पितृ पक्ष आरंभ, तर्पण व श्राद्ध से मिलेगी पितृ ऋण से मुक्ति

पितृ ऋण से मुक्ति के लिए मिलेंगे सिर्फ 14 दिन, एक ही दिन होगी पंचमी और षष्ठी

पटना। पितृ पक्ष, पितृ दोष से मुक्ति प्राप्त करने का सर्वोत्तम समय होता है। इस पक्ष में समर्पण की भावना से श्रद्धा पूर्वक किया गया तर्पण पितरों को स्वीकार होता है, जिससे हर तरह की बाधा से मुक्ति मिल जाती है। श्रद्धा भाव के साथ किया गया श्राद्ध कर्म व्यक्ति के जीवन में खुशियों का अंबार ला सकता है। पृथ्वी लोक में माता पिता एवं पितृ साक्षात देवता है इसीलिए उनकी आत्मा की शांति के लिए आश्विन कृष्ण पक्ष में श्रद्धा विश्वास एवं उत्साह के साथ दान-तर्पण किया जाता है। जिस तिथि पर पूर्वजों की मृत्यु हुई हो उसी तिथि को श्राद्ध कर्म किया जाता है। कर्मकांड विशेषज्ञ पंडित राकेश झा शास्त्री ने मान्यताओं का आशय देते हुए कहा कि आश्विन कृष्ण पक्ष के प्रतिपदा यानि मंगलवार से लेकर अमावस्या तक पुरे पंद्रह दिन यमराज पितरों को मुक्त कर देते हैं और समस्त पितर अपने-अपने हिस्से का ग्रास लेने के लिए अपने वंशजों के समीप आते हैं, जिससे उन्हें आत्मिक शांति प्राप्त होती है। पितरों को जब जल और तिल द्वारा पितृपक्ष में तर्पण किया जाता है, तब उनकी आत्मा तृप्त होती है और उनका आशीष कुटुंब को कल्याण के पथ पर ले जाता है। पितृपक्ष से एक दिन पहले भाद्रपद पूर्णिमा को अगस्त मुनी और देवताओं की पूजा की जाती है और इस दिन इनके नाम से तर्पण किया जाता है।

पितृ पक्ष 26 सितंबर यानि बुधवार से 9 अक्टूबर दिन मंगलवार तक चलने वाले इस पक्ष में धार्मिक कार्य की मनाही होगी लेकिन पितरों से आशीर्वाद पाने की अच्छा अवसर होगा। इस बार पितृ पक्ष में पंचमी और षष्ठी एक दिन होने से 14 दिनों का पितृपक्ष होगा।

इस तिथि को करे तर्पण व श्राद्ध

पं० राकेश झा ने बताया कि जिन लोगों की मृत्यु के दिन की सही जानकारी ज्ञात न हो उनका श्राद्ध अमावस्या तिथि को करना चाहिए। वहीं अकाल मृत्य़ु होने पर भी अमावस्या के दिन ही श्राद्ध करना चाहिए। जिसने आत्महत्या की हो या जिनकी हत्या हुई हो, ऐसे लोगों का श्राद्ध चतुर्थी तिथि को किया जाना चाहिए। पति जीवित हो और पत्नी की मृत्यु हो गई हो, तो उनकी श्राद्ध नवमी तिथि को करना चाहिए। वहीं साधु एवं सन्यासियों का श्राद्ध एकादशी तिथि को किया जाता है। बाकि सभी का उनकी तिथि के अनुसार किया जाता है।

समर्पण से तर्पण दिलाएगी पितृ ऋण से मुक्ति

पटना के ज्योतिषी पं० राकेश झा शास्त्री ने कहा कि श्राद्ध को ही पितरों का यज्ञ कहते हैं। शास्त्रों में तीन ऋण बताए गए हैं- पितृ ऋण, देव ऋण और गुरु ऋण। ये तीन ऋण बहुत महत्व रखते हैं। विष्णु पुराण के अनुसार श्राद्ध से तृप्त होकर पितृ ऋण समस्त कामनाओं को तृप्त करते हैं। मनुष्य लोक में पिता मृत्यु समय अपना सब कुछ पुत्र या पुत्री को सौंप देते हैं। इसलिए संतान पर पितृ ऋण होता है। पितृपक्ष में अपने पितरों को श्रद्धा सुमन अर्पित करना चाहिए। पितृपक्ष में जल और तिल से तर्पण करना चाहिए। इस दौरान किए गए श्राद्ध कर्म और दान-तर्पण से पितरों कि तृप्ति मिलती है। वे खुश होकर अपने वंशजों को सुखी और संपन्न जीवन का आशीर्वाद देते हैं। पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म करने की परंपरा हमारी संस्कृति विरासत है। पितरों तक केवल दान ही नहीं बल्कि हमारे भाव भी पहुंचते हैं।

9 अक्टूबर को होगा पितृ विसर्जन

पंडित झा के कहा कि इस वर्ष 26 सितंबर यानि आज दिन बुधवार से 9 अक्टूबर तक पितृ पक्ष रहेगा। 8 अक्टूबर सोमवार को पितृपक्ष का चतुर्दशी तिथि है इसी दिन शस्त्रादि से मृत्यु को प्राप्त हुए पितरों का श्राद्ध किया जाता है। इसके बाद 9 अक्टूबर को अमावस्या तिथि में पितृ विसर्जन का श्राद्ध किया जाता है। इस तिथि को अमावस्या प्रातः 9:10 बजे तक है। अतः सर्वपितृ तर्पण का कार्य 9 अक्टूबर सोमवार को करते हुए ब्राह्मण भोजन कराकर पितरों की विदाई का कार्य किया जाएगा।

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