चंपारण की धरती पर गांधी के परपोते का अपमान: आज भी भाजपा जेडीयू की सरकार में जीवित है ‘तीन कठिया’ की काली हिंसक विरासत: कांग्रेस
- नीतीश और नरेंद्र मोदी जी ने गाँधी के विचारों और सिध्दांतों के दृष्टिकोण को कूड़े दान में डाल कर बस प्रचार के लिए उनका चश्मा उधार लिया है: कांग्रेस
पटना। स्वतंत्रता संग्राम की बिहार की वह ऐतिहासिक भूमि, जहां से महात्मा गांधी ने 1917 में अंग्रेजों के ‘तीन कठिया’ काले कानून के विरुद्ध पहली बार सत्याग्रह का शंखनाद किया था, आज उसी भूमि पर भाजपा जेडीयू की सत्ता की सरपरस्ती में बापू की गौरवशाली और वेभवशाली विरासत को अपमानित किया गया लेकिन इस बार वजह शर्मनाक है। राष्ट्रपिता के परपोते तुषार गांधी के साथ चंपारण में एक कार्यक्रम के दौरान बदसलूकी हुई और उन्हें कार्यक्रम स्थल से जबरन बाहर निकाल दिया गया। इस घटना की बिहार कांग्रेस निंदा करती है। ये बातें बिहार कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी कृष्णा अल्लावारू, प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम, विधायक दल के नेता डॉ शकील अहमद खान, विधान परिषद में दल के नेता डॉ मदन मोहन झा और राष्ट्रीय प्रवक्ता अभय दुबे ने एक संयुक्त मीडिया बयान में कही। घटना पश्चिम चंपारण के तुरकौलिया क्षेत्र की है। तुषार गांधी, जो 12 जुलाई से चंपारण सत्याग्रह की स्मृति में पदयात्रा पर हैं, रविवार को ऐतिहासिक नीम के पेड़ के नीचे पहुँचे थे—वहीं, जहाँ से कभी बापू ने नील की खेती करने को मजबूर किसानों की पीड़ा सुनी थी। इस स्थल पर उन्होंने माल्यार्पण किया और अतीत की विभीषिका को याद किया, जब अंग्रेज जमींदार किसानों को पेड़ से बांधकर पीटा करते थे। भाजपा जेडीयू सरकार की मानसिकता के पंचायत मुखिया की बदसलूकी पर बोलते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने कहा कि तुरकौलिया पूर्वी पंचायत के मुखिया विनय कुमार ने सरकार की नीतियों पर उठते सवालों के दौरान तुषार गांधी को बीच कार्यक्रम में मंच से अपमानजनक तरीके से बाहर निकाल दिया। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, जैसे ही तुषार गाँधी जी ने देश में फैले उन्माद, सामाजिक विभाजन और बिहार की राजनीतिक विफलताओं पर बोलना शुरू किया, मुखिया ने उन्हें अपमान जनक तरीक़े से मंच खाली कराने को कहा।
गांधी के विचारों की हत्या :
तुषार गांधी के साथ हुई इस घटना ने कई संवेदनशील सवाल खड़े कर दिए हैं।
क्या हम उस अहिंसक परंपरा और वैचारिक स्वतंत्रता को भूलते जा रहे हैं जिसके लिए गांधी खड़े हुए थे?
महात्मा गांधी ने कहा था:
यदि मैं अहिंसा में विश्वास करता हूँ, तो मुझे कोमल वाणी की शक्ति में भी विश्वास करना होगा, क्योंकि कठोर शब्द तलवार से भी गहरे ज़ख्म देते हैं।
आज चंपारण की वही धरती, जहां गाँधीने ‘तीन कठिया’ नीति के खिलाफ आवाज उठाई थी, वहाँ पर उनके परिजनों को अपमानित किया जाना केवल एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि उस विचार का अपमान है, जो सत्य, अहिंसा और असहमति के सम्मान पर टिका था।
तीन कठिया क्या था?
ब्रिटिश शासनकाल में चंपारण के किसान नील की खेती के लिए मजबूर किए जाते थे। “तीन कठिया” का अर्थ था कि हर बीघा जमीन के तीन कट्ठे भाग में जबरन नील उगाना पड़ेगा। इससे किसानों की आमदनी चौपट होती थी और अंग्रेज जमींदार उनकी जमीन का शोषण करते थे। महात्मा गांधी ने 1917 में पहली बार यहीं से सत्याग्रह की शुरुआत की और इस कानून को खत्म करवाया।
सवाल उठते हैं:
क्या नीतीश कुमार की राजनीति गांधी की विचारधारा से इतनी दूर चली गई है कि उनके वंशज तक को सुनना गंवारा नहीं?
क्या शब्दों की असहमति को कुचलना भी एक नई “तीन कठिया” की नीति बन गई है, जहां वैचारिक स्वतंत्रता की खेती अब नियंत्रित की जा रही है?
कांग्रेस पार्टी इस हिंसक घटना की घोर निंदा करती है।


