December 23, 2025

मांझी एनडीए गठबंधन के मजबूत साथी, हमने हमेशा उनका किया आदर और सम्मान: दिलीप जायसवाल

  • राज्यसभा सीट पर बीजेपी की प्रतिक्रिया, मंत्री बोले- अपनी पार्टी के लिए सोचना स्वाभाविक, कहीं कोई विरोध नहीं

पटना। बिहार की राजनीति में एक बार फिर राज्यसभा सीट को लेकर हलचल तेज हो गई है। हिन्दुस्तान आवाम मोर्चा (से) के संरक्षक और केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी ने बिहार से राज्यसभा की एक सीट पर अपनी दावेदारी को लेकर बयान देकर राजनीतिक माहौल गरमा दिया है। उनके इस बयान के बाद न केवल एनडीए के भीतर चर्चाओं का दौर शुरू हुआ, बल्कि विपक्षी दलों की नजरें भी इस घटनाक्रम पर टिक गई हैं। राज्यसभा जैसी अहम संवैधानिक संस्था की सीट को लेकर होने वाली दावेदारी अक्सर सत्ता के भीतर संतुलन और घटक दलों की भूमिका को उजागर करती है।
पुत्र को दी गई सख्त सलाह
इस पूरे मामले में सबसे ज्यादा चर्चा उस बयान की हो रही है, जिसमें जीतनराम मांझी ने अपने पुत्र और बिहार सरकार में मंत्री डॉ. संतोष कुमार सुमन को मंत्री पद छोड़ने की सलाह दी। उन्होंने नाराजगी भरे लहजे में कहा कि अगर राज्यसभा की सीट नहीं मिल रही है तो मंत्री पद का मोह छोड़ देना चाहिए। यह बयान सामने आते ही राजनीतिक गलियारों में तरह-तरह की व्याख्याएं होने लगीं। कुछ लोगों ने इसे दबाव की राजनीति बताया, तो कुछ ने इसे सिद्धांत और सम्मान से जुड़ा हुआ संदेश माना।
बयान के बाद भाजपा की प्रतिक्रिया
मांझी के इस बयान के बाद भाजपा की ओर से भी प्रतिक्रिया सामने आई। बिहार भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और वर्तमान में राज्य सरकार में मंत्री दिलीप जायसवाल ने इस पूरे मामले पर संतुलित और सधा हुआ बयान दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि जीतनराम मांझी एनडीए गठबंधन के मजबूत साथी हैं और उनके प्रति हमेशा आदर और सम्मान की भावना रही है। दिलीप जायसवाल ने कहा कि मांझी जी का एनडीए के प्रति समर्पण किसी से छिपा नहीं है और वे हमेशा गठबंधन को मजबूत करने के लिए काम करते रहे हैं।
मीडिया और बयानबाजी पर टिप्पणी
दिलीप जायसवाल ने मीडिया की भूमिका पर भी टिप्पणी करते हुए कहा कि मांझी जी के बयान को लेकर मीडिया को थोड़ा सा मसाला मिल गया है। उनके अनुसार, मांझी जी के दिल में किसी तरह की नाराजगी या विरोध की भावना नहीं है। वे लंबे समय से एनडीए के लिए मेहनत कर रहे हैं और विधानसभा चुनाव के दौरान भी उन्होंने दिन-रात प्रचार किया। जायसवाल ने यह भी जोड़ा कि जो कुछ भी मांझी ने कहा है, वह एनडीए को कमजोर करने के लिए नहीं, बल्कि उसे और मजबूत बनाने की सोच से कहा गया है।
राज्यसभा टिकट की मांग पर पक्ष
जब दिलीप जायसवाल से राज्यसभा टिकट की मांग को लेकर सवाल किया गया, तो उन्होंने इसे पूरी तरह स्वाभाविक बताया। उनका कहना था कि हर नेता और हर पार्टी अपने हित और अपनी भूमिका के बारे में सोचती है। यह लोकतांत्रिक राजनीति का हिस्सा है। उन्होंने याद दिलाया कि टिकट बंटवारे के समय भी मांझी जी ने अपनी बात रखने के लिए कविता और दोहे का सहारा लिया था, जो उनकी शैली को दर्शाता है। जायसवाल ने साफ कहा कि अपनी पार्टी और अपने सम्मान के लिए सोचना कहीं से भी विरोध नहीं कहलाता।
विरोध और असहमति के बीच अंतर
दिलीप जायसवाल ने यह भी स्पष्ट करने की कोशिश की कि असहमति और विरोध में अंतर होता है। उनके अनुसार, किसी मुद्दे पर अपनी बात रखना या अपेक्षा जताना गठबंधन के खिलाफ जाना नहीं होता। एनडीए जैसे बड़े गठबंधन में अलग-अलग दलों की अपनी आकांक्षाएं और अपेक्षाएं होती हैं। इन्हें बातचीत और आपसी समझ से सुलझाया जाता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि इस पूरे घटनाक्रम में कहीं भी एनडीए के भीतर टूट या टकराव जैसी स्थिति नहीं है।
कमीशन वाले बयान पर चुप्पी
इस दौरान दिलीप जायसवाल से एक और संवेदनशील सवाल पूछा गया, जिसमें मांझी द्वारा सांसदों और विधायकों के कमीशन खाने से जुड़ा बयान सामने आया था। इस सवाल पर दिलीप जायसवाल ने सीधे जवाब देने से बचते हुए कहा कि यह मांझी जी का व्यक्तिगत अनुभव हो सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि जब वे उनसे मिलेंगे, तो जरूर पूछेंगे कि इसके पीछे का कारण क्या है। इस जवाब को भी राजनीतिक हलकों में एक संतुलित प्रतिक्रिया के रूप में देखा जा रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों की राय
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जीतनराम मांझी का यह बयान कई स्तरों पर अहम है। एक ओर यह उनकी पार्टी और गठबंधन के भीतर उनकी भूमिका को रेखांकित करता है, वहीं दूसरी ओर यह दिखाता है कि राज्यसभा जैसी सीटें घटक दलों के लिए कितनी महत्वपूर्ण होती हैं। विश्लेषकों का यह भी कहना है कि मांझी का बयान परिवार और राजनीति के आपसी संबंधों को भी सामने लाता है, जहां पिता अपने पुत्र को राजनीतिक सिद्धांतों के आधार पर सलाह दे रहा है।
एनडीए के भीतर संतुलन की चुनौती
बिहार में एनडीए गठबंधन के भीतर संतुलन बनाए रखना हमेशा से एक चुनौती रहा है। विभिन्न घटक दलों की अपनी सामाजिक आधार और राजनीतिक अपेक्षाएं हैं। राज्यसभा की सीट को लेकर उठी यह चर्चा भी उसी संतुलन की परीक्षा मानी जा रही है। गठबंधन की मजबूती इस बात पर निर्भर करती है कि इन अपेक्षाओं को किस तरह से समायोजित किया जाता है।
आगे की राजनीति पर नजर
अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि राज्यसभा की सीट को लेकर अंतिम फैसला क्या होता है। क्या जीतनराम मांझी की दावेदारी मजबूत साबित होती है या कोई और समीकरण सामने आता है, यह आने वाला समय बताएगा। साथ ही डॉ. संतोष कुमार सुमन का अगला कदम भी राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि उनका निर्णय भविष्य के समीकरणों को प्रभावित कर सकता है। जीतनराम मांझी का बयान और उस पर भाजपा नेता दिलीप जायसवाल की प्रतिक्रिया बिहार की राजनीति में गठबंधन, सम्मान और अपेक्षाओं की जटिलता को उजागर करती है। यह घटना दिखाती है कि राजनीति में अपनी बात रखना और अपने हितों की चर्चा करना स्वाभाविक है, बशर्ते उसका उद्देश्य गठबंधन को कमजोर करना न हो। राज्यसभा सीट का अंतिम निर्णय आने तक यह मुद्दा राजनीतिक चर्चाओं के केंद्र में बना रहेगा।

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