कुम्हरार सीट पर संग्राम:- सम्राट की निगाहें “सेफ सीट” पर,सुशील मोदी की पत्नी की दावेदारी,ऋतुराज संसद के ख्वाब में,अरुण सिन्हा को नई भूमिका की अटकलें…

पटना। बिहार की राजनीति में राजधानी पटना की कुम्हरार विधानसभा सीट एक बार फिर से चर्चा के केंद्र में है। बीजेपी के भीतर टिकट को लेकर जो रस्साकशी चल रही है, उसमें कई बड़े नाम शामिल हैं—लेकिन हर नाम के पीछे एक रणनीति और राजनीतिक महत्वाकांक्षा छिपी है।

 

अरुण कुमार सिन्हा अभी सक्रिय, नई भूमिका की चर्चा

कई अफवाहों के उलट, कुम्हरार के वर्तमान विधायक अरुण कुमार सिन्हा पूरी तरह सक्रिय हैं। उम्र और अनुभव को देखते हुए पार्टी उनके लिए कोई नई जिम्मेदारी तय कर सकती है। वे लगातार कई बार इस सीट से जीतकर आए हैं और संगठन के भीतर एक सम्मानित चेहरा हैं। हालांकि इस बार पार्टी नेतृत्व इस सीट पर कुछ नया करने की मंशा में भी दिख रहा है, जिससे टिकट को लेकर अटकलें तेज हो गई हैं।

 

सम्राट चौधरी: क्यों दिख रही है ‘सेफ सीट’ की चाह?

भाजपा के वर्तमान डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी, जो मूल रूप से खगड़िया जिले से आते हैं और परबत्ता से एमएलसी हैं, उनके पटना से चुनाव लड़ने की चर्चा जोरों पर है। राजनीतिक हलकों में माना जा रहा है कि वे अपने मौजूदा क्षेत्र से लड़ने से बचना चाहते हैं क्योंकि वहां पार्टी की स्थिति इतनी मजबूत नहीं है।

 

हाल ही घटनाओं पर ध्यान दे तो उसका प्रमाण भी मिलता है कि उनको पटना का प्रभारी नियुक्त किया गया है और कहे अनकहे तौर पर यह भी चर्चा जोड़ो पर है कि इसलिए एक वर्तमान महिला एम एल सी को समीकरण साधने और रणनीति को अपने पक्ष में करने के तहत कुम्हरार विधानसभा जहां पर उनकी नजर है वह का आब्जर्वर नियुक्त किया गया ताकि उसका फायदा उनको मिल सके।

 

अब सवाल उठता है—क्या सम्राट चौधरी खुद को “कुम्हरार” जैसी सुरक्षित और शहरी सीट से लॉन्च करना चाहते हैं?

सम्राट चौधरी ने आज तक सिर्फ एक चुनाव 2000 में लड़ा, और वह जीत जरूर गए, लेकिन तब से वे लगातार विधान परिषद में रहे हैं। अगर वे कुम्हरार से टिकट मांगते हैं, तो यह उन नेताओं के लिए असंतोष का कारण बन सकता है जो सालों से इस सीट पर मेहनत कर रहे हैं। क्योंकि प्रत्यक्ष तौर पर पार्टी में उनके संगठन से बाहरी होने की बात सामने आती रही हैं।

 

दिवंगत सुशील मोदी की पत्नी का दावा- 

दावेदारी की दौड़ लगातार तेज हो रही है। अब इस रेस में एक नया नाम शामिल हो गया है — जेसी जॉर्ज मोदी, जो राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री स्व. सुशील कुमार मोदी की पत्नी हैं और कभी सुशील मोदी भी इस सीट पर चुनाव लड़ते रहे हैं।

 

हाल ही में पटना में आयोजित सुशील मोदी की पहली पुण्यतिथि के कार्यक्रम में जेसी जॉर्ज मोदी ने सार्वजनिक रूप से इस बात के संकेत दिए कि वे कुम्हरार विधानसभा से चुनाव लड़ने की इच्छुक हैं।

 

 

 

ऋतुराज सिन्हा: कायस्थ समाज का चेहरा, संसद की ओर नज़र?

ऋतुराज सिन्हा, बीजेपी के एक युवा और संगठननिष्ठ नेता, कायस्थ समाज से आते हैं और पार्टी के भीतर उनकी पैठ गहरी मानी जाती है। लेकिन सियासी जानकारों का कहना है कि ऋतुराज की महत्वाकांक्षा विधायक तक सीमित नहीं है — उनकी नजर लोकसभा पर है, खासतौर पर पटना साहिब जैसी सीटों पर।

अब सवाल उठता है कि क्या वह खुद को सिर्फ विधायक की कुर्सी तक सीमित करना चाहेंगे? क्या कुम्हरार जैसी विधानसभा सीट उनके राजनीतिक कद के अनुरूप मानी जाएगी?

 

जातीय समीकरण: सबसे निर्णायक भूमिका भूमिहार समाज की

कुम्हरार में सबसे बड़ी आबादी भूमिहार समाज की है, जो लगभग 18-20% है। इसके बाद कायस्थ, वैश्य, और अन्य सवर्ण समाज आते हैं। यादव, मुसलमान, ईबीसी और दलित समाज की भी अच्छी-खासी उपस्थिति है, लेकिन बीजेपी के कोर वोटर अब भी भूमिहार और वैश्य माने जाते हैं।

 

राजनीतिक संकेत और संगठन की मुश्किल

कुम्हरार सीट अब सिर्फ टिकट की लड़ाई नहीं रह गई, यह अब बीजेपी के भीतर कद, रणनीति और संतुलन साधने की परीक्षा बन गई है।

 

क्या पार्टी पुराने और विश्वसनीय चेहरे अरुण सिन्हा को नई भूमिका में भेजकर सीट खाली करेगी?

 

क्या सम्राट चौधरी खुद को “सुरक्षित” सीट से विधानसभा में लाकर मुख्यमंत्री पद की दावेदारी मजबूत करना चाहते हैं?

 

क्या ऋतुराज जैसा युवा चेहरा छोटे लक्ष्य (विधायक) पर रुक जाएगा, या सीधे सांसद बनने की तैयारी में है?

 

 

निष्कर्ष-

कुम्हरार विधानसभा सीट भले ही बीजेपी की परंपरागत सीट हो, लेकिन टिकट वितरण इस बार बेहद संवेदनशील हो गया है। संगठन के सामने चुनौती यह है कि वह जातीय संतुलन, क्षेत्रीय समीकरण और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं के बीच सही रास्ता कैसे चुने।

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