17 मार्च को रात 1 बजे के बाद होगा होलिका दहन, 19 को मनेगा रंगों का त्यौहार होली

धर्म-आध्यात्म। चैत्र कृष्ण प्रतिपदा में शनिवार 19 मार्च को हस्त नक्षत्र और वृद्धि योग में रंगों का त्योहार होली मनेगी। लेकिन, उससे पहले होलिका दहन के बाद इसबार एक दिन का ब्रेक रहेगा। फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा 17 मार्च गुरुवार को दोपहर 1:13 बजे से आरंभ हो रही है, जो 18 मार्च शुक्रवार को दोपहर 1:03 बजे तक रहेगी। होलिका दहन पूर्णिमा तिथि में रात के समय भद्रामुक्त काल में होता है। बनारसी पंचांग के अनुसार 17 मार्च की मध्य रात्रि बाद 12:57 बजे और मिथिला पंचांग के मुताबिक रात्रि 1:09 बजे तक भद्रा रहेगा, इसीलिए होलिका दहन का कार्य इसके बाद होगा। इस तरह मध्य रात्रि बाद होलिकादहन होने के कारण 19 मार्च को होली मनाई जाएगी।

होलिका पूजन से होगा अनिष्टता का नाश, 6 सालों बाद बना संयोग
जानकारी के मुताबिक, होली को लेकर मिथिला और बनारसी पंचांग एकमत हैं। व्रत की पूर्णिमा 17 मार्च और स्नान-दान की पूर्णिमा 18 मार्च को मनेगी। इस बीच होलिका दहन की तैयारी तेज हो गई है। चौक-चौराहों पर लकड़ियों के ढेर नजर आने लगे हैं। होलिका दहन के एक दिन बाद होली मनाने का संयोग 6 साल बाद बना है। इससे पहले वर्ष 2012 में 7 मार्च को होलिका दहन और 9 मार्च को होली मनी थी। फिर 2013 में भी 26 मार्च को होलिका दहन और 28 मार्च को होली मनी थी। वहीं वर्ष 2016 में 22 मार्च को होलिका दहन और 24 मार्च को होली मनाई गई थी। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार प्रेम और सौहार्द्र के पर्व होली में होलिका दहन का महत्वपूर्ण विधान है। होलिका पूजन में श्रद्धालु अपनी सभी अनिष्टता का नाश, सुख-शांति, समृद्धि व संतान की उन्नति की कामना करते हैं। अपने अंदर के राग, द्वेष, क्लेश, दुःख को होलिका की अग्नि में खत्म हो जाने की प्रार्थना करते हैं। 17 मार्च की मध्यरात्रि तक भूलोक पर भद्रा के वास होने की वजह से होलिका दहन इसके बाद किया जाएगा। क्योंकि भद्रा में होलिका दहन करने से हानि और अशुभ फलों की प्राप्ति होती है।
होलिका दहन की है प्राचीन मान्यता, भगवान नरसिंह ने किया था हिरण्यकश्यप का वध
प्राचीन काल में हिरण्यकश्यपु नाम का एक राजा था। अपने बल के आगे वह भगवान को भी नहीं मानता था। लेकिन, उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान का भक्त था। दंड देने के बाद भी वह नहीं माना। हिरण्यकशिपु की बहन होलिका को आग में नहीं जलने का वरदान प्राप्त था। हिरण्यकशिपु ने उसे आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद लेकर आग में बैठे। लेकिन, आग में बैठने पर ऐसा कुछ चमत्कार हुआ कि होलिका जल गई और प्रह्लाद बच गया। इसके बाद भगवान विष्णु नरसिंह के रूप में गोधुली बेला में प्रकट हुए और हिरण्यकश्यपु का वध कर दिया। ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में उसी दिन से होलिका जलाई जाती है और अगले दिन होली मनाई जाती है।