बीजेपी के खिलाफ पोल खोल अभियान में जदयू के बड़े नेताओं ने गांधी मैदान में दिया धरना, उमेश कुशवाहा बोले- हमेशा से आरक्षण विरोधी रही है भाजपा

पटना। नगर निकाय चुनाव में हाईकोर्ट की रोक लगने के बाद बिहार में सियासत थम नहीं रही है। जदयू की ओर से 1 महीने के अंदर बीजेपी के खिलाफ आज दूसरा अभियान चलाया जा रहा है। पटना के गांधी मैदान में जनता दल यूनाइटेड ने बीजेपी के खिलाफ बुधवार को पोल खोल अभियान के तहत धरना दिया। वही पटना गांधी मैदान में धरना दे रहे जदयू के प्रदेश अध्यक्ष है उमेश कुशवाहा ने कहा कि बीजेपी आरक्षण विरोधी है। पटना हाईकोर्ट में बीजेपी के लोगों ने याचिका दायर कर नगर निकाय चुनाव में अति पिछड़ा के आरक्षण समाप्त करने की कोशिश किया है। इसलिए हम लोग पूरे बिहार में बीजेपी के खिलाफ यह कार्यक्रम कर रहे हैं। गांधी मैदान में जदयू के धरना कार्यक्रम में जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह भी शामिल हैं। बड़ी संख्या में जेडीयू के नेता भी मौजूद रहे। बिहार के सभी जिला मुख्यालयों में बीजेपी के खिलाफ धरना दिया जा रहा है।
बीजेपी के खिलाफ पोल खोल अभियान
जदयू के लोग बीजेपी को दोहरा चरित्र वाला बता रहे हैं। जदयू जिला में आरक्षण को लेकर बीजेपी के खिलाफ पोल खोल अभियान चला रहे हैं तो दूसरी तरफ बीजेपी भी नीतीश कुमार पर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद भी आयोग नहीं बनाने को लेकर निशाना साध रही है। नीतीश कुमार के खिलाफ चरणबद्ध ढंग से आंदोलन चलाने की घोषणा कर दी है। बीजेपी नेताओं का कहना है सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही निर्देश दिया था। उसका पालन नीतीश सरकार ने नहीं किया और उसके कारण ही अति पिछड़ों के आरक्षण को लेकर नगर निकाय चुनाव रुका है।
जानिए क्या हैं आखिर पूरा मामला
दरअसल, बिहार में इस महीने होने वाले नगर निकाय चुनाव को लेकर पटना ने बड़ा फैसला सुनाया। हाईकोर्ट ने पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षित सीटों पर चुनाव कराने से फिलहाल रोक लगा दी। पटना हाईकोर्ट के इस निर्णय के बाद आनन-फानन में बिहार राज्य निर्वाचन आयोग की बैठक हुई। जिसमें अधिकारियों ने पूरे मामले पर हाईकोर्ट के निर्णय की जानकारी ली। जिसमें राज्य निर्वाचन आयोग के अधिकारी और नगर विकास विभाग के सचिव भी मौजूद रहे। इस बैठक में चुनाव को फिलहाल स्थगित करने का निर्णय लिया गया। दिसंबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि स्थानीय निकायों में ईबीसी के लिए आरक्षण की अनुमति तब तक नहीं दी जा सकती, जब तक कि सरकार 2010 में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा निर्धारित तीन जांच की अर्हता पूरी नहीं कर लेती। तीन जांच के प्रावधानों के तहत ईबीसी के पिछड़ापन पर आंकड़ें जुटाने के लिए एक विशेष आयोग गठित करने और आयोग के सिफरिशों के मद्देनजर प्रत्येक स्थानीय निकाय में आरक्षण का अनुपात तय करने की जरूरत है।

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