल की शुरुआत से अब तक आरबीआई 100 बेसिस प्वाइंट की कटौती कर चुका है, लेकिन निजी निवेश में अपेक्षित सुधार नहीं दिखा है। अगस्त की मौद्रिक नीति बैठक में आरबीआई ने दरों को स्थिर रखा था और ‘न्यूट्रल स्टांस’ बनाए रखा था। उसके बाद वित्तीय हालात और सख्त हो गए।
“इंश्योरेंस रेट कट” की चर्चा
अर्थशास्त्री मानते हैं कि अक्टूबर की बैठक एक बार फिर से ‘लाइव’ हो गई है। आरबीआई “इंश्योरेंस रेट कट” का विकल्प अपना सकता है ताकि बाहरी झटकों से भारतीय अर्थव्यवस्था को बचाया जा सके। इसके अलावा एक और संभावना यह है कि केंद्रीय बैंक ‘डोविश पॉज’ लेकर संकेत दे कि आगे चलकर दरों में कटौती की जाएगी।
विकास दर और महंगाई का समीकरण
भारत की अर्थव्यवस्था ने जून तिमाही में 7.8% की ग्रोथ दर्ज की है। यह आंकड़ा अपेक्षाओं से बेहतर है। लेकिन कई विशेषज्ञों का मानना है कि महंगाई के समायोजन के बाद यह मजबूती उतनी वास्तविक नहीं दिखती। वहीं, खुदरा महंगाई का स्तर अभी भी आरबीआई के लक्ष्य दायरे में है। इसका अर्थ है कि दर कटौती का रास्ता खुला हुआ है।
वैश्विक दबाव और अमेरिकी व्यापार तनाव
बाहरी परिस्थितियां भी दर कटौती की संभावना को मजबूत कर रही हैं। अमेरिका ने भारतीय निर्यात पर 50% टैरिफ लगा दिया है और वीजा फीस बढ़ाई है। इससे सेवाओं के व्यापार पर असर पड़ने की आशंका है। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि अमेरिकी टैरिफ से भारत की जीडीपी ग्रोथ को झटका लग सकता है। वहीं, रुपये की कमजोरी और बढ़े हुए टैरिफ ने अर्थव्यवस्था की अनिश्चितता और बढ़ा दी है।
सरकार के प्रयास और आरबीआई की भूमिका
सरकार ने हाल के दिनों में अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए कई कदम उठाए हैं। आयकर में राहत दी गई है और जीएसटी की दरों में कटौती की गई है। लेकिन निजी निवेश अब भी कमजोर है और व्यापारिक दबाव बढ़ता जा रहा है। ऐसे में केंद्रीय बैंक की नीतिगत भूमिका अहम हो जाती है। कैपिटल इकॉनॉमिक्स ने अनुमान जताया है कि आरबीआई अगले हफ्ते दरों में कटौती कर सकता है और दिसंबर में एक और कटौती संभव है। संस्था के अनुसार, *“अमेरिकी टैरिफ से भारत की विकास दर को खतरा है, जबकि महंगाई नियंत्रण में है। ऐसे में आरबीआई को समय रहते कदम उठाना चाहिए।”
आम आदमी को राहत की उम्मीद
अगर रेपो रेट में कटौती होती है तो सीधे तौर पर बैंकों के ऋण सस्ते होंगे। इससे होम लोन, कार लोन और पर्सनल लोन की ईएमआई घटेगी। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे बाजार में मांग बढ़ेगी और आर्थिक गतिविधियों को गति मिलेगी। आम आदमी के लिए यह जीएसटी और आयकर राहत के बाद एक और बड़ी राहत साबित हो सकती है।
