December 23, 2025

राजभवन मार्च कर रहे कांग्रेस और लेफ्ट विधायकों की पुलिस से झड़प, रोका तो सड़क पर बैठे, मचा बवाल

पटना। बीपीएससी उम्मीदवारों का आंदोलन 14वें दिन भी जारी है। उम्मीदवार बीपीएससी परीक्षा रद्द करने और पुलिस लाठीचार्ज के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं। इन छात्रों के समर्थन में मंगलवार को कांग्रेस और वामपंथी दलों के विधायक भी सड़क पर उतर आए। ये विधायक विधानसभा से राजभवन तक मार्च कर रहे थे, जहां उन्होंने अपने हाथों में विरोध के पोस्टर लिए हुए थे। इन पोस्टरों पर बीपीएससी परीक्षा रद्द करने और छात्रों पर हुए लाठीचार्ज की आलोचना लिखी गई थी। राजभवन मार्च के दौरान पुलिस ने विधायकों को रोकने की कोशिश की। पुलिस द्वारा रोके जाने पर विधायकों ने सड़क पर बैठकर अपना विरोध जताया। उन्होंने मांग की कि उन्हें वह नियम दिखाया जाए जिसके तहत विधायकों को राज्यपाल से मिलने से रोका जा रहा है। इस पर पुलिस ने अंततः उन्हें आगे जाने की अनुमति दी, लेकिन इस दौरान मामूली झड़प भी हुई। इस पूरे मामले को लेकर राजनीतिक दलों के बीच बयानबाजी भी तेज हो गई है। सोमवार को वाम दलों और राजद ने बिहार बंद का आह्वान किया था। इस दौरान राज्य के अलग-अलग हिस्सों में विरोध-प्रदर्शन हुए। प्रदर्शनकारियों ने दो जगहों पर ट्रेनें रोकीं और छह शहरों में सड़कें जाम कर दीं। दूसरी ओर, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी के बीच इस मुद्दे पर चर्चा हुई। बैठक के बाद उपमुख्यमंत्री ने बयान दिया कि बीपीएससी एक स्वतंत्र (ऑटोनोमस) संस्था है और इसे अपने फैसले खुद लेने चाहिए। उन्होंने कहा कि पहले की सरकारों में बीपीएससी के कार्यों में हस्तक्षेप किया जाता था, लेकिन अब ऐसा नहीं होना चाहिए। मार्च के दौरान विधायकों को विकास भवन के गेट के पास फिर से रोका गया। इन रुकावटों के बावजूद कांग्रेस और वाम दल के विधायक छात्रों के समर्थन में अपनी बात पर अडिग रहे। इस विरोध प्रदर्शन और राजनीतिक समर्थन ने बिहार की राजनीति में हलचल पैदा कर दी है। बीपीएससी उम्मीदवारों का आंदोलन और विधायकों का राजभवन मार्च छात्रों और विपक्षी दलों के आक्रोश को सामने ला रहा है। यह घटना केवल प्रशासन और छात्रों के बीच का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह बिहार की राजनीति में सत्ता और विपक्ष के बीच की खाई को भी उजागर कर रही है। विपक्षी दल इस मुद्दे को भुनाने और सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि सरकार इसे स्वतंत्र संस्थाओं के कार्य में हस्तक्षेप न करने की नीति के रूप में देख रही है।

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