INSIDE STORY : सरकारी आश्वासनों में गुम हुआ पुनपुन नदी पर ब्रिटिश काल का बना लोहा पुल का मरम्मती कार्य

फतुहा (संजय भूषण)। कभी एनएच 30 का हिस्सा रहा ब्रिटिश काल का बना लोहा पुल के मरम्मती कार्य सरकारी आश्वासनों में गुम हो गया। इसके साथ ही फतुहा के सांस्कृतिक धरोहर के रुप में पहचान बनाने वाली इस टूटे लोहा पुल की निकट भविष्य में भी बनने की संभावना धूमिल प्रतीत होने लगी है। विदित हो कि 1897 के पहले की बनी यह लोहा पुल बीते 20 मई को नो एंट्री के बावजूद भी एक भारी वाहन के चढ़ जाने से ध्वस्त हो गई थी। पुल के ध्वस्तता की खबर अखबारों व सोशल मीडिया की सुर्खियां बन गई थी। सरकार ने तत्काल इसे मरम्मत करवाने का आश्वासन दिया था तथा पथ निर्माण विभाग ने अधिकारियों की टीम भेजकर निरीक्षण करवाया था। इतना ही नहीं, राहगीरों की सुरक्षा को देखते हुए सरकार ने पुल के दोनों तरफ ईंट की दीवार भी खड़ी कर दी। सरकार के द्वारा टीम भेजकर पुल की नापी भी करवाई गई।
इतना ही नहीं, सरकार के द्वारा यह घोषणा भी की गई कि कलकत्ता की एक कंपनी फतुहा पहुंचकर ग्रामीणों की सुविधा के लिए बेली पुल का निर्माण करेगी। लोगों को ऐसा लगा की बहुत जल्द ही उनकी परेशानी खत्म हो जाएगी और फतुहा को सांस्कृतिक विरासत में मिले इस लोहे पुल को आने वाली पीढ़ी के लिए संजोगा जाएगा। इसके लिए प्रतिनिधियों की कई शिष्टमंडल सरकार से मुलाकात की। लेकिन सारा प्रयास ढाक के तीन पात साबित हुए और ढाई महीने बीत जाने के बाद सरकारी आश्वासनों के बीच इस पुल की मरम्मती कार्य गुम हो गया।
विदित हो कि पुनपुन नदी पर ब्रिटिश काल का बना यह लोहा पुल शहर के दो भागों को सैकड़ों वर्ष से जोड़ते आई है। बाईपास रोड के बन जाने के बाद भी लाखों की आबादी इस लोहा पुल के जरिए आते जाते रहे हैं। अहम बात यह है कि इस पुल के उत्तर सटे तीन नदियों का सांस्कृतिक संगम अवस्थित है। इसी संगम पर भगवान वामन की प्राचीन मंदिर अवस्थित है, जो भगवान वामन की कर्मस्थली मानी जाती है। धार्मिक दृष्टि से सैकड़ों श्रद्धालु प्रतिदिन गंगा में स्नान के लिए पहुंचते रहे हैं। दूसरे जिले के भी लोग इस संगम पर स्नान करना पुण्य समझते हैं और श्रद्धालु इसी लोहा पुल के जरिए संगम तक पहुंचते हैं। इन्हीं बातों से लोहा पुल को लोग सांस्कृतिक धरोहर से जोड़कर देखते हैं। अब तो हालात यह है कि दूसरे जिले से पहुंचने वाले श्रद्धालु जान जोखिम में डालकर इसी टूटे लोहा पुल से मजबूरीवश आने-जाने को मजबूर हैं। वहीं स्थानीय लोग भी डेढ किलोमीटर की अधिक दूरी तय कर शहर के मुख्यालय पहुंचने को मजबूर हैं। स्थिति तो अब यह बन गई है कि कल तक टूटे पुल की निरीक्षण करने वाले अधिकारी अब कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है कि यह टूटे लोहा पुल की मरम्मत कब होगी या इसके एवज में बेली पुल का निर्माण कब होगा?

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