September 12, 2025

देश में जातीय जनगणना को लेकर केंद्र सरकार की अधिसूचना जारी, 2027 से शुरू होगा सर्वे

नई दिल्ली। देश में लंबे समय से प्रतीक्षित जनगणना की प्रक्रिया अब औपचारिक रूप से शुरू होने जा रही है। केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय ने जनगणना अधिनियम, 1948 के अंतर्गत एक अधिसूचना जारी करते हुए स्पष्ट कर दिया है कि वर्ष 2027 में यह जनगणना संपन्न कराई जाएगी। खास बात यह है कि इस बार की जनगणना में 1931 के बाद पहली बार जातीय गणना को भी शामिल किया गया है, जो सामाजिक न्याय और नीति निर्धारण के लिहाज से अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जा रही है।
कब और कहाँ होगी जनगणना की शुरुआत
अधिसूचना के अनुसार देश के अधिकांश क्षेत्रों में जनगणना की तिथि 1 मार्च, 2027 तय की गई है। जबकि जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे बर्फीले और कठिन भौगोलिक परिस्थितियों वाले क्षेत्रों में यह प्रक्रिया पहले, यानी 1 अक्टूबर, 2026 से शुरू होगी। यह विभाजन क्षेत्रीय परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए किया गया है ताकि जनगणना कार्य बिना किसी मौसमीय रुकावट के सुचारू रूप से पूरा हो सके।
जनगणना के चरण और प्रक्रिया
जनगणना दो प्रमुख चरणों में पूरी की जाती है। पहले चरण में मकानों और इमारतों की गणना की जाती है जिसमें यह दर्ज किया जाता है कि किस इमारत का क्या उपयोग हो रहा है, उसकी भौतिक स्थिति क्या है और उसमें रहने वाले लोगों की क्या सुविधाएं हैं। इस चरण में मकान मालिक का नाम, घर की बनावट, निर्माण सामग्री, कमरे की संख्या, बिजली और पानी की उपलब्धता, शौचालय की स्थिति और किचन में प्रयुक्त ईंधन की जानकारी जुटाई जाती है। दूसरे चरण में जनसंख्या की गणना होती है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति से संबंधित जानकारी एकत्र की जाती है जैसे नाम, आयु, लिंग, वैवाहिक स्थिति, जन्म स्थान, शिक्षा, व्यवसाय, धर्म, जाति, विकलांगता की स्थिति और प्रवास का इतिहास। इस दौरान यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि बेघर और अस्थायी ठिकानों पर रहने वाले लोगों को भी गणना में शामिल किया जाए।
जातीय गणना का महत्व
1931 के बाद यह पहली बार है जब सरकार ने जातीय गणना को जनगणना प्रक्रिया में शामिल करने का निर्णय लिया है। यह कदम सामाजिक संरचना को बेहतर ढंग से समझने और विभिन्न जातीय समूहों की वास्तविक संख्या और उनकी स्थिति का आंकलन करने में सहायक होगा। सामाजिक न्याय, आरक्षण नीति, शिक्षा और रोजगार के अवसरों में सुधार के लिए यह डेटा नीति निर्माताओं को मजबूत आधार देगा।
कौन करेगा जनगणना का काम
जनगणना के कार्य के लिए लगभग 30 लाख गणनाकर्ताओं की आवश्यकता होगी, जिनमें अधिकांश स्कूली शिक्षक होंगे। इसके अतिरिक्त लगभग 1.20 लाख अधिकारी जिला और उप-जिला स्तर पर प्रबंधन और निगरानी के कार्यों में लगाए जाएंगे। साथ ही 46,000 प्रशिक्षकों की भी आवश्यकता होगी जो इन गणनाकर्ताओं को प्रशिक्षित करेंगे। गणनाकर्ता देश के हर कोने में जाकर आंकड़े एकत्र करेंगे और यह सुनिश्चित करेंगे कि किसी भी नागरिक की जानकारी छूट न जाए। इस प्रक्रिया के बाद आंकड़ों को केंद्रीकृत रूप से प्रसंस्करित किया जाएगा और विभिन्न चरणों में उनके परिणाम सार्वजनिक किए जाएंगे।
गुणवत्ता नियंत्रण और डेटा जारी करने की प्रक्रिया
जनगणना डेटा की सटीकता सुनिश्चित करने के लिए एक मजबूत गुणवत्ता नियंत्रण प्रणाली अपनाई जाती है। इसमें पुनः जांच और ऑडिट की व्यवस्था होती है। पहले चरण में अनंतिम आंकड़े जारी किए जाते हैं, इसके बाद विस्तृत तालिकाएं और सूचनाएं विभिन्न सामाजिक और आर्थिक संकेतकों के आधार पर प्रकाशित की जाती हैं।
समाज के लिए व्यापक लाभ
यह जनगणना न केवल देश की जनसंख्या और सामाजिक-आर्थिक स्थिति का सटीक चित्र प्रस्तुत करेगी, बल्कि सरकार को विकास योजनाओं को अधिक लक्षित और प्रभावी बनाने में मदद करेगी। विशेषकर जातीय आंकड़ों के प्रकाश में आने से पिछड़े वर्गों के लिए न्यायसंगत नीतियों का निर्माण संभव होगा। इस प्रक्रिया से सामाजिक समावेशन को भी बल मिलेगा और देश की समावेशी विकास यात्रा को नया आयाम मिलेगा।

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