महाबोधि मंदिर पर बौद्ध समुदाय के अधिकार की याचिका सुप्रीम कोर्ट में खारिज, हाईकोर्ट जाने का निर्देश

नई दिल्ली। बिहार के गया जिले में स्थित महाबोधि मंदिर बौद्ध धर्म का एक अत्यंत पवित्र और ऐतिहासिक स्थल है। यह वही स्थान है जहां गौतम बुद्ध ने बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त किया था। इस मंदिर को यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी है। बौद्ध अनुयायियों के लिए यह स्थल न केवल ऐतिहासिक बल्कि गहन आध्यात्मिक महत्व भी रखता है।
सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल
हाल ही में बौद्ध समुदाय से संबंधित सुलेखाताई नलिनिताई नारायणराव कुंभारे नामक याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। याचिका में मांग की गई थी कि बोधगया के महाबोधि मंदिर का पूर्ण प्रशासनिक नियंत्रण केवल बौद्ध समुदाय को सौंपा जाए। इसके साथ ही मंदिर प्रशासन में हिंदू तथा अन्य धर्मों के प्रतिनिधित्व को समाप्त करने की भी मांग की गई थी।
मंदिर प्रशासन की वर्तमान स्थिति
वर्तमान में महाबोधि मंदिर का प्रशासन 1949 के ‘बोधगया मंदिर प्रबंधन अधिनियम’ के तहत संचालित होता है। इस अधिनियम के अनुसार मंदिर का प्रबंधन एक समिति के द्वारा किया जाता है जिसमें हिंदू और बौद्ध समुदाय दोनों का प्रतिनिधित्व होता है। बिहार सरकार की देखरेख में यह समिति कार्य करती है।
याचिका की मुख्य दलीलें
याचिका में यह कहा गया कि इस समय मंदिर का जो प्रशासनिक ढांचा है, वह बौद्धों के धार्मिक और सांस्कृतिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। याचिकाकर्ता ने यह भी तर्क दिया कि बौद्ध धर्म के सबसे पवित्र स्थल का नियंत्रण केवल बौद्धों के हाथ में होना चाहिए। इसके समर्थन में यह भी कहा गया कि यह स्थल न केवल भारतीय बौद्धों, बल्कि वैश्विक बौद्ध समुदाय के लिए भी अत्यधिक महत्त्व रखता है, इसलिए केवल बौद्धों को ही इसका प्रशासनिक नियंत्रण सौंपा जाए।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय और सुझाव
30 जून को न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की अवकाश पीठ ने इस याचिका को खारिज कर दिया। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह याचिका भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत विचारणीय नहीं है। अनुच्छेद 32 मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की स्थिति में सुप्रीम कोर्ट में सीधे याचिका दायर करने की अनुमति देता है, लेकिन अदालत ने कहा कि यह मामला उस श्रेणी में नहीं आता।
हाईकोर्ट जाने का निर्देश
सुनवाई के दौरान पीठ ने याचिकाकर्ता से कहा कि वे इस मामले में संबंधित उच्च न्यायालय यानी पटना हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाएं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह इस याचिका पर सुनवाई नहीं करेगा और याचिका को खारिज करते हुए स्पष्ट कर दिया कि याचिकाकर्ता को उच्च न्यायालय में जाने की स्वतंत्रता प्राप्त है।
भविष्य की कानूनी राह
हालांकि याचिका सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज कर दी गई, लेकिन याचिकाकर्ता को अब पटना हाईकोर्ट में पुनः यह मामला प्रस्तुत करने का अधिकार है। ऐसे मामलों में न्यायालय यह देखता है कि किसी धार्मिक स्थल के प्रशासन में विभिन्न समुदायों की भूमिका किस हद तक वैध और तर्कसंगत है, साथ ही उस स्थल के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और संवैधानिक पहलुओं को भी ध्यान में रखा जाता है। महाबोधि मंदिर पर नियंत्रण को लेकर बौद्ध समुदाय की मांग वर्षों से चली आ रही है, परंतु भारत जैसे बहुधार्मिक समाज में मंदिरों और धार्मिक स्थलों का प्रशासनिक ढांचा संवेदनशील मुद्दा होता है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में संवैधानिक प्रक्रिया का पालन करते हुए यह स्पष्ट किया है कि ऐसे मामलों में पहले उपयुक्त मंच, जैसे कि संबंधित हाईकोर्ट, का सहारा लिया जाना चाहिए। अब देखना होगा कि पटना उच्च न्यायालय इस विषय पर क्या रुख अपनाता है।

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