एनडीए में सीट शेयरिंग पर बोले मांझी, अभी कोई फाइनल बात नहीं, 12 अक्टूबर तक सभी बातें होंगी साफ
पटना। बिहार की राजनीति एक बार फिर गर्म होती जा रही है। जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव की तारीखें नजदीक आ रही हैं, वैसे-वैसे एनडीए के भीतर सीट बंटवारे को लेकर हलचल तेज हो गई है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई में चल रही एनडीए सरकार के सहयोगी दलों के बीच सीटों की हिस्सेदारी को लेकर बातचीत अब निर्णायक मोड़ पर पहुँचती दिख रही है। हालांकि अभी तक कोई अंतिम समझौता नहीं हुआ है, लेकिन सबकी निगाहें 12 अक्टूबर पर टिकी हैं, जब इस मसले पर पूरी तस्वीर साफ होने की उम्मीद जताई जा रही है।
सीट बंटवारे की बातचीत की शुरुआत
चुनाव की घोषणा के बाद एनडीए के घटक दलों में सीट बंटवारे की बातचीत शुरू हो चुकी है। एलजेपी (रामविलास) के प्रमुख और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने दावा किया है कि बीजेपी नेताओं ने उनसे मुलाकात कर सीटों का ऑफर दिया है। दिल्ली में हुई इस मुलाकात के बाद माना जा रहा है कि सीट शेयरिंग पर औपचारिक बातचीत का दौर शुरू हो गया है। चिराग पासवान से पहले हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) के नेता और केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी ने भी कहा था कि अभी तक कोई फाइनल बात नहीं हुई है। उन्होंने यह भी बताया कि 8 और 9 अक्टूबर को संबंधित दलों के बीच चर्चा होगी और 12 अक्टूबर तक तस्वीर पूरी तरह साफ हो जाएगी। मांझी के इस बयान के बाद यह स्पष्ट हुआ कि गठबंधन के भीतर अभी सीटों का गणित चल ही रहा है और सभी दल अपने-अपने पक्ष को मजबूत करने में जुटे हैं।
बयानवीरों की भूमिका और राजनीतिक संदेश
राजनीतिक गलियारों में यह भी कहा जा रहा है कि जिन नेताओं ने बार-बार बयानबाजी की है कि “सीट शेयरिंग अब होगी और तब होगी”, वे असल में सीट बंटवारे की मुख्य बातचीत का हिस्सा नहीं हैं। यह बयानबाजी केवल दबाव बनाने की रणनीति के तहत की जा रही है, ताकि जब शीर्ष नेतृत्व के स्तर पर बातचीत हो तो सहयोगी दलों की मोल-भाव करने की स्थिति मजबूत बनी रहे। इससे पहले कई छोटे और मध्यम नेताओं ने मीडिया के जरिए यह संकेत देने की कोशिश की थी कि यदि पार्टी को अपेक्षित सीटें नहीं मिलतीं, तो वे मजबूत रुख अपना सकते हैं। इस तरह के राजनीतिक बयान दरअसल बातचीत में दबाव का साधन बनते हैं।
बीजेपी की सक्रियता और संगठनात्मक तैयारी
भाजपा ने सीट बंटवारे के समन्वय के लिए केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को चुनाव प्रभारी नियुक्त किया है। 25 सितंबर को हुई इस नियुक्ति के बाद से ही धर्मेंद्र प्रधान बिहार में सक्रिय हैं। उनके साथ पार्टी के संगठन प्रभारी विनोद तावड़े भी लगातार बैठकों का दौर जारी रखे हुए हैं। दोनों नेता जनता दल (यूनाइटेड) के अध्यक्ष और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ मिलकर सीटों की समझदारी की रणनीति बना रहे हैं। बीजेपी की ओर से तैयार की गई रणनीति के तहत सहयोगी दलों से मुलाकात कर उन्हें सीटों का प्रस्ताव दिया जा रहा है और उनकी प्रतिक्रिया पर पार्टी का उच्च नेतृत्व अगला कदम तय कर रहा है।
एनडीए के भीतर समीकरण
बिहार विधानसभा की कुल 243 सीटों में एनडीए के भीतर हर दल अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश में है। चिराग पासवान 30 सीटें मांग रहे हैं, जबकि जीतनराम मांझी की पार्टी लगभग 15 सीटों पर दावेदारी जता रही है। हालांकि राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इन दोनों दलों को मिलाकर 45 सीटें मिलना संभव नहीं लगता। मुख्य दो दल, बीजेपी और जेडीयू, में से कोई भी 100 सीटों से कम पर समझौता करने के मूड में नहीं है। इसके अलावा नीतीश कुमार यह भी चाहते हैं कि जेडीयू को भाजपा से कम से कम एक सीट ज्यादा मिले ताकि गठबंधन में उनकी प्रमुखता बनी रहे।
समय का दबाव और बैठकों का दौर
10 अक्टूबर से पहले चरण का नामांकन शुरू हो रहा है, इसलिए आज और कल के बीच एनडीए के भीतर कई दौर की बैठकें और चर्चाएं होने की संभावना है। सीटों पर अंतिम सहमति बनने से पहले सभी प्रमुख दल अपने-अपने स्तर पर समीकरण साधने में लगे हैं। इस चरण में नेताओं की लगातार मुलाकातें और बातचीत इस ओर संकेत करती हैं कि सीट बंटवारे का ऐलान अब बहुत दूर नहीं है। हालांकि यह तय है कि साझेदारी के इस गणित में सभी दलों को कुछ न कुछ समझौता करना ही पड़ेगा।
एनडीए में राजनीतिक वर्चस्व का संकेत बना सीट शेयरिंग
बिहार में एनडीए के भीतर सीटों को लेकर चल रही बातचीत एक तरफ जहां सियासी मोलभाव का परिचायक है, वहीं यह यह भी दर्शाती है कि हर दल अपने अस्तित्व और प्रभाव को लेकर सजग है। चिराग पासवान और जीतनराम मांझी के बयानों से यह साफ झलकता है कि गठबंधन के भीतर अभी भी कई पेंच फंसे हैं। आने वाले कुछ दिन न केवल सीटों के बंटवारे को तय करेंगे, बल्कि यह भी बताएंगे कि बिहार की राजनीति में एनडीए के भीतर कौन-सा दल कितना प्रभाव रखता है।


