December 8, 2025

पटना में मौसम बदलने से खराब हुई हवा: कई जिलों में प्रदूषण बड़ा, सांस लेने में हुई कठिनाई

पटना। बिहार में ठंड और धुंध का प्रभाव बढ़ते ही वायु प्रदूषण का स्तर भी तेजी से बढ़ने लगा है। गुरुवार को जारी रिपोर्ट में पटना सहित कई जिलों की वायु गुणवत्ता चिंताजनक पाई गई। तापमान में गिरावट, धुंध, वाहनों का धुआं, औद्योगिक गतिविधियां और हवा में जमा सूक्ष्म कणों के कारण पीएम 2.5 का स्तर तेजी से बढ़ रहा है। इसका सीधा असर लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है, खासकर उन लोगों पर जिन्हें अस्थमा, एलर्जी या श्वसन संबंधित बीमारियां हैं।
हाजीपुर में सबसे खराब स्थिति
वायु गुणवत्ता रिपोर्ट के अनुसार, सबसे गंभीर स्थिति हाजीपुर में दर्ज की गई। यहां वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 245 रहा, जो प्रदूषण की “खराब” श्रेणी में आता है। इस स्तर की हवा में सांस लेना कठिन हो जाता है और यह स्वास्थ्य के लिए गंभीर जोखिम पैदा कर सकती है। बुजुर्गों, बच्चों और दिल तथा फेफड़ों की बीमारियों से पीड़ित लोगों के लिए इस स्तर का प्रदूषण अत्यधिक खतरनाक माना जाता है। हाजीपुर में पीएम 2.5 की मात्रा सबसे अधिक पाई गई, जो मुख्य रूप से धूलकण, वाहन उत्सर्जन और औद्योगिक धुएं का परिणाम है।
पटना की हवा भी हुई मध्यम प्रदूषित
राजधानी पटना की वायु गुणवत्ता “मध्यम प्रदूषित” श्रेणी में दर्ज की गई। शहर के कई स्थानों पर धूलकणों का घनत्व अधिक पाया गया, जिससे हवा में प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि तापमान में और गिरावट आती है, तो प्रदूषण का स्तर और बढ़ सकता है क्योंकि ठंडे मौसम में हवा का प्रवाह धीमा हो जाता है, जिससे प्रदूषण जमीन के पास ही ठहर जाता है। पटना के कुछ प्रमुख स्थानों का एक्यूआई इस प्रकार है। समनपुर – 243, दानापुर – 153, शिकारपुर – 153, तारामंडल – 122, मुरादपुर – 146, राजवंशी नगर – 108।
राज्य के अन्य जिलों में भी हवा खराब
गुरुवार को बिहार के कई जिलों में हवा का स्तर मध्यम से लेकर खराब श्रेणी में दर्ज किया गया। समस्तीपुर, सहरसा, आरा, गया और मुजफ्फरपुर जैसे शहरों में प्रदूषण का स्तर औसत से अधिक पाया गया।
निम्नलिखित प्रमुख शहरों में एक्यूआई इस प्रकार दर्ज हुआ
हाजीपुर – 245, समस्तीपुर – 194, सहरसा – 178, आरा – 149, सासाराम – 139, बिहारशरीफ – 122, गया – 121, मुजफ्फरपुर – 119, राजगीर – 118, मुंगेर – 114, औरंगाबाद – 102, भागलपुर – 84, मोतिहारी – 68। इनमें से अधिकांश शहरों में हवा स्वास्थ्य के लिए हानिकारक मानी गई, जबकि भागलपुर और मोतिहारी में प्रदूषण स्तर अपेक्षाकृत कम था।
पूर्वी बिहार में राहत
राज्य के पूर्वी जिलों किशनगंज और पूर्णिया में वायु गुणवत्ता ‘अच्छी’ श्रेणी में दर्ज की गई। किशनगंज का एक्यूआई 44 और पूर्णिया का 41 मापा गया, जो सुरक्षित श्रेणी में आता है। इसका अर्थ है कि यहां की हवा अभी भी सांस लेने लायक है और अन्य जिलों की तुलना में प्रदूषण का प्रभाव कम है। विशेषज्ञों के अनुसार पूर्वी जिलों में हवा के तेज़ प्रवाह और कम औद्योगिक गतिविधियों के चलते प्रदूषण कम होता है।
वायु गुणवत्ता सूचकांक को समझना जरूरी
एक्यूआई किसी भी शहर की हवा की गुणवत्ता को दर्शाने का मानक है। 0 से 50 के बीच का एक्यूआई सुरक्षित माना जाता है, जिसमें हवा साफ होती है और सामान्य लोगों के लिए कोई स्वास्थ्य जोखिम नहीं होता। 51 से 100 तक की श्रेणी ‘संतोषजनक’, 101 से 200 ‘मध्यम प्रदूषित’, और 200 से ऊपर का स्तर ‘खराब’ या ‘बहुत खराब’ माना जाता है। जब एक्यूआई 200 के पार पहुंच जाता है, तो यह स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बन जाता है, खासकर संवेदनशील समूहों के लिए।
प्रदूषण बढ़ने के कारण
सर्दियों में हवा का तापमान कम हो जाता है, जिससे वातावरण में मौजूद प्रदूषक नीचे की तरफ जमने लगते हैं। साथ ही धुंध और कोहरा प्रदूषण को जमीन के पास रोक लेते हैं। वाहनों के धुएं, निर्माण कार्यों की धूल, औद्योगिक गतिविधियों और कचरा जलाने जैसे कारण प्रदूषण को और बढ़ाते हैं। पटना और आसपास के जिलों में बढ़ते ट्रैफिक और अव्यवस्थित नगरीकरण भी वायु प्रदूषण की बड़ी वजह हैं।
स्वास्थ्य पर प्रभाव और सावधानियाँ
लंबे समय तक प्रदूषित हवा में सांस लेने से खांसी, गले में जलन, आंखों में जलन, अस्थमा और दिल की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि लोग सुबह और शाम के समय बाहर निकलने से बचें, क्योंकि इस समय प्रदूषण का स्तर अधिक होता है। घर में एयर प्यूरीफायर का उपयोग करें, अधिक पानी पिएं और मास्क पहनकर ही बाहर निकलें। पटना सहित बिहार के कई जिलों में वायु गुणवत्ता चिंताजनक स्तर पर पहुंच चुकी है। मौसम का बदलाव और वातावरण में बढ़ते प्रदूषक लोगों की सेहत पर प्रतिकूल असर डाल रहे हैं। सरकार और प्रशासन के लिए यह आवश्यक हो गया है कि प्रदूषण को रोकने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं और जनता भी सावधानी अपनाए ताकि स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों को कम किया जा सके।

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