विशेष भूमि सर्वेक्षण में अब केवल जमीन के रसीद से होगा लैंड सर्वे, जमीन रैयत को मिली बड़ी राहत

- खतियान और केवाला नहीं होने पर परेशान होने की जरूरत…डॉक्यूमेंट नहीं होने पर भी रहेगा कब्जा…केवल रसीद अनिवार्य
पटना। बिहार में चल रहे विशेष भूमि सर्वेक्षण में सरकार ने रैयतों को बड़ी राहत दी है। लंबे समय से भूमि विवादों और दस्तावेजों की कमी के चलते परेशान हो रहे रैयतों के लिए एक नई व्यवस्था लागू की गई है। अब जमीन सर्वेक्षण में केवल बंदोबस्ती रसीद के आधार पर जमीन की पहचान और बंदोबस्ती की जाएगी। जिनके पास कागजात नहीं हैं, उनके लिए भी सरल विकल्प दिए गए हैं।
नई व्यवस्था से रैयतों को राहत
भूमि राजस्व मंत्री दिलीप जायसवाल ने कहा कि सरकार ने यह कदम इसलिए उठाया है ताकि उन रैयतों को राहत मिल सके जिनके पास जमीन के पुराने दस्तावेज नहीं हैं। कई बार प्राकृतिक आपदाओं, जैसे बाढ़ या आग, या अन्य कारणों से कागजात नष्ट हो जाते हैं। इसके चलते ऐसे रैयतों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। अब, बंदोबस्ती रसीद के अलावा, 50 वर्षों से अधिक समय से जमीन पर शांतिपूर्ण कब्जे का प्रमाण देने पर भी जमीन बंदोबस्ती मान ली जाएगी।
बंदोबस्ती रसीद मान्य होगी
जिनके पास खतियान या कबाला दस्तावेज नहीं हैं, उन्हें केवल बंदोबस्ती रसीद दिखाने की आवश्यकता होगी। रसीद भी उपलब्ध नहीं है, तो 50 वर्षों से जमीन पर रह रहे होने का प्रमाण देने से बंदोबस्ती मान ली जाएगी। स्व-प्रमाणित वंशावली या आपसी सहमति से हुए बंटवारे को भी मान्यता दी जाएगी। इसके लिए किसी तीसरे पक्ष से प्रमाणित कराने की आवश्यकता नहीं होगी।
दस्तावेजों की कमी की समस्या
बिहार में जमीन विवादों का एक बड़ा कारण पुरानी जमीनों के दस्तावेजों की अनुपलब्धता है। ग्रामीण इलाकों में अक्सर प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, दीमक, या आग के कारण कागजात नष्ट हो जाते हैं। कई बार सरकारी कार्यालयों में भी रिकॉर्ड सुरक्षित नहीं रहते। इन परिस्थितियों में रैयतों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता था। नई व्यवस्था इस समस्या का समाधान करेगी।
लाखों रैयतों को होगा फायदा
राजस्व विभाग के अनुसार, इस नई नीति से लाखों रैयतों को फायदा होगा। जो लोग लंबे समय से अपनी जमीन पर रह रहे हैं लेकिन उनके पास कागजात नहीं हैं, वे भी अब अपनी जमीन के मालिकाना हक को सुनिश्चित कर सकेंगे। साथ ही, यह व्यवस्था जमीन विवादों को कम करने और सरकारी प्रक्रियाओं को सरल बनाने में सहायक होगी।
सरकार की मंशा
सरकार ने इस नीति को लागू करने का मकसद जमीन विवादों को खत्म करना और सभी रैयतों को उनके अधिकार दिलाना बताया है। भूमि राजस्व मंत्री ने कहा कि यह प्रक्रिया न केवल रैयतों को राहत देगी, बल्कि सरकार की राजस्व प्रणाली को भी अधिक मजबूत और पारदर्शी बनाएगी।
आपसी सहमति और बंटवारे का समाधान
नई व्यवस्था में आपसी सहमति से किए गए बंटवारे को भी मान्यता दी गई है। वंशावली के लिए अब किसी तीसरे पक्ष से प्रमाणित कराने की आवश्यकता नहीं होगी। यह प्रावधान उन परिवारों के लिए राहत लेकर आया है जो आपसी सहमति से जमीन का बंटवारा करते हैं लेकिन कागजी औपचारिकताओं के अभाव में परेशान होते थे।
भूमि सर्वेक्षण के उद्देश्य
विशेष भूमि सर्वेक्षण का मुख्य उद्देश्य राज्य में जमीन के रिकॉर्ड को दुरुस्त करना, विवादों को खत्म करना और रैयतों को उनके हक दिलाना है। इस प्रक्रिया से राज्य में जमीन के मालिकाना हक को लेकर पारदर्शिता आएगी और सरकारी राजस्व प्रणाली में सुधार होगा।
समस्याओं का समाधान
सरकार ने माना है कि भूमि विवादों के समाधान के लिए इस तरह की सरल और प्रभावी नीतियों की आवश्यकता है। यह नई व्यवस्था न केवल दस्तावेजों की कमी की समस्या का समाधान करेगी, बल्कि ग्रामीण इलाकों में जमीन विवादों को भी कम करेगी। बिहार में चल रहे विशेष भूमि सर्वेक्षण के तहत सरकार द्वारा रैयतों को दी गई यह राहत एक स्वागत योग्य कदम है। नई व्यवस्था से न केवल कागजी प्रक्रियाएं सरल होंगी, बल्कि रैयतों का विश्वास भी बढ़ेगा। भूमि विवादों को खत्म करने और राजस्व प्रणाली को मजबूत करने के लिए इस तरह के कदम बेहद जरूरी हैं। इस नीति से लाखों रैयतों को लाभ होगा और जमीन संबंधी समस्याओं के समाधान में यह एक महत्वपूर्ण पहल साबित होगी।
