मॉरीशस के कण-कण में रस घोल रही हिन्दी

पटना सिटी (आनंद केसरी)। आज विश्व के अनेक विकसित देशों में दुर्घटना, आतंकवाद, युद्ध और प्रदूषण का खतरा मंडरा रहा है। विज्ञान मनुष्य की भावना और जनकल्याण के लिए नहीं वह मात्र साधन और विध्वंस के लिए है। इन संभावित खतरों से मनुष्य तभी बन सकता है, जब उसके भीतर वसुधैव कुटुंबकम की भावना पैदा हो और वह मातृभूमि को नहीं, बल्कि दुनिया को सद्भावना से देखे और उसे अपना परिवार समझे. मॉरीशस की राजधानी पोर्टलुई में आयोजित 11वें विश्व हिन्दी सम्मेलन में यह बातें उभरकर सामने आईं। पटना के कंकड़बाग में रहने वाले राजीव सिन्हा इस सम्मेलन में भाग ले मॉरीशस के कण-कण में बसी हिन्दी की गौरवमयी मौजूदगी से भारत का परिचय कराया।
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की ओर से मॉरीशस के सम्मेलन में भाग लेने पहुंचे दूरदर्शन के उप महानिदेशक (प्रशासन) राजीव सिन्हा ने कहा कि महान गांधीवादी लेखक काका कालेलकर ने हिन्दी को संसार की एकमात्र भाषा कहा है। यह भाषा विश्व को एक सूत्र में जोड़ वसुधैव कुटुंबकम का निर्माण कर सकती है। उन्होंने कहा कि हिन्दी मानवता, विश्व बंधुत्व, सदाचार, शिष्टाचार और सद्व्यवहार की भाषा है। इसका विशाल साहित्य समकालीन युद्धों के विपरीत प्रेम, करुणा, आराधना और संपन्नता का साहित्य है। श्री सिन्हा ने कहा कि समकालीन मानव हिन्दी भाषा इस धरातल पर उतर आए, तो दुनिया के आतंक और युद्ध के सारे खतरे अपने आप मिट जाएंगे। मनुष्य को यह समझना होगा कि जब भारत विदेशी आक्रमणों से लहूलुहान था, हमारे भक्त कवियों ने उन दिनों से परेशान मनुष्य को प्रतिरोध में हिंसा और युद्ध के बजाय प्रेम का संदेश दिया। यहां तक कि उन्होंने प्रेम को ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग बताया। काका कालेलकर चाहते थे कि हिन्दी के विराट समुद्र से दुनिया का हर आदमी परिचित हो। वह जानते थे कि सूर, कबीर, तुलसी, मीरा, रसखान, जायसी और नरसिंह मेहता के अथाह साहित्य से संसार के प्रति प्रेम और वसुधैव कुटुंबकम का भरपूर पाठ सीखा जा सकता है। वह यह भी जानते थे कि हिन्दी भाषा और उसका साहित्य ही दुनिया को बता सकता है कि भावना विहीन विज्ञान संसार का अंत कर देगा। उसे मनुष्य की भावना से समरस कर मनुष्य के कल्याणार्थ बनाना होगा. इसमें हिन्दी की महत्वपूर्ण भूमिका है। सम्मेलन के दौरान यह भी देखा कि मॉरिशस के लोग बाजार में हिन्दी का भरपूर इस्तेमाल करते हैं. अपने पारिवारिक जीवन में भोजपुरी उनकी मातृभाषा है। उस भाषा के प्रति उनका गहरा और भावनात्मक लगाव है। यहां तक कि पोर्टलुई में ऐसे सिनेमाघर भी हैं, जहां नियमित रूप से हिन्दी और भोजपुरी की फिल्में दिखाई जाती हैं। जहां तक विश्व हिन्दी की बात है, हम अब तक की पड़ताल करें, तो पाएंगे कि हमने दुनिया में अपने हस्तक्षेप से हिन्दी को लगातार विकसित किया है।
इसके प्रचार-प्रसार में दूरदर्शन की भूमिका भी उतनी ही महत्वपूर्ण रही है। दूरदर्शन भारत का पहला ऐसा चैनल है, जिसके रामायण और महाभारत जैसे धारावाहिकों को देखने के लिए सड़कें रुक जाती थीं, रेलगाड़ियां ठहर जाती थीं, जिनके कार्यक्रमों को देखने के लिए लोग शाम का अपना पूर्व निर्धारित कार्यक्रम रद्द कर देते थे। उस दौर में हिन्दी ने दूरदर्शन पर बुनियाद, हमलोग, तमाशा, यह जो है जिंदगी, भारत एक खोज, मुजरिम हाजिर, यह दुनिया गजब की, मुंगेरीलाल के हसीन सपने, नुक्कड़, मालगुली डेज, वागले की दुनिया, व्योमकेश बख्शी, कबीर, उड़ान, कक्काजी कहिन जैसे सैकड़ों धारावाहिक प्रसारित हुए, जिससे समाज को नई दिशा मिली। राजीव सिन्हा ने बताया कि मॉरिशस की धरती रत्न गरबा है। उस धरती में अभिमन्यु अनत और रामदेव धुरंधर जैसे अनेक ऐसे लेखक भी हैं, जिनका विश्व हिन्दी साहित्य में शीर्ष स्थान है। संसार में आज शायद ही कोई ऐसा हिन्दी पाठक होगा, जो अभिमन्यु अनत के उपन्यास “लाल पसीना” से अपरिचित न हो, जो गिरमिटिया मजदूरों के दुख-दर्द और बलिदान की महागाथा है। उस धरती ने सर शिवसागर रामगुलाम और अनिरुद्ध जगन्नाथ से लेकर संपत्ति पदस्थ परवीन जगन्नाथ और बारलिन व्यापूरी जैसे कई प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति दिए। जिन्होंने अपने राजकीय दायित्वों के साथ साथ हिन्दी भाषा को विश्व के कोने-कोने तक पहुंचाने में अपना अमूल्य योगदान दिया।
हमें गर्व है कि यह मॉरीशस की वे महान विभूतियां हैं, जो भारतीय मूल्य की हैं और जिनके पूर्वज भारत की माटी से अपनी विरासत गठरी में बांधकर वहां ले गए थे। वह गठरी व विरासत आज दुनिया के आकाश पर सूर्य की तरह ज्योति महान है। इसमें हमारे भारत की हिंदी विश्व क्षितिज पर चमक रही है।

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