29 को चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा दिखाएंगे ताकत, राजगीर और गया में बड़ा कार्यक्रम, सीट शेयरिंग पर नज़रें
पटना। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियां अब गति पकड़ती जा रही हैं। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के घटक दल अब अपनी-अपनी राजनीतिक ताकत को दर्शाने में जुट गए हैं। इसी कड़ी में 29 जून को बिहार की राजनीति में एक अहम दिन साबित हो सकता है, जब एनडीए के दो प्रमुख नेता – चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा – अलग-अलग जिलों में बड़ी रैलियों के माध्यम से अपना शक्ति प्रदर्शन करने वाले हैं।
चिराग पासवान का ‘बहुजन भीम संकल्प समागम’
लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान 29 जून को राजगीर में एक बड़ी जनसभा को संबोधित करेंगे। यह रैली ‘बहुजन भीम संकल्प समागम’ के नाम से आयोजित की जा रही है। कार्यक्रम स्थल राजगीर के हॉकी मैदान के पास स्थित स्टेट गेस्ट हाउस परिसर में तय किया गया है। इस आयोजन को लेकर पार्टी ने जोरशोर से तैयारियां शुरू कर दी हैं। एलजेपी (रामविलास) के सांसद अरुण भारती, जो चिराग के रिश्तेदार भी हैं, उन्होंने सोशल मीडिया पर इस रैली की घोषणा की है। उन्होंने इसे बहुजन समाज की नई राजनीतिक चेतना का उदय बताया है। उनका कहना है कि बहुजन समाज अब किसी की ‘बी टीम’ नहीं रहेगा, और न ही किसी राजनीतिक झांसे में आएगा। यह रैली एलजेपी के लिए न केवल जन समर्थन का परीक्षण होगी, बल्कि गठबंधन के भीतर अपनी स्थिति स्पष्ट करने का भी माध्यम बनेगी।
उपेंद्र कुशवाहा की ‘संवैधानिक अधिकार परिसीमन सुधार महारैली’
इसी दिन गया जिले के ऐतिहासिक गांधी मैदान में राष्ट्रीय लोक मोर्चा (आरएलएम) के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा भी एक विशाल रैली को संबोधित करेंगे। इस रैली का नाम ‘संवैधानिक अधिकार परिसीमन सुधार महारैली’ रखा गया है। आरएलएम के महासचिव रामपुकार सिन्हा ने दावा किया है कि इस रैली में मगध क्षेत्र के विभिन्न जिलों से 25,000 से अधिक कार्यकर्ता जुटेंगे। उपेंद्र कुशवाहा, जो खुद को अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के बड़े नेता के रूप में पेश कर रहे हैं, लगातार बिहार के विभिन्न हिस्सों में इस तरह की रैलियों का आयोजन कर रहे हैं। इससे पहले वे शाहाबाद और उत्तर बिहार में भी इसी प्रकार के कार्यक्रम कर चुके हैं। गया की यह रैली विशेष रूप से मगध क्षेत्र में उनकी राजनीतिक पकड़ को मजबूत करने की दिशा में एक अहम कदम मानी जा रही है।
गठबंधन में सीटों की खींचतान की तैयारी
बिहार में एनडीए गठबंधन के अंतर्गत वर्तमान में बीजेपी, जेडीयू, एलजेपी (रामविलास), आरएलएम और हम पार्टी शामिल हैं। हालांकि, अब तक गठबंधन के भीतर आगामी चुनाव के लिए सीट शेयरिंग का कोई स्पष्ट फॉर्मूला सामने नहीं आया है। ऐसे में छोटे दलों के लिए यह जरूरी हो गया है कि वे अपने जनाधार का सार्वजनिक प्रदर्शन करें, ताकि भविष्य की बातचीत में उन्हें उचित हिस्सेदारी मिल सके। विशेषज्ञों का मानना है कि ये रैलियां केवल जनता से संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि बीजेपी और जेडीयू पर दबाव बनाने की रणनीति भी हैं। सीटों के बंटवारे को लेकर इन दलों की अहमियत तभी मानी जाएगी जब वे अपनी ताकत जमीन पर साबित कर सकें।
आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटे नेता
बिहार विधानसभा चुनाव की संभावित तिथि अक्टूबर-नवंबर 2025 मानी जा रही है। चिराग पासवान ने पहले ही यह संकेत दे दिया है कि वे अब पूरी तरह से राज्य की राजनीति में सक्रिय हैं और इस बार वे खुद चुनाव लड़ सकते हैं। यह उनके लिए एक व्यक्तिगत और राजनीतिक प्रतिष्ठा का विषय भी हो सकता है। उधर, उपेंद्र कुशवाहा भी लगातार जनसभाओं और मुद्दों के जरिए अपने समर्थकों को संगठित कर रहे हैं। वे ‘संवैधानिक अधिकार’ और ‘परिसीमन सुधार’ जैसे मुद्दों के सहारे अपने जनाधार को मजबूत करने की कोशिश में हैं।
छोटे दलों की भूमिका और गठबंधन की एकजुटता
एनडीए में शामिल छोटे दलों की भूमिका 2025 के चुनावों में काफी महत्वपूर्ण हो सकती है। भले ही बीजेपी और जेडीयू गठबंधन के बड़े स्तंभ हैं, लेकिन सीट बंटवारे और क्षेत्रीय संतुलन बनाए रखने के लिए इन्हें सहयोगी दलों की भी ज़रूरत होगी। इन रैलियों से यह संकेत भी मिल रहा है कि छोटे दल अब अपनी राजनीतिक हैसियत बढ़ाने के लिए पूरी ताकत झोंक देंगे। इस तरह 29 जून बिहार की राजनीति के लिहाज से एक अहम दिन बन सकता है, जहां से आगामी चुनावों की रणनीतिक दिशा तय होनी शुरू होगी।


