गया में राष्ट्रपति ने पितरों का किया पिंडदान, विष्णुपद मंदिर में की पूजा अर्चना, सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम
गया। धर्मनगरी गया में हर साल पितृपक्ष मेले का आयोजन होता है और यहां लाखों श्रद्धालु अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करने पहुंचते हैं। इस बार पितृपक्ष के मौके पर भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू स्वयं गया पहुंचीं और विष्णुपद मंदिर में पूजा-अर्चना कर पितरों का पिंडदान किया। उनके साथ बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान भी मौजूद रहे। गया एयरपोर्ट पर राष्ट्रपति का भव्य स्वागत किया गया और वहां से वे सीधे विष्णुपद मंदिर पहुंचीं।
पितृपक्ष का महत्व
गया एक ऐसा स्थल है, जिसे शास्त्रों में पितरों की मुक्ति का प्रमुख स्थान माना गया है। हर वर्ष अश्विन मास में यहां पितृपक्ष मेला आयोजित होता है, जहां देश-विदेश से लाखों लोग आते हैं। मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से पितरों की आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है। यही कारण है कि इस धार्मिक आयोजन का महत्व केवल बिहार तक सीमित नहीं है, बल्कि हिंदू समाज के लिए यह राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर आस्था का केंद्र है।
राष्ट्रपति का कार्यक्रम
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का गया प्रवास बेहद संक्षिप्त रखा गया। मंदिर में पूजा-अर्चना पूरी करने के बाद वे दोपहर 12 बजे तक दिल्ली लौटने वाली थीं। राष्ट्रपति के विशेष दौरे को लेकर स्थानीय प्रशासन और पुलिस का पूरा ध्यान सुरक्षा व्यवस्था पर केंद्रित रहा। इससे पहले शुक्रवार को रिलायंस समूह के चेयरमैन मुकेश अंबानी भी गया पहुंचे थे। वे भी अपने पुत्र अनंत अंबानी के साथ विष्णुपद मंदिर में पिंडदान और पूजा-अर्चना कर चुके थे।
सुरक्षा व्यवस्था के विशेष इंतजाम
राष्ट्रपति के आगमन को देखते हुए गया प्रशासन पूरी तरह अलर्ट मोड में रहा। सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए और किसी भी चूक की संभावना को खत्म करने के लिए अधिकारियों ने पहले से मॉक ड्रिल कर लिया था। एयरपोर्ट से लेकर विष्णुपद मंदिर तक सुरक्षा व्यवस्था को और मजबूत किया गया। काफिले का मार्ग तय करने के बाद संवेदनशील इलाकों में खास निगरानी रखी गई।
काफिले का मार्ग और ट्रैफिक व्यवस्था
राष्ट्रपति का काफिला गया एयरपोर्ट से 5 नंबर गेट, घुघड़ीटॉड़ बाईपास और बंगाली आश्रम होते हुए विष्णुपद मंदिर पहुँचा। वापसी भी इसी मार्ग से प्रस्तावित थी। इस दौरान शहर की ट्रैफिक व्यवस्था में बड़ा बदलाव किया गया। तय किए गए मार्ग से होकर आम वाहनों का परिचालन पूरी तरह बंद रखा गया। ट्रैफिक पुलिस ने लोगों को वैकल्पिक मार्ग अपनाने की अपील की। दोमुहान से सिकड़िया मोड़ तक, 5 नंबर गेट से सीटी पब्लिक स्कूल तक और चांद चौरा से बंगाली आश्रम होते हुए घुघड़ीटॉड़ तक वाहनों की आवाजाही रोक दी गई। इससे आम लोगों को थोड़ी परेशानी तो हुई, लेकिन सुरक्षा कारणों से यह कदम उठाना मजबूरी था।
वैकल्पिक मार्ग की व्यवस्था
प्रशासन ने पाबंदियों को देखते हुए लोगों के लिए वैकल्पिक मार्ग तय किए। बोधगया से आने-जाने वाले वाहन गुलहड़िया चक मोड़, चाकंद रेलवे गुमटी, कंडी नवादा, कुकड़ा मोड़, मेहता पेट्रोल पंप और सीटी पब्लिक स्कूल होते हुए अपने गंतव्य तक पहुंच सकते थे। वहीं, चांद चौरा से राजेंद्र आश्रम और दिघी तालाब मार्ग से आवागमन जारी रखा गया। इस पूरी व्यवस्था का उद्देश्य यही था कि सुरक्षा को प्रभावित किए बिना लोगों के लिए आवाजाही आसान बनाई जा सके।
संवेदनशील स्थानों पर कड़ी निगरानी
पितृपक्ष मेला अपने आप में बहुत बड़ा आयोजन है जहां लाखों श्रद्धालु जुटते हैं। राष्ट्रपति जैसे वीवीआईपी के आगमन से यह जिम्मेदारी और बढ़ गई। इसलिए पुलिस-प्रशासन लगातार सतर्क रहा। संवेदनशील स्थलों पर अतिरिक्त पुलिस बल की तैनाती की गई। सीसीटीवी कैमरे और ड्रोन से लगातार निगरानी रखी गई, ताकि किसी भी अप्रिय घटना से निपटा जा सके और भीड़ में सुरक्षा बनाए रखी जा सके।
श्रद्धालुओं की सुविधा सर्वोपरि
प्रशासन का कहना था कि सुरक्षा के साथ-साथ श्रद्धालुओं की सुविधा भी सर्वोच्च प्राथमिकता है। इसलिए मार्ग बदलाव और पाबंदियों की जानकारी लोगों को समय रहते दी गई। कंट्रोल रूम और हेल्प डेस्क भी सक्रिय रखे गए ताकि बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं को परेशानियों का सामना न करना पड़े। पितृपक्ष मेला केवल धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक मिलन का अवसर भी है, इसलिए श्रद्धालुओं को हर संभव मदद उपलब्ध कराने पर जोर दिया गया।
धार्मिक और सामाजिक दृष्टिकोण
राष्ट्रपति का पिंडदान करना इस बात का प्रतीक है कि यह परंपरा आज भी हिंदू समाज में उतनी ही प्रासंगिक है जितनी सदियों पहले थी। आम लोगों से लेकर बड़े औद्योगिक घरानों के प्रमुख और देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति भी यहां पिंडदान करने आते हैं। इससे गया और विष्णुपद मंदिर की आस्था का महत्व और बढ़ जाता है। गया का पितृपक्ष मेला हर साल आस्था और विश्वास का अद्भुत संगम होता है। इस बार राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के आगमन ने इसे और भी विशेष बना दिया। सुरक्षा और व्यवस्था के सख्त इंतजामों के बीच राष्ट्रपति ने परंपरागत ढंग से पिंडदान कर अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की। यह आयोजन न केवल धार्मिक भावनाओं को पुष्ट करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि भारतीय परंपरा और संस्कृति आज भी समाज में गहरे सम्मान के साथ जीवित है।


