राजधानी में भीषण जल जमाव को लेकर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर, नगर निगम से मांगा जवाब
पटना। राजधानी पटना में हर साल बरसात के मौसम में जल जमाव की समस्या किसी त्रासदी से कम नहीं होती। बरसात शुरू होते ही शहर के कई इलाके पानी में डूब जाते हैं और नागरिकों को आने-जाने में भारी परेशानी झेलनी पड़ती है। अब इसी गंभीर समस्या को लेकर एक बार फिर पटना हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है।
डॉ. प्रभात चंद्रा और अन्य नागरिकों ने दाखिल की याचिका
इस बार यह जनहित याचिका डॉ. प्रभात चंद्रा और कुछ अन्य जागरूक नागरिकों ने दायर की है। याचिका में साफ तौर पर कहा गया है कि हर साल नगर निगम और प्रशासन केवल दावा करते हैं कि जलनिकासी की व्यवस्था को दुरुस्त किया जा रहा है, लेकिन जमीनी स्तर पर हालात पहले जैसे ही बने हुए हैं। याचिकाकर्ताओं ने इसे लोगों के जीवन और स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ बेहद गंभीर मुद्दा बताया है।
राजेंद्र नगर से लेकर कंकड़बाग तक हर साल वही कहानी
पटना के कई इलाके बरसात के मौसम में सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। इनमें राजेंद्र नगर, कंकड़बाग, आशियाना नगर, राजीव नगर और पाटलिपुत्र कॉलोनी जैसे इलाके प्रमुख हैं। इन इलाकों में बरसात के दौरान सड़कें तालाब में तब्दील हो जाती हैं। गलियों से लेकर मुख्य सड़कों तक पानी भर जाता है, जिससे स्कूल-कॉलेज जाने वाले बच्चों से लेकर नौकरीपेशा और व्यापारी वर्ग तक सबको भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कई बार तो घरों के अंदर भी पानी घुस जाता है, जिससे लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है।
नालों की सफाई पर उठे सवाल
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि नगर निगम हर साल दावा करता है कि नालों की सफाई समय से कर दी गई है, लेकिन हकीकत कुछ और ही है। सफाई के नाम पर खानापूर्ति होती है और बरसात शुरू होते ही नालों की गंदगी पानी के साथ बाहर सड़कों पर आ जाती है। इससे जल निकासी की व्यवस्था पूरी तरह चरमरा जाती है। कई जगहों पर तो वर्षों से बंद पड़ी नालियों की सफाई तक नहीं हुई है।
2008 में भी हुआ था मामला हाईकोर्ट में
यह कोई पहली बार नहीं है जब पटना हाईकोर्ट में जल जमाव को लेकर याचिका दाखिल की गई है। वर्ष 2008 में अधिवक्ता श्याम किशोर शर्मा ने भी इस समस्या को लेकर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की थी। तब अदालत ने नगर निगम और प्रशासन को कड़े निर्देश दिए थे कि जलनिकासी की व्यवस्था को प्रभावी और स्थायी रूप से दुरुस्त किया जाए। लेकिन इतने साल बीत जाने के बाद भी हालात नहीं बदले हैं। इस बार भी याचिकाकर्ताओं ने उसी पुराने आदेश का हवाला देते हुए कोर्ट से मांग की है कि इस पर अमल कराया जाए।
लाखों की लागत, फिर भी नतीजा सिफर
जल जमाव की समस्या को दूर करने के लिए नगर निगम ने अब तक करोड़ों रुपये खर्च किए हैं। नालों की सफाई, नई पाइपलाइन बिछाना, ड्रेनेज पंपिंग स्टेशन बनाना जैसे दावे तो किए जाते हैं, लेकिन इनके परिणाम आम लोगों को देखने को नहीं मिलते। हर साल बजट पारित होता है, अधिकारियों की बैठकों में योजनाएं बनती हैं, लेकिन बारिश होते ही सारी तैयारियां धरी की धरी रह जाती हैं।
अस्पताल और स्कूल भी प्रभावित
जल जमाव के कारण सिर्फ सड़कों पर ही परेशानी नहीं होती बल्कि अस्पतालों और स्कूलों में भी इसका असर दिखता है। कई सरकारी अस्पतालों के चारों ओर पानी भर जाने से मरीजों और उनके परिजनों को परेशानी होती है। स्कूल जाने वाले बच्चों को भी घुटने भर पानी में स्कूल जाना पड़ता है। कई बार स्कूलों को बंद भी करना पड़ता है।
जनता की बढ़ती नाराजगी
हर साल जल जमाव के कारण जनता में नगर निगम और प्रशासन के प्रति नाराजगी बढ़ती जा रही है। स्थानीय लोग बार-बार शिकायतें करते हैं लेकिन समाधान नहीं निकलता। इस बार डॉ. प्रभात चंद्रा और अन्य लोगों ने अदालत का दरवाजा खटखटाकर जनता की इस नाराजगी को आवाज दी है। उनका कहना है कि अगर अब भी स्थायी समाधान नहीं निकाला गया तो आने वाले वर्षों में स्थिति और बदतर हो सकती है।
अदालत ने मांगा जवाब
हाईकोर्ट ने इस जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए नगर निगम और जिला प्रशासन से जवाब मांगा है। अदालत ने पूछा है कि आखिर अब तक स्थायी समाधान क्यों नहीं निकाला गया और पिछले आदेशों पर अमल क्यों नहीं हुआ। इसके साथ ही कोर्ट ने नगर निगम से यह भी कहा है कि वह जल निकासी की वर्तमान स्थिति और भविष्य की योजनाओं की विस्तृत रिपोर्ट पेश करे।
आशा और चिंता दोनों
पटना के नागरिकों को उम्मीद है कि इस बार हाईकोर्ट के दखल से कोई ठोस समाधान निकल पाएगा। हालांकि यह भी सच है कि पिछले कई सालों में ऐसे कई आदेश दिए जा चुके हैं लेकिन उन पर अमल नहीं हो सका। अब देखना होगा कि क्या अदालत की सख्ती के बाद नगर निगम और प्रशासन इस समस्या का कोई स्थायी समाधान निकाल पाते हैं या नहीं। फिलहाल बारिश का मौसम शुरू हो चुका है और एक बार फिर कई इलाकों में पानी भरने की आशंका बनी हुई है।
जरूरी है सख्त निगरानी
विशेषज्ञों का कहना है कि केवल आदेश देना ही काफी नहीं है, बल्कि जरूरी है कि नगर निगम और प्रशासन के कामकाज पर सख्त निगरानी रखी जाए। समय पर नालों की सफाई, ड्रेनेज सिस्टम की मरम्मत और जलनिकासी पंपों की टेस्टिंग जैसे काम ईमानदारी से हों तभी राजधानी को जल जमाव की त्रासदी से बचाया जा सकता है। अब सबकी नजरें हाईकोर्ट के अगले आदेश पर टिकी हैं।


