November 20, 2025

मालेगांव बम ब्लास्ट केस में एनआईए कोर्ट ने दिया फैसला, प्रज्ञा ठाकुर समेत सात आरोपियों को किया गया बरी

मुंबई। 29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के नासिक जिले स्थित मालेगांव में एक भयानक बम धमाका हुआ था। यह घटना रात 9 बजकर 35 मिनट पर भीखू चौक इलाके में उस वक्त घटी जब रमजान और नवरात्रि जैसे पर्व एक साथ पड़ रहे थे। धमाके में 6 लोगों की जान गई थी और 100 से अधिक लोग घायल हुए थे। इस घटना ने न केवल मालेगांव बल्कि पूरे देश को हिला दिया था क्योंकि यहां की आबादी मुस्लिम बहुल है और त्योहारों का समय था।
जांच और आरोप
शुरुआती जांच महाराष्ट्र एटीएस द्वारा की गई थी। जांच में सामने आया कि इस धमाके के पीछे कथित रूप से हिंदू राइट विंग से जुड़े लोगों का हाथ है। इसमें सबसे प्रमुख नाम सामने आया साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का, जो उस समय एक साध्वी थीं और बाद में बीजेपी से सांसद बनीं। साथ ही कर्नल प्रसाद पुरोहित, रमेश उपाध्याय, अजय राहिरकर, सुधाकर चतुर्वेदी, समीर कुलकर्णी और सुधाकर धर द्विवेदी को भी आरोपी बनाया गया। बाद में 2011 में यह केस एनआईए (नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी) को सौंपा गया और 2016 में एनआईए ने इस मामले में चार्जशीट दायर की। इस लंबे मुकदमे के दौरान तीन जांच एजेंसियां और चार जज बदले गए।
कोर्ट का निर्णय और टिप्पणियां
31 जुलाई 2025 को एनआईए की विशेष अदालत ने 17 साल पुराने इस मामले में बड़ा फैसला सुनाते हुए सभी सातों आरोपियों को बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर सका कि बम जिस मोटरसाइकिल में रखा गया था, वह साध्वी प्रज्ञा ठाकुर की थी। मोटरसाइकिल का चेसिस नंबर तक कभी भी सही तरीके से रिकवर नहीं किया गया। कोर्ट ने यह भी कहा कि धमाके के बाद जो कानूनी प्रक्रिया जैसे पंचनामा या फिंगरप्रिंट उठाने की होती है, उसे ठीक से नहीं निभाया गया। इतना ही नहीं, मेडिकल सर्टिफिकेट में भी गड़बड़ी पाई गई और अदालत ने घायल लोगों की संख्या 101 से घटाकर 95 मानी।
बम बनाने और साजिश की पुष्टि नहीं
अदालत ने कर्नल पुरोहित के खिलाफ भी कोई ठोस साक्ष्य न मिलने की बात कही। अदालत के अनुसार, न तो यह प्रमाणित हुआ कि उन्होंने बम बनाया था और न ही यह साबित हो सका कि आरोपियों ने मिलकर किसी प्रकार की साजिश रची थी।
मामले के राजनीतिक और सामाजिक मायने
यह केस केवल एक आपराधिक मामला नहीं था, बल्कि इसके राजनीतिक और सामाजिक आयाम भी थे। हिंदू कट्टरपंथ और आतंकवाद जैसे मुद्दे इसमें जुड़े थे। आरोपियों के नाम आते ही देश में धार्मिक ध्रुवीकरण की बहस तेज हो गई थी। यही वजह रही कि साध्वी प्रज्ञा को बीजेपी ने लोकसभा चुनाव में टिकट देकर सांसद बनाया, जिससे यह मुद्दा और अधिक संवेदनशील हो गया। एनआईए कोर्ट के इस फैसले के बाद मालेगांव ब्लास्ट केस की कानूनी प्रक्रिया समाप्त हो गई है, लेकिन इससे जुड़े सवाल और विवाद अब भी सार्वजनिक बहस का हिस्सा बने रहेंगे। जहां एक ओर कोर्ट ने सबूतों के अभाव में आरोपियों को बरी किया, वहीं दूसरी ओर पीड़ितों और सामाजिक संगठनों के बीच यह सवाल रह जाएगा कि क्या वाकई न्याय हुआ?

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