August 21, 2025

सासाराम में मीडिया पर भड़के जीवेश मिश्रा, कहा- कैमरे की जगह पिस्तौल लेकर आ जाओ, रिकॉर्डिंग रोकी

सासाराम। सासाराम में बिहार सरकार के नगर विकास मंत्री जीवेश मिश्रा उस समय विवादों में घिर गए जब उन्होंने पत्रकारों से बात करते हुए बेहद आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी। यह घटना उस समय हुई जब वे सासाराम में नगर विकास विभाग की योजनाओं के उद्घाटन और शिलान्यास के कार्यक्रम में शामिल होने पहुंचे थे। कार्यक्रम के बाद मीडिया प्रतिनिधियों ने उनसे स्थानीय समस्याओं को लेकर सवाल पूछने शुरू किए, जिन पर मंत्री का धैर्य जवाब दे गया और उन्होंने पत्रकारों को लेकर एक ऐसी टिप्पणी कर दी, जिसने माहौल को तनावपूर्ण बना दिया। मीडिया कर्मियों द्वारा नगर में व्याप्त समस्याओं और सरकारी योजनाओं की वास्तविक स्थिति पर सवाल पूछे जाने पर जीवेश मिश्रा पहले तो पत्रकारों से धैर्य बनाए रखने की अपील करते रहे। लेकिन जैसे ही वे कार्यक्रम स्थल से बाहर निकलने लगे, पत्रकारों ने सवाल जारी रखा। इस पर मंत्री ने कहा कि “हमारी मर्जी के खिलाफ कोई भी बयान हमसे नहीं ले सकता है। यही हाल रहा तो आप लोगों को कैमरे की जगह पिस्तौल लेकर चलना चाहिए।” उनकी इस बात ने उपस्थित लोगों को चौंका दिया।इस टिप्पणी के बाद मंत्री ने माहौल को हल्का करने के लिए इसे मजाक में बदलने की कोशिश भी की। कैमरे के सामने आते ही उन्होंने अपनी बात को हंसी-ठिठोली में उड़ाने का प्रयास किया। लेकिन तब तक उनकी कही बात कई पत्रकारों और उपस्थित लोगों को अखर चुकी थी। इससे यह साफ झलकने लगा कि मंत्री पत्रकारों के सवालों से असहज और नाराज़ हो गए थे। मामला यहीं तक सीमित नहीं रहा। मंत्री के सुरक्षाकर्मी ने भी कैमरा पर्सन को आगे की रिकॉर्डिंग करने से रोक दिया। इससे पत्रकारों और सुरक्षा कर्मियों के बीच हल्की झड़प जैसी स्थिति पैदा हो गई। यह घटना न केवल मीडिया की स्वतंत्रता पर सवाल उठाती है बल्कि सत्ता और पत्रकारिता के रिश्ते को भी उजागर करती है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में पत्रकारों का दायित्व है कि वे जनता की आवाज़ और समस्याओं को सरकार तक पहुंचाएं। यदि मंत्री या जनप्रतिनिधि इस पर नाराज़ होकर आपत्तिजनक टिप्पणी करते हैं तो यह निश्चित रूप से चिंता का विषय है। जीवेश मिश्रा का यह बयान राजनीतिक और सामाजिक दोनों स्तरों पर चर्चा का विषय बन गया है। विरोधियों को भी इस बयान के बहाने मंत्री और सरकार पर हमला करने का मौका मिल गया है। सवाल यह उठता है कि क्या सत्ता में बैठे लोग मीडिया की भूमिका और उसकी आज़ादी को समझने में असफल हो रहे हैं? पत्रकारों का काम केवल सरकार की उपलब्धियों को दिखाना नहीं है, बल्कि जनता की समस्याओं और सवालों को उठाना भी है। इस घटना ने यह साफ कर दिया है कि नेताओं को पत्रकारों के साथ संवाद करते समय संयम और धैर्य रखना चाहिए। मजाक या गुस्से में कही गई बातें कभी-कभी गंभीर विवाद का रूप ले लेती हैं। मंत्री के इस बयान ने यही साबित किया कि लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर संवेदनशीलता और सम्मान की आवश्यकता है।

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