बिहार में जन्म ले रहे बच्चों में कुपोषण की गंभीर समस्या, ग्लोबल हेल्थ रिपोर्ट में खुलासा, चेतावनी जारी

पटना। बिहार में नवजात शिशुओं के बीच कुपोषण और कम वजन की समस्या लगातार गंभीर रूप लेती जा रही है। तमाम सरकारी प्रयासों और योजनाओं के बावजूद स्थिति में खास सुधार नहीं देखा गया है। ब्रिटिश मेडिकल जर्नल (बीएमजे) ग्लोबल हेल्थ में प्रकाशित रिपोर्ट और राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के विश्लेषण से यह चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है कि भारत में जन्म लेने वाले कुल कम वजन के बच्चों में से आधे से अधिक केवल चार राज्यों से आते हैं, जिनमें बिहार भी शामिल है।
चार राज्य सबसे अधिक प्रभावित
रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल को प्रमुख रूप से चिन्हित किया गया है। विश्लेषण में यह बताया गया है कि वर्ष 2019 से 2021 के बीच भारत में जन्म लेने वाले कुल 42 लाख कम वजन वाले नवजातों में लगभग 47 प्रतिशत इन्हीं चार राज्यों से थे। इन आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि देश में कुपोषण एक क्षेत्रीय समस्या भी बन गई है, जो कुछ राज्यों में ज्यादा गंभीर रूप से फैली हुई है।
कम वजन का कारण और परिभाषा
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार 2.5 किलोग्राम से कम वजन वाले नवजातों को ‘कम वजन वाला बच्चा’ माना जाता है। यह समस्या प्रायः गर्भावस्था के दौरान मां के पोषण की कमी, खराब स्वास्थ्य सेवाएं, समय पर जांच की अनुपलब्धता और जागरूकता की कमी के कारण होती है। रिपोर्ट यह भी इंगित करती है कि जब मां खुद पोषण की कमी से ग्रसित होती है, तो उसका सीधा असर शिशु के वजन और स्वास्थ्य पर पड़ता है।
तीन दशकों का विश्लेषण
रिपोर्ट में वर्ष 1993 से 2021 के बीच के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है। इसमें यह देखा गया है कि देशभर में कम वजन वाले बच्चों के जन्म की दर में कुछ गिरावट जरूर आई है, लेकिन बिहार जैसे राज्यों में यह अभी भी बड़ी चुनौती बनी हुई है। खासकर 2019-21 के दौरान बिहार में जन्म के समय बच्चों का कम वजन और छोटे आकार की संभावना ‘काफी अधिक’ बताई गई है। यह तथ्य चिंता बढ़ाने वाला है।
राजस्थान में सुधार, बिहार में स्थिति यथावत
गौरतलब है कि पहले इस सूची में राजस्थान भी शामिल था, लेकिन समय के साथ वहां व्यापक सुधार दर्ज किया गया है। इसके विपरीत बिहार में इस दिशा में अपेक्षित सुधार नहीं हो सका है। यह अंतर दिखाता है कि कुछ राज्य जहां सक्रिय हस्तक्षेप और योजनाओं से सकारात्मक परिणाम प्राप्त कर रहे हैं, वहीं बिहार जैसे राज्य अभी भी बुनियादी स्तर पर पिछड़े हुए हैं।
स्वास्थ्य सेवाओं की असमानता और चुनौतियां
रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट किया गया है कि मातृ एवं नवजात स्वास्थ्य में भारी असमानता देखने को मिलती है। गांव और शहर, गरीब और अमीर, साक्षर और निरक्षर वर्गों के बीच स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच और गुणवत्ता में अंतर अब भी बना हुआ है। यह असमानता सीधे-सीधे शिशुओं के स्वास्थ्य पर असर डालती है।
क्या होना चाहिए अगला कदम
विशेषज्ञों का कहना है कि इस स्थिति से निपटने के लिए व्यापक रणनीति अपनानी होगी। सबसे पहले गर्भवती महिलाओं के लिए पोषण योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू करना होगा। इसके अलावा, स्वास्थ्य सेवाओं की सुलभता और गुणवत्ता को बढ़ाना होगा। ग्रामीण इलाकों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को सशक्त बनाना, समय पर जांच और फॉलोअप सुनिश्चित करना बेहद आवश्यक है। बिहार में जन्म के समय शिशुओं के कम वजन की समस्या न केवल एक स्वास्थ्य मुद्दा है, बल्कि यह सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन की भी पहचान है। यह रिपोर्ट एक चेतावनी है कि यदि अब भी ठोस कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले वर्षों में स्थिति और गंभीर हो सकती है। मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य पर केंद्रित योजनाओं को धरातल पर उतारना, नियमित निगरानी करना और जागरूकता फैलाना ही इस चुनौती से निपटने का एकमात्र रास्ता है।
