उपेंद्र कुशवाहा और जीतनराम मांझी ने की मुलाकात, सीट शेयरिंग पर चर्चा, बीजेपी और जदयू पर दबाव बनाने की तैयारी

पटना। बिहार की राजनीति में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर सरगर्मी तेज होती जा रही है। इसी बीच राष्ट्रीय लोक मोर्चा के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा और हम पार्टी के संरक्षक जीतनराम मांझी की एक मुलाकात ने राजनीतिक गलियारों में चर्चा को हवा दे दी है। भले ही इस मुलाकात को औपचारिक बताया जा रहा हो, लेकिन इसके पीछे की रणनीति कहीं अधिक गहरी और गंभीर मानी जा रही है।
एनडीए में हिस्सेदारी की कवायद
मुलाकात को लेकर यह अटकलें लगाई जा रही हैं कि दोनों नेता आगामी सीट शेयरिंग को लेकर अपनी स्थिति स्पष्ट करना चाहते हैं। एनडीए में छोटे दलों की भूमिका को लेकर हमेशा से ही खींचतान की स्थिति रही है। ऐसे में कुशवाहा और मांझी इस बार समय रहते अपनी मांगें सामने रखना चाहते हैं, ताकि जेडीयू और बीजेपी पर दबाव बनाकर अधिक सीटों की हिस्सेदारी हासिल की जा सके।
कुशवाहा के तेवर और नीतीश पर तंज
गौर करने वाली बात यह भी है कि हाल ही में उपेंद्र कुशवाहा ने नीतीश कुमार पर तीखा हमला बोलते हुए उन्हें जेडीयू की बागडोर बेटे निशांत कुमार को सौंपने की सलाह दी थी। उन्होंने यह भी दावा किया कि उनके कार्यकर्ता नीतीश सरकार से असंतुष्ट हैं और समस्याओं को लेकर उनके पास आ रहे हैं। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि जनता को अभी भी एनडीए सरकार से उम्मीद है और महागठबंधन को लेकर लोगों में कोई भरोसा नहीं है।
चिराग पासवान बने बातचीत का केंद्र
मुलाकात के दौरान एक प्रमुख विषय चिराग पासवान की भूमिका और रणनीति रहा। मांझी और कुशवाहा, चिराग के बढ़ते प्रभाव और उनके द्वारा तैयार की गई चुनावी रणनीति का विश्लेषण कर रहे थे। दोनों नेताओं ने यह भी विचार किया कि चिराग की तुलना में उनकी स्थिति कहीं कमजोर न हो जाए। चिराग पासवान, जिनके पास वर्तमान में पांच सांसद हैं, बीजेपी से 50 सीटों की मांग कर चुके हैं। वहीं मांझी और कुशवाहा का मानना है कि उनकी भूमिका को भी कमतर नहीं आंका जाना चाहिए।
मांझी और कुशवाहा की मांगें
मांझी ने एनडीए में 20 विधानसभा सीटों की मांग की है, जबकि उनके पास फिलहाल चार विधायक और एक लोकसभा सीट है। कुशवाहा, जो फिलहाल राज्यसभा में बीजेपी कोटे से सांसद हैं, आगामी विधानसभा चुनाव में 10 सीटें चाहते हैं। इस प्रकार दोनों नेताओं ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वे केवल औपचारिक सहभागिता नहीं चाहते, बल्कि ठोस राजनीतिक हिस्सेदारी की मांग कर रहे हैं।
औपचारिक मुलाकात की आड़ में रणनीतिक मंथन
हम पार्टी के कुछ नेताओं ने इस मुलाकात को औपचारिक करार देकर इससे जुड़े राजनीतिक मायनों से इनकार किया है। मगर मांझी ने स्वयं अपने सोशल मीडिया मंच पर यह स्वीकार किया कि उन्होंने वर्तमान राजनीतिक स्थिति पर विस्तार से चर्चा की। ऐसे में यह स्पष्ट है कि मुलाकात के पीछे केवल शिष्टाचार नहीं, बल्कि रणनीतिक विचार-विमर्श की मजबूत भूमिका रही है।
छोटे दलों का बढ़ता आत्मविश्वास
बिहार की राजनीति में अक्सर छोटे दलों को नजरअंदाज किया जाता रहा है, लेकिन इस बार मांझी और कुशवाहा जैसे नेता साफ संदेश देना चाहते हैं कि वे केवल चुनावी गणित के अंक नहीं, बल्कि राजनीतिक प्रभाव के धुरी बनकर उभरना चाहते हैं। दोनों नेताओं की यह सक्रियता एनडीए में एक संतुलन बनाने की ओर इशारा करती है, जहां केवल बड़े दलों की नहीं, बल्कि सहयोगियों की भी प्रभावी हिस्सेदारी हो। यह देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी इस मंथन का किस प्रकार जवाब देती है और सीट बंटवारे में किसे क्या स्थान मिलता है।

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