पटना में पोस्टर वॉर: लालू के काल को बताया जंगलराज, नीतीश का दिखाया सुशासन
पटना। बिहार में विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही राजनीतिक दलों के बीच बयानबाजी और प्रचार अभियान तेज हो गया है। इसके तहत पटना के विभिन्न हिस्सों में कई पोस्टर लगाए गए हैं, जिनमें राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के प्रमुख लालू प्रसाद यादव और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के शासन की तुलना की गई है। इन पोस्टरों में लालू यादव के शासनकाल को ‘जंगलराज’ बताया गया है, जबकि नीतीश कुमार के कार्यकाल को ‘सुशासन’ के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
लालू यादव के शासन को बताया गया ‘जंगलराज’
पटना में लगाए गए पोस्टरों में लालू प्रसाद यादव के कार्यकाल को अपराध, दहशत और सांप्रदायिक दंगों से जोड़ा गया है। एक पोस्टर में लिखा गया है, “लालू राज में धार्मिक दंगा, दहशत और डर का राज – यही था लालू का अंदाज!” इसमें यह दावा किया गया है कि लालू यादव के शासन के दौरान कई सांप्रदायिक दंगे हुए थे और अपराधियों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई थी।
जदयू प्रवक्ता ने किया पोस्टर का समर्थन
जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के प्रवक्ता नीरज कुमार ने इन पोस्टरों को सही ठहराते हुए कहा कि इसमें कोई झूठ नहीं है, बल्कि सच को उजागर किया गया है। उन्होंने दावा किया कि लालू यादव के शासनकाल में अपराध और सांप्रदायिक घटनाओं की संख्या बहुत अधिक थी। उन्होंने कहा कि 12 बड़े सांप्रदायिक दंगे हुए थे, जिनमें कई निर्दोष लोगों की जान गई थी।
नीतीश कुमार के शासन को बताया ‘सुशासन’
दूसरी ओर, कुछ पोस्टरों में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तस्वीर के साथ उनके शासनकाल को शांतिपूर्ण और समृद्ध बिहार के रूप में दर्शाया गया है। एक पोस्टर में लिखा गया है, “एकता की रोशनी, नफरत की हार, शांति और सद्भाव का बिहार! अमन-चैन की चले बयार, जब नीतीश जी की है सरकार।” इन पोस्टरों के माध्यम से यह संदेश देने की कोशिश की गई है कि नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार में कानून-व्यवस्था में सुधार हुआ है और लोगों को एक सुरक्षित वातावरण मिला है।
चुनावी माहौल में बढ़ता पोस्टर वार
बिहार में चुनावी माहौल के गर्म होते ही इस तरह के पोस्टर वार की घटनाएं बढ़ रही हैं। राजनीतिक दल अपने-अपने पक्ष में माहौल बनाने के लिए प्रचार के नए-नए तरीके अपना रहे हैं। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि आगे चलकर यह पोस्टर वार किस दिशा में जाता है और इसका जनता पर क्या प्रभाव पड़ता है।
विपक्ष का पलटवार
हालांकि, राजद की ओर से इस पोस्टर वार पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन यह तय है कि चुनावी माहौल में यह मुद्दा और गरमाएगा। राजद की ओर से यह दावा किया जाता रहा है कि उनके शासन में पिछड़े वर्गों को सशक्त किया गया था और उन्होंने सामाजिक न्याय की दिशा में काम किया था। बिहार की राजनीति में पोस्टर वार नया नहीं है, लेकिन चुनाव के करीब आते ही यह अधिक आक्रामक रूप ले लेता है। इस तरह के प्रचार से जनता को प्रभावित करने की कोशिश की जाती है। यह देखना होगा कि जनता इन प्रचार अभियानों को किस रूप में लेती है और आगामी चुनावों में इसका क्या असर पड़ता है।


